“राजगीर रुक्मिणी स्थान के रहस्यमयी अतीत को जानने की यह यात्रा निश्चित रूप से इतिहास प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए एक रोचक अध्याय जोड़ने वाली है…
राजगीर (नालंदा दर्पण)। नव नालंदा महाविहार और नालंदा खुला विश्वविद्यालय के निकट स्थित राजगीर रुक्मिणी स्थान एक बार फिर चर्चा में है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) पटना अंचल द्वारा इस ऐतिहासिक स्थल पर दूसरी बार उत्खनन किया जाएगा। अधीक्षण पुरातत्वविद सुजीत नयन ने विधिवत पूजा-अर्चना के साथ इस अभियान की शुरुआत की है।
रुक्मिणी स्थान नालंदा जिले के जगदीशपुर गांव में स्थित है। यह अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार यह स्थान भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के प्रेम का प्रतीक है। यहां उनका मिलन हुआ था। लेकिन वर्तमान में इस स्थल पर महात्मा बुद्ध की भव्य प्रतिमा स्थापित है। जो इसके बौद्ध इतिहास की ओर संकेत करती है।
पहले उत्खनन में इस स्थल से बुद्ध की प्राचीन प्रतिमा, स्तूप, कमरे, गलियारे, मिट्टी के बर्तन और जले हुए टुकड़े जैसे अनेक अवशेष प्राप्त हुए थे। ये खोजें इस बात को प्रमाणित करती हैं कि यह स्थल 450 ई. पूर्व के गुप्त, हर्षवर्धन और पाल वंश के शासनकाल से जुड़ा हुआ है।
रुक्मिणी स्थान के शीर्ष पर एक आधुनिक मंदिर है। यहां बुद्ध की काली बेसाल्ट की प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा पाल काल की उत्कृष्ट कला को दर्शाती है। प्रतिमा के स्तंभों पर बुद्ध के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं जन्म से महापरिनिर्वाण तक अंकित हैं। आधार पर मार-विजय (मारा पर विजय) का दृश्य विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
अधीक्षण पुरातत्वविद सुजीत नयन के अनुसार इस बार का उत्खनन अधिक गहराई तक जाकर स्थल की संरचना और इतिहास को बेहतर ढंग से समझने का प्रयास करेगा। यह स्थल प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के भग्नावशेष से महज दो किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है और टीले का माप लगभग 200×175 मीटर है।
स्थानीय लोग इस स्थल को पवित्र मानते हैं और इसके प्रति गहरी आस्था रखते हैं। उनका मानना है कि रुक्मिणी स्थान न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का केंद्र है।
यह उत्खनन न केवल इस स्थल के अतीत से पर्दा उठाएगा बल्कि भारत के गौरवशाली इतिहास को और समृद्ध करेगा। ASI के इस प्रयास से पर्यटन को भी बढ़ावा मिलने की संभावना है। यह राजगीर और नालंदा क्षेत्र को वैश्विक नक्शे पर और मजबूत करेगा।
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