
बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। हरनौत प्रखंड के पोआरी पंचायत अंतर्गत अलीनगर गांव में आज भी विकास की गति ठहरी हुई सी प्रतीत होती है। मुख्यमंत्री सात निश्चय योजना, वार्ड क्रियान्वयन एवं प्रबंधन कमेटी और पंचायती राज व ग्रामीण कार्य विभाग के तमाम दावों के बावजूद महज 500 मीटर सड़क के पक्कीकरण के अभाव में करीब एक हजार की आबादी को रोजमर्रा की जिंदगी में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। यह स्थिति न केवल ग्रामीणों के लिए असुविधाजनक है, बल्कि क्षेत्र के समग्र विकास पर भी सवाल उठाती है।
अलीनगर गांव को राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच-30ए) से जोड़ने वाला संपर्क पथ आज भी आधा किलोमीटर तक कच्चा है। यह रास्ता न केवल अलीनगर, बल्कि कौशलपुर, मिरदाहाचक, लंघौरा और धर्मपुर जैसे आसपास के गांवों के लिए वैकल्पिक मार्ग के रूप में महत्वपूर्ण है। इस रास्ते पर सरकारी स्कूल भी स्थित है, जहां बच्चे रोजाना पढ़ने जाते हैं।
इसके अलावा किसान अपने खेतों तक यंत्र और उपकरण ले जाने के लिए इसी मार्ग का उपयोग करते हैं। लेकिन बारिश के मौसम में यह रास्ता कीचड़ का दलदल बन जाता है, जिससे वाहन फंस जाते हैं और आवागमन लगभग असंभव हो जाता है।
इस कच्ची सड़क की वजह से सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं और बच्चों को होती है। बारिश में कीचड़ भरे रास्ते पर चलना उनके लिए जोखिम भरा होता है। स्कूल जाने वाले बच्चों को गंदगी और फिसलन से जूझना पड़ता है, जबकि महिलाओं को बाजार या अन्य जरूरी कामों के लिए निकलने में मुश्किल होती है।
ग्रामीणों का कहना है कि कई बार वाहन फंसने के बाद उन्हें निकालने में घंटों लग जाते हैं, जिससे समय और संसाधनों की बर्बादी होती है। इस समस्या को बार-बार जनप्रतिनिधियों के सामने उठाया है। विधायक और सांसद का ध्यानाकर्षण कराने के साथ-साथ वरीय पदाधिकारियों को भी प्रस्ताव दिया गया है। लेकिन अब तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
मुख्यमंत्री सात निश्चय योजना के तहत गांवों में सड़क, नाली और गली के निर्माण के लिए बड़े-बड़े वादे किए गए हैं। पंचायती राज और ग्रामीण कार्य विभाग भी ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं के विकास का दावा करता है। लेकिन अलीनगर जैसे गांवों की स्थिति इन दावों की पोल खोलती है। ग्रामीणों का सवाल है कि जब महज 500 मीटर सड़क का पक्कीकरण नहीं हो पा रहा तो बड़े-बड़े विकास के दावों का क्या मतलब?
अलीनगर और आसपास के गांवों के लोग अब इस समस्या के स्थायी समाधान की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस सड़क के पक्कीकरण से न केवल उनकी रोजमर्रा की जिंदगी आसान होगी, बल्कि क्षेत्र में आर्थिक और सामाजिक विकास को भी गति मिलेगी। किसानों को अपने उत्पाद बाजार तक ले जाने में सुविधा होगी, बच्चों को स्कूल जाने में आसानी होगी और आपात स्थिति में चिकित्सा सेवाओं तक पहुंचना भी संभव हो सकेगा।
अलीनगर गांव की यह समस्या नालंदा जिले के कई अन्य गांवों की स्थिति का प्रतिबिंब है। विकास के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयान करती है। जरूरत है कि प्रशासन और जनप्रतिनिधि इस दिशा में त्वरित कार्रवाई करें और अलीनगर के लोगों को वह बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराएं, जो उनका हक है।
क्या सरकार और स्थानीय प्रशासन इस छोटी सी मांग को पूरा कर पाएंगे, या फिर अलीनगर के लोग अगले 20 साल भी इसी तरह कीचड़ में जिंदगी गुजारने को मजबूर रहेंगे? यह सवाल समय के साथ जवाब मांगता है।









