
इस्लामपुर (नालंदा दर्पण संवाददाता)। नालंदा जिले के इस्लामपुर प्रखंड में बसा वरदाहा पंचायत, जो 14 गांवों का एक विशाल समूह हैं, विकास की चकाचौंध वाली बातों के बीच वास्तविकता की कठोर सच्चाई जी रहा हैं। यहां पंचायत भवन, सड़कें, बिजली और स्कूल जैसी बुनियादी सुविधाएं तो मौजूद हैं, लेकिन स्वास्थ्य, शिक्षा और सिंचाई जैसी जरूरी सेवाओं की कमी ग्रामीणों के जीवन को कष्टमय बना रही हैं।

जिला मुख्यालय से मात्र 52 किलोमीटर दूर इस पंचायत की आबादी 11,207 हैं और साक्षरता दर मात्र 54.04 प्रतिशत हैं। जोकि सरकारी योजनाओं के ‘कागजी विकास’ का शिकार बनी हुई हैं। यहां ग्रामीणों की आवाजें गूंज रही हैं कि यह संघर्ष कब समाप्त होगा?
वरदाहा पंचायत के 14 गांव वरदाहा, नरायणपुर, नवावगंज, वेगमपुर, मखदुमपुर, शंकर विगहा, पचरुखिया, खरजमा, कटवारसलपुर, विरजू विगहा, अर्जुन सरथुआ सराय, अर्जुन सरथुआ डीह, परमानंदपुर और तकियापर एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, लेकिन इनकी समस्याएं अलग-अलग मोर्चों पर बिखरी पड़ी हैं।
पंचायत में सामुदायिक भवन हैं, जो ग्रामीणों की सभाओं का केंद्र बनता हैं और बिजली की लाइनें भी खिंची हुई हैं। शिक्षा के क्षेत्र में छह स्कूलों की मौजूदगी सराहनीय हैं। वरदाहा में उत्क्रमित मध्य विद्यालय, सरथुआ सराय में उच्च माध्यमिक विद्यालय, कटवारसलपुर में उत्क्रमित मध्य विद्यालय तथा सरथुआ डीह, वेगमपुर और पचरुखिया में प्राथमिक विद्यालय।
कुल 13 वार्डों में से अधिकांश में आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हो रहे हैं, जो बच्चों को पोषण और प्रारंभिक शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। लेकिन यह सब कुछ सतही लगता हैं, जब गहराई में उतरें तो समस्याओं का अंबार नजर आता हैं।
सबसे बड़ी चिंता हैं स्वास्थ्य सेवाओं की। पंचायत में कोई समर्पित अस्पताल नहीं हैं, जिसके कारण बीमार पड़ने पर ग्रामीणों को 10 किलोमीटर दूर इस्लामपुर के स्वास्थ्य केंद्र तक पैदल या जर्जर सड़कों पर सफर करना पड़ता हैं। पचरुखिया गांव के पास खुदागंज में अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र तो हैं, जहां सामान्य इलाज हो जाता हैं, लेकिन विशेष सुविधाओं जैसे एक्स-रे, लेबरेटरी या विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी से मरीजों को और परेशानी झेलनी पड़ती हैं।
वरदाहा गांव के निवासी अजय यादव बताते हैं कि हमारे गांव में छोटी-मोटी बीमारी तो घर पर ही ठीक हो जाती हैं, लेकिन गंभीर समस्या में रात के अंधेरे में 10 किमी की दूरी तय करना जानलेवा साबित हो सकता हैं। सरकार की ‘आयुष्मान भारत’ योजना का लाभ तो मिल रहा हैं, लेकिन पहले तो अस्पताल पहुंचना ही पड़ता हैं!”
शिक्षा और बच्चों के पोषण का मामला भी उतना ही दर्दनाक हैं। 13 वार्डों में से वार्ड नंबर 1 (बिरजू बिगहा), वार्ड नंबर 4 (वरदाहा पश्चिमी) और वार्ड नंबर 8 (कटवारसलपुर-खरजमा) में आंगनबाड़ी केंद्र का अभाव हैं। इन गांवों के बच्चे शिक्षा के साथ-साथ पोषण जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।
बिरजू बिगहा के मिथलेश यादव, श्यामदेव यादव, फगू यादव, मनोज कुमार और प्रमोद कुमार आदि शिकायत करते हैं कि बच्चों को दूसरे केंद्रों पर भटकना पड़ता हैं। इससे न सिर्फ समय बर्बाद होता हैं, बल्कि उनकी पढ़ाई और स्वास्थ्य दोनों प्रभावित होते हैं। साक्षरता दर 54 प्रतिशत होने के बावजूद, अगर आंगनबाड़ी न हो तो भविष्य कैसे संवारेगा? खरजमा के अशोक पासवान और श्री वल्लभ यादव भी कहते हैं कि यह कमी ग्रामीण बच्चों के विकास में सबसे बड़ी बाधा हैं।
सड़कों की हालत तो और भी खराब हैं। इस्लामपुर-राजगीर मुख्य मार्ग से कटवारसलपुर गांव तक जुड़ने वाली सड़क जर्जर हो चुकी हैं। वाहन चालकों के लिए यह ‘डेथ ट्रैप’ बन गई हैं। कीचड़, गड्ढे और टूटे-फूटते पुल ग्रामीणों की जिंदगी को जोखिम में डाल रहे हैं।
कटवारसलपुर के रंजीत यादव, दीलीप कुमार, मुकेश कुमार सिंह, ललेश सिंह, सदनलाल सिंहा और मुंद्रिका सिंह बताते हैं कि यहां हर रोज दुर्घटनाएं हो रही हैं। बरसात के मौसम में तो हालत और बिगड़ जाती हैं। वरदाहा गांव के पास रेलवे लाइन के नीचे बना पुराना पुल पानी का निकास नहीं होने देता, जिससे सड़क पर जलजमाव हो जाता हैं। इससे न सिर्फ हमारा, बल्कि पड़ोसी वौरीडीह और सुढी पंचायत के लोगों का आवागमन ठप हो जाता हैं।
वरदाहा के अजय यादव, अनील पासवान, कमलेश यादव, नूनू उर्फ अवधेश यादव, गुरुचरण प्रसाद और संजय महतो ने भी इस समस्या को रेखांकित किया कि यह पुल टूटने की कगार पर हैं। अगर समय रहते मरम्मत न हुई, तो बड़ा हादसा हो सकता हैं।
कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था वाले इस क्षेत्र में सिंचाई की व्यवस्था भी लचर हैं। सरकारी तौर पर दो नलकूप लगाए गए हैं। नवावगंज वाला तो चालू हैं, लेकिन वरदाहा, मखदुमपुर और पचरुखिया के नलकूप बंद पड़े हैं।
मखदुमपुर के अवधेश यादव, मोहन यादव, गुडू यादव, अनील यादव और मुनीलाल ने दुख जताया कि खेतों की पटवन के लिए नलकूप बंद होने से फसलें सूख रही हैं। किसान मजबूरन वर्षा पर निर्भर हैं, जो अनिश्चित हैं। नल जल की स्थिति भी चिंताजनक हैं। आधे-अधूरे गांवों में ही पानी पहुंच पाता हैं, बाकी जगह सूखे का सामना करना पड़ता हैं।
पंचायत भवन को विकास का केंद्र होना चाहिए, लेकिन यहां भी उदासीनता का बोलबाला हैं। तैनात कर्मचारी ‘यदाकदा’ नजर आते हैं, जिससे ग्रामीणों को छोटे-मोटे कार्यों के लिए प्रखंड कार्यालय तक हार-थककर भागना पड़ता हैं। ग्रामीणों का आरोप हैं कि कर्मी खानापूर्ति में लगे रहते हैं और इसका खामियाजा आम जनता भुगत रही हैं। हालांकि, पचरुखिया गांव के पास श्री राम जानकी मंदिर और तालाब जैसे धार्मिक-पर्यटन स्थल सकारात्मक पहलू हैं, जो ग्रामीणों को कुछ सुकून देते हैं।









