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    Friday, April 18, 2025
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      हिमालयन बॉर्डर पर दो दिवसीय सेमिनार: भारत-नेपाल-तिब्बत संबंधों पर गहन चर्चा

      Two-day seminar on Himalayan border In-depth discussion on India-Nepal-Tibet relations
      Two-day seminar on Himalayan border In-depth discussion on India-Nepal-Tibet relations

      राजगीर (नालंदा दर्पण)। नालंदा विश्वविद्यालय में हाल ही में आयोजित दो दिवसीय सेमिनार ‘हिमालयन बॉर्डर: इंडो-नेपाल-तिब्बत’ में सीमा सुरक्षा, राजनीतिक महत्व और सांस्कृतिक संबंधों पर व्यापक चर्चा हुई। इस सेमिनार में भारत और हिमालयी देशों के बीच ऐतिहासिक, रणनीतिक और सांस्कृतिक रिश्तों को रेखांकित किया गया।

      सेमिनार में भारतीय सेना के मध्य कमांड के जेनरल ऑफीसर इन कमांड लेफ्टिनेंट जनरल अनिंद्य सेनगुप्ता (पीवीएसएम, यूवाइएसएम, एवीएसएम, वाइएसएम) ने मुख्य वक्ता के रूप में हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि भारत के तिब्बत और नेपाल के साथ संबंध आने वाले समय में और मजबूत होने की संभावना है।

      उन्होंने हिमालय को भारत के लिए एक प्राकृतिक सीमा के रूप में चिह्नित करते हुए कहा कि यह पर्वत श्रृंखला न केवल भौगोलिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि रणनीतिक, सांस्कृतिक और सुरक्षा के लिहाज से भी भारत के पड़ोसी देशों- चीन, नेपाल और तिब्बत के साथ संबंधों को प्रभावित करती है। हिमालय भारत और चीन के बीच एक प्रमुख विभाजन रेखा है। लेकिन वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लेकर तिब्बत, अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख जैसे क्षेत्रों में विवाद बना हुआ है। इन विवादों के कारण दोनों देशों के बीच कई बार तनाव की स्थिति उत्पन्न हुई है।

      नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अभय कुमार सिंह ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि नेपाल, तिब्बत और भूटान जैसे हिमालयी देशों के साथ भारत के ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध हमेशा से घनिष्ठ रहे हैं। भारत इन देशों के बुनियादी ढांचे के विकास और सुरक्षा में सक्रिय रूप से सहयोग करता है। जम्मू-कश्मीर के लेह-लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक नेपाल और तिब्बत की सीमाएं भारत को रणनीतिक और कूटनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती हैं।

      इस सेमिनार में भारत और तिब्बत के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं पर भी प्रकाश डाला गया। विशेषज्ञ क्लाउड अर्पी ने कहा कि भारत और तिब्बती परंपराएं धर्म, व्यापार और सांस्कृतिक विनिमय से गहरे जुड़ी हैं। उत्तराखंड और हिमाचल जैसे मध्य हिमालयी क्षेत्रों में बौद्ध मठ, तिब्बती शरणार्थी समुदाय और व्यापारिक मार्ग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पश्चिमी तिब्बत में कालापानी-लिपुलेख मार्ग ऐतिहासिक व्यापार का केंद्र रहा है। बौद्ध धर्म, तांत्रिक परंपराएं और तिब्बती भाषा भारत के हिमालयी क्षेत्रों से घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई हैं।

      नालंदा विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. प्रांशु समदर्शी ने तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रसार में नालंदा की ऐतिहासिक भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि सातवीं से ग्यारहवीं शताब्दी के बीच नालंदा के विद्वानों जैसे आचार्य शांतिदेव, पद्मसंभव और अतीश दीपंकर ने तिब्बत में बौद्ध शिक्षा, तंत्र विद्या और महायान परंपरा को बढ़ावा दिया। इन विद्वानों ने संस्कृत ग्रंथों का तिब्बती भाषा में अनुवाद किया, जिससे तिब्बत में महायान और वज्रयान बौद्ध परंपराएं विकसित हुईं, जो आज भी वहां प्रचलित हैं।

      वहीं भारत-नेपाल संबंधों पर चर्चा करते हुए विशेषज्ञ अशोक सज्जनहार ने कहा कि दोनों देश इतिहास, धर्म और संस्कृति की गहरी जड़ों से जुड़े हैं। प्राचीन काल में मिथिला और मगध जैसे क्षेत्रों का आपसी संबंध रहा है। गौतम बुद्ध और भगवान राम दोनों देशों की साझा विरासत का हिस्सा हैं।

      रंजीत राय ने नेपाल को सनातन हिंदू संस्कृति का केंद्र बताते हुए पशुपतिनाथ मंदिर, काशी और जनकपुर जैसे धार्मिक स्थलों का उल्लेख किया। सांस्कृतिक रूप से भाषा, भोजन, संगीत और परंपराएं समान हैं, जबकि “रोटी-बेटी” का रिश्ता दोनों देशों के बीच विवाह संबंधों को दर्शाता है।

      दिलीप सिन्हा ने भारत के विकास में हिमालयी सीमाओं के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि प्राचीन काल में ये व्यापार मार्ग थे, मध्यकाल में रक्षात्मक ढाल बने और आज ये सुरक्षा और जल संसाधनों का आधार हैं। स्वतंत्रता के बाद भारत ने सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के माध्यम से सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को मजबूत किया है। हालांकि चीन और नेपाल से जुड़ी सीमाएं भू-राजनीतिक चुनौतियां भी पेश करती हैं।

      अन्य वक्ताओं ने भी भारत और नेपाल के सैन्य संबंधों को ऐतिहासिक रूप से मजबूत बताया और कहा कि दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग और प्रशिक्षण कार्यक्रम लंबे समय से चल रहे हैं। हालांकि सीमा सुरक्षा और क्षेत्रीय विवादों जैसे मुद्दे चुनौतियां भी उत्पन्न करते हैं।

      इस सेमिनार में भारतीय सेना के कई वरिष्ठ अधिकारी और विशेषज्ञ शामिल हुए, जिनमें लेफ्टिनेंट जनरल अनिंद्य सेनगुप्ता, लेफ्टिनेंट जनरल शौकिन चौहान, मेजर जनरल विकास भारद्वाज, लेफ्टिनेंट जनरल पीएस शेखावत, लेफ्टिनेंट जनरल डीजी मिश्रा, अभिजीत हलधर, एडीजी कुन्दन कृष्णनन, मेजर जनरल जॉय बिस्वास, ब्रिगेडियर एन.के. सांगवान, कर्नल एनजी शिमरई, लेफ्टिनेंट कर्नल इमरान खान, कर्नल अंकुर सिंह, ब्रिगेडियर आरके सिंह और चंडीगढ़ के कैप्टन अरमान वर्मा जैसी प्रमुख हस्तियां शामिल थीं।

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