बिहार शरीफ (नालंदा दर्पण)। बिहार राज्य खाद्य निगम के गोदामों में श्रमिकों की तीन दिवसीय सांकेतिक हड़ताल शुरू हो गई है। जिससे राज्य की खाद्यान्न वितरण व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हो रही है। श्रमिकों ने न्यूनतम मजदूरी, पारदर्शी भुगतान और श्रम कानूनों के पालन की मांग को लेकर यह कदम उठाया है।
मजदूरी विवाद के केंद्र में हैं श्रमिकों की मांगः श्रमिकों का आरोप है कि राज्य खाद्य निगम न्यूनतम मजदूरी अधिनियम का उल्लंघन कर रहा है। वर्तमान में श्रम संसाधन विभाग द्वारा अधिसूचित न्यूनतम मजदूरी 11.64 रुपए प्रति बैग है, लेकिन निगम केवल 4.55 रुपए प्रति बैग भुगतान कर रहा है। इसके अलावा मजदूरी से 29% जबरन कटौती भी श्रमिकों के आक्रोश का प्रमुख कारण है। श्रमिकों ने दावा किया कि यह कटौती न केवल अनुचित है, बल्कि इसका कोई स्पष्ट और पारदर्शी हिसाब-किताब भी नहीं दिया जा रहा है।
हाई कोर्ट के आदेशों की अनदेखी का आरोपः श्रमिकों ने बिहार उच्च न्यायालय के पूर्व के आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि न्यूनतम मजदूरी से कम भुगतान करना कानून का उल्लंघन है। साथ ही यह न्यायालय के निर्देशों की भी अवमानना है। श्रमिकों की अन्य मांगों में भविष्य निधि (पीएफ), कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई) लाभ और मजदूरी कटौती की पारदर्शिता शामिल है।
वार्ता विफल, हड़ताल शुरूः श्रमिकों और निगम प्रबंधन के बीच 30 नवंबर तक द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय वार्ताओं का दौर चला। लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका। नतीजतन श्रमिकों ने एक दिसंबर से तीन दिसंबर तक सांकेतिक हड़ताल का निर्णय लिया। इस हड़ताल के चलते खाद्यान्न गोदामों से लोडिंग और अनलोडिंग पूरी तरह ठप हो गई है। जिससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से गरीब तबके तक खाद्यान्न की आपूर्ति में बाधा आ सकती है।
प्रबंधन और श्रमिक आमने-सामनेः निगम प्रबंधन का कहना है कि वह श्रमिकों की मांगों पर विचार कर रहा है। लेकिन वितरण व्यवस्था बनाए रखना उनकी प्राथमिकता है। दूसरी ओर श्रमिक संघ ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगों को जल्द पूरा नहीं किया गया, तो यह सांकेतिक हड़ताल एक बड़े आंदोलन का रूप ले सकती है।
जनता की चिंता बढ़ीः इस हड़ताल से पीडीएस लाभार्थियों और ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्यान्न वितरण बाधित होने की आशंका है। कई परिवारों ने पहले ही चावल और गेहूं की आपूर्ति में देरी की शिकायत की है।
बहरहाल, यह स्थिति बिहार की वितरण व्यवस्था के लिए एक गंभीर चेतावनी है। यदि प्रबंधन और श्रमिकों के बीच जल्द समझौता नहीं होता तो यह न केवल खाद्यान्न आपूर्ति को बाधित करेगा, बल्कि राज्य की प्रशासनिक साख पर भी सवाल खड़ा करेगा।
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