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उर्वरक की कालाबाजारी को लेकर 3 विक्रेताओं का लाइसेंस रद्द, 186 को शोकॉज

उर्वरक की कालाबाजारी से जुड़े सभी विक्रेताओं से दो दिनों के भीतर अपना पक्ष रखने को कहा गया है। अब तक कई विक्रेताओं ने अपनी दुकानें बंद रखने के कारण बताए हैं। लेकिन अधिकांश उत्तर संतोषजनक नहीं पाए गए हैं...

हिलसा (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले में उर्वरक की कालाबाजारी और कृत्रिम संकट को लेकर अब प्रशासन पूरी तरह सख्त हो गया है। जिले के 998 अधिकृत उर्वरक विक्रेताओं में से कई वर्षों से निष्क्रिय पड़े खुदरा दुकानदारों पर कृषि विभाग ने बड़ी कार्रवाई शुरू कर दी है।

जांच में सामने आया है कि कई विक्रेता सिर्फ कागजों पर लाइसेंस लेकर बैठे हैं। लेकिन न तो वे उर्वरक की खरीद कर रहे हैं और न ही बिक्री। इससे जहां थोक विक्रेताओं पर स्टॉक का दबाव बढ़ रहा है, वहीं किसानों को समय पर खाद नहीं मिल पा रही है।

इस गंभीर स्थिति को देखते हुए विभाग ने पांच वर्षों से एक भी बैग उर्वरक की खरीद-बिक्री नहीं करने वाले 186 खुदरा दुकानदारों को शोकॉज नोटिस जारी किया है। वहीं तीन विक्रेताओं के लाइसेंस पहले ही रद्द कर दिए गए हैं।

सभी विक्रेताओं से दो दिनों के भीतर अपना पक्ष रखने को कहा गया है। अब तक कई विक्रेताओं ने अपनी दुकानें बंद रखने के कारण बताए हैं। लेकिन अधिकांश उत्तर संतोषजनक नहीं पाए गए हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए जिला स्तरीय जांच कमिटी का गठन किया गया है, जो दिए गए स्पष्टीकरण की गहन जांच करेगी।

कमिटी को साफ निर्देश दिए गए हैं कि कार्रवाई से पहले विक्रेताओं का पक्ष जरूर जाना जाए। लेकिन यदि कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाता है या फर्जी कारण बताता है तो उसका लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा।

कृषि विभाग का साफ कहना है कि जो विक्रेता व्यवसाय नहीं कर रहे हैं, उनके लाइसेंस का कोई औचित्य नहीं रह गया है। ऐसे लाइसेंस रद्द कर नए और सक्रिय लोगों को लाइसेंस देने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। ताकि किसानों को खाद की किल्लत से मुक्ति मिल सके।

कृषि विभाग के अधिकारियों ने साफ किया है कि यदि कोई निष्क्रिय विक्रेता भविष्य में नियमित रूप से उर्वरक की बिक्री करने की गारंटी देता है तो उसके अनुरोध पर विचार किया जा सकता है। लेकिन केवल कागज पर दुकान चला रहे लोगों को बख्शा नहीं जाएगा।

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