विश्व शांति स्तूप की 56वीं वर्षगांठ: अहिंसा ही विश्व की समस्याओं का एकमात्र समाधान

राजगीर (नालंदा दर्पण)। बिहार के ऐतिहासिक शहर राजगीर में स्थित विश्व शांति स्तूप की 56वीं वर्षगांठ धूमधाम से मनाई गई। इस अवसर पर बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की और महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं को विश्व की वर्तमान समस्याओं का सर्वोत्तम समाधान बताया।

उन्होंने जोर देकर कहा कि बुद्ध का अहिंसा, करुणा और प्रज्ञा का मार्ग ही शांति, भाईचारा और वैश्विक सद्भाव की स्थापना का एकमात्र साधन है। कार्यक्रम में जापान सहित कई देशों के बौद्ध भिक्षुओं ने पारंपरिक पूजा-अर्चना की, जो भारत-जापान मैत्री का जीवंत प्रतीक बनकर उभरा।

कार्यक्रम की शुरुआत जापान और अन्य देशों के बौद्ध भिक्षुओं द्वारा पारंपरिक पूजा-अर्चना से हुई। मुख्य मंच पर राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने अपने उद्बोधन में कहा कि महात्मा बुद्ध के अहिंसा, करुणा और प्रज्ञा के संदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे। भारत-जापान मैत्री का प्रतीक यह विश्व शांति स्तूप 56 वर्षों से शांति और विश्वबंधुत्व का संदेश दे रहा है।

राज्यपाल ने राजगीर की ऐतिहासिक महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि प्राचीन मगध की राजधानी राजगीर बौद्ध धर्म के पवित्र स्थलों में अग्रणी है। यहीं भगवान बुद्ध ने द्वितीय धर्मचक्र प्रवर्तन किया था और सद्धर्मपुंडरीक सूत्र अर्थात सत्य धर्म का कमल उपदेश दिया था। उन्होंने कहा कि यह स्थल अहिंसा, मैत्री और करुणा की जीवंत परंपरा का प्रतीक है।

बता दें कि विश्व शांति स्तूप का शिलान्यास 6 मार्च 1965 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एस. राधाकृष्णन ने किया था, जबकि उद्घाटन 25 अक्टूबर 1969 को राष्ट्रपति वी. वी. गिरि ने बौद्ध गुरु दलाई लामा की उपस्थिति में संपन्न किया। जापान द्वारा बिहार को भेंट स्वरूप दिया गया राजगीर का रोपवे दोनों देशों की गहरी मित्रता का प्रतीक है।

राज्यपाल ने आगे कहा कि बुद्ध की शिक्षाएं मानवतावाद और सार्वभौमिक करुणा की मिसाल हैं। उनका उद्देश्य आत्मनिर्भर और आत्म-प्रबुद्ध मनुष्य का निर्माण था। आज की दुनिया में जब अहंकार और हिंसा बढ़ रही है, बुद्ध के शांति, दया और दान के सिद्धांत अधिक आवश्यक हैं।

राज्यपाल ने पंचशील सिद्धांतों पर आधारित भारत की विदेश नीति को बौद्ध विचारों से प्रेरित बताते हुए कहा कि यह सह-अस्तित्व की भावना को बढ़ावा देती है। बुद्ध का संदेश स्पष्ट है। सच्चा सुख मन की शांति में निहित है, जो लोभ, घृणा और मोह के त्याग तथा करुणा, दान और शांति के पालन से प्राप्त होती है। वैश्विक स्तर पर बढ़ते संघर्षों के बीच बुद्ध का मार्ग ही स्थायी शांति का आधार बन सकता है।

निप्पोन्जिन म्योहोजी के वरिष्ठ भिक्षु अस्सी ने कार्यक्रम में कहा कि अगर बुद्ध की उच्च आध्यात्मिकता और धार्मिक सद्भाव की शिक्षाएं स्वतंत्र भारत की राष्ट्रीय नीति में समाहित नहीं होतीं तो यह शांति स्तूप अस्तित्व में नहीं आता।

उन्होंने प्राचीन जापान का उदाहरण देते हुए बताया कि बुद्ध की शिक्षाओं के अनुसार ‘सद्भाव के साथ सम्मान’ और ‘त्रिरत्नों का ईमानदारी से पालन’ करके जापान ने शांतिपूर्ण राष्ट्र और विकसित संस्कृति की नींव रखी थी।

भिक्षु अस्सी ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को याद करते हुए कहा कि अहिंसा और त्याग के सिद्धांत अपनाकर भारत ने आजादी हासिल की। कार्यक्रम में इतिहास की झलकियां दिखाते हुए उन्होंने बताया कि लोग ऊँची आवाज में ‘ना-म्यु-हो-रेंगे-क्यो’ लोटस सूत्र जाप करते, ढोल बजाते और बुद्ध एवं विश्वभर के लोगों के साथ सद्भावपूर्ण जीवन की कामना करते हैं।

इस अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम में महाबोधि महाविहार एवं अन्य स्थलों से आए बौद्ध भिक्षुओं ने पूजा-अर्चना की। जापान के अलावा कई देशों के बौद्ध अनुयायी शामिल हुए, जो वैश्विक सद्भाव का संदेश दे रहे थे।

जापान की सेंटोक कंपनी लिमिटेड के सीईओ कैसुके होरियुची ने कहा कि यह स्तूप सम्मान और आध्यात्मिक एकता का प्रतीक है। 1931 में संत निचिरेन की भविष्यवाणी कि जापान का बौद्ध धर्म भारत लौटेगा, उससे प्रेरित होकर भिक्षु निचिदात्सु फूजी गुरुजी ने विश्वशांति स्तूप का निर्माण कराया। इसका उद्देश्य बुद्ध के उपदेशों को प्रसारित कर विश्व में शांति, सद्भाव और करुणा का प्रसार करना है।

होरियुची ने बताया कि यह पवित्र स्थल हर वर्ष 14 लाख से अधिक श्रद्धालुओं और पर्यटकों का स्वागत करता है। वर्तमान वैश्विक परिदृश्य पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि आज यूक्रेन और मध्य पूर्व के संघर्षों से विश्व में अविश्वास और हथियारों की दौड़ बढ़ी है, जो शांति के लिए खतरा है। ऐसे में मानवता को सहयोग, आपसी विश्वास और धर्म के प्रकाश से स्थायी शांति की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए, ताकि संसार में प्रेम, सद्भाव और करुणा का वातावरण स्थापित हो सके।

इस कार्यक्रम में पटना प्रक्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक जितेंद्र राणा, डीएम कुंदन कुमार, एसपी भारत सोनी, सहायक पर्यटन निदेशक केशरी कुमार, डॉ. श्वेता महारथी, एसडीओ आशीष नारायण, डीएसपी सुनील कुमार सिंह एवं अन्य प्रमुख लोग शामिल हुए।

जिन्होंने एक सुर में कहा कि विश्व शांति स्तूप की यह वर्षगांठ न केवल बौद्ध धर्म की समृद्ध विरासत को जीवंत करती है, बल्कि वैश्विक स्तर पर शांति और सद्भाव की आवश्यकता को रेखांकित करती है। बुद्ध के संदेश से प्रेरित होकर राष्ट्र निर्माण और वैश्विक एकता की दिशा में आगे बढ़ना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।

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