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आजादी की फिजां में आज भी गूंजती है महान सेनानियों में शुमार इस्लामपुर के डॉ. चांद बाबू की वीरगाथा

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The heroic tale of Dr. Chand Babu of Islampur, one of the great fighters of freedom, still resonates in the air

बिहार शरीफ (नालंदा दर्पण)। सैकड़ों वर्षों से गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ भारत सन 1947 में आजाद हुआ। यह आजादी लाखों लोगों के त्याग और बलिदान के कारण संभव हो पाईं। इन महान लोगों ने अपना तन-मन-धन त्यागकर देश की आजादी के लिए सब कुछ न्योछावर कर दिया। अपने परिवार, घर-बार और दुःख-सुख को भूल, देश के कई महान सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी, ताकि आने वाली पीढ़ी स्वतंत्र भारत में चैन की सांस ले सके।

स्वतंत्रता आन्दोलन में समाज के हर तबके और देश के हर भाग के लोगों ने हिस्सा लिया। स्वतंत्र भारत का हरेक व्यक्ति आज इन वीरों और महापुरुषों का ऋणी है, जिन्होंने अपना सब कुछ छोड़ सम्पूर्ण जीवन देश की आजादी के लिए समर्पित कर दिया। भारत माता के ये महान सपूत आज हम सब के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। इनकी जीवन गाथा और उनके संघर्षों की बार-बार याद दिलाती है और प्रेरणा देती है।

ऐसे हीं स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल है इस्लामपुर के डॉ. चांद बाबू, जिन्होंने दमनकारी अंग्रेजी हुकूमत से लड़कर देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डा. लक्ष्मीचंद वर्मा उर्फ चांद बाबू, जो इस्लामपुर के स्वतंत्रता सेनानियों की अगली पंक्ति में आते थे। वर्ष 1942 में गांधी जी के शंखनाद के बाद अंग्रेज भारत छोड़ो आंदोलन से प्रभावित होकर उन्होंने अंग्रेजी झंडा को हटाकर इसलामपुर थाना में भारतीय तिरंगा फहरा दिया था।

कहते हैं कि उस समय इस्लामपुर थाना के तात्कालीन थाना प्रभारी नरसिंह सिंह ने चांद बाबू पर अपनी रायफल तान दी थी। मगर वे भयभीत नहीं हुए और अपनी जज्बा से उस थानेदार का रवैया नरम कर दिया था।

डा. लक्ष्मीचंद वर्मा का जन्म वर्ष 1902 में इस्लामपुर के एक जमींदार परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा जीएमके हाई स्कूल इस्लामपुर से शुरु की। उसके बाद बनारस हिंदू विश्वविधालय से शिक्षा ग्रहण कर पटना मेडिकल कॉलेज के वर्ष 1926 में छात्र बने और यहाँ से पढाई पूरी कर डाक्टर बने और गरीबों की सेवा में जुट गये। ये उस समय के ऐसे डॉक्टर थे, जो मरीजों का इलाज मुफ्त करने के साथ साथ दवाई भी मुफ्त देते थे।

इसके आलावे वे स्वदेश प्रेम, भगवान बुद्ध के समान करुणा एंव महावीर के समान अहिंसा परमोधर्म के जबरदस्त अनुयायी बने और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आहवान पर स्वतंत्रता संग्राम की लडाई लड़ने में सिपाहियों की मदद करने लगे।

इतना हीं नहीं, तब इनका घर एक तरह से क्रांतिकारियों का अड्डा बन गया था और अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी की स्थापना के बाद काफी दिनों तक इस्लामपुर थाना क्षेत्र के कांग्रेस अध्यक्ष बने रहे। गांधी जी ने देश की आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी का अस्तित्व समाप्त करने की घोषणा के आलोक में आजादी के बाद इन्होंने अपना इस्तीफा महात्मा गांधी को भेज दिया।

इनके घर पर श्री बाबू, अनुग्रह बाबू, वीर सावरकर, आचार्य कृपालानी, डा. लालसिंह त्यागी, विनोबा भावे जैसे तमाम व्यक्ति हमेशा आते रहते थे। इन्हें श्री कृष्णबाबू ने विधायक का चुनाव लड़ने के लिए अनुरोध किया। परंतु उन्होंने मना कर दिया और कहा कि वे समाज की सेवा नेता से अधिक एक चिकित्सक के रुप में अधिक कर सकेगें।

लोग बताते है कि आजादी के बाद श्री बाबू के मंत्री के रुप में उत्पाद मंत्री जगलाल चौधरी खुदागंज कार से पहुँचे तो भरी सभा में डाक्टर साहब उनपर बिगड़ गए। उन्होंने मंत्री से कहा कि गांधी के आदर्श पर चलने की बात करते हो और कार से चलते हो। उन्होंने वर्ष 1957 में बिहारशरीफ के पास दीपनगर में अनुसूचित जाति के बच्चों को पढने के लिए अपनी जमीन भी दान कर दी।

कहते है कि जिस समय एमबीबीएस की डिग्री लेकर चांद बाबू इस्लामपुर आए थे, उस समय गरीब जनता नीम हाकिमों की गिरफ्त में छटपटा रही थी और उस समय इस क्षेत्र में कई कोसो दूर तक उनके सरीखे कोई डाक्टर नहीं थे। लेकिन इस्लामपुर का चमकता यह चांद आजादी दिवस 15 अगस्त, 1947 के महज छह दिन बाद 21 अगस्त 1974 को सदा के लिए लुप्त हो गया।

अमर स्वतंत्रता सेनानी एवं महान समाजसेवी स्व. चांद बाबू की पुत्री प्रीती सिन्हा बताती हैं कि मां रामप्यारी देवी का भी स्वर्गवास हो गया है। वे लोग पांच बहन एंव दो भाई है। जिसमें जीवन कपुर जमशेदपुर में रहती है तो वही अमर कंडन बंगलौर में तथा सरोज महरोत्रा पटना में और सीता तलवार दिल्ली में रहते है। एक भाई डॉ. जवाहर लाल सरीन लंदन में तथा दूसरे भाई अमरनाथ सरीन पटना में रहते है और दोनों भाई के साथ-साथ परिवार के लोग समय समय पर अपने पैतृक घर इस्लामपुर आते-जाते रहते है।

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