हिलसा (नालंदा दर्पण)। बिहार की मिट्टी में बसी लोक आस्था का सबसे बड़ा प्रतीक चार दिवसीय कार्तिक छठ महापर्व अब अपने पूरे वैभव के साथ शुरू हो चुका है। नालंदा जिले के हिलसा में स्थित ऐतिहासिक सूर्य मंदिर छठ घाट इस पर्व का केंद्र बिंदु बन गया है, जहां सूर्य देव की उपासना के साथ-साथ प्राचीन किवदंतियां, लोक मान्यताएं और परंपराएं जीवंत हो उठती हैं।
पहले दिन ‘नहाय-खाय’ के साथ व्रतियों ने इस पवित्र व्रत की शुरुआत की तो शहर से लेकर ग्रामीण अंचलों तक उत्साह की लहर दौड़ गई। लेकिन यह पर्व सिर्फ पूजा-उपासना तक सीमित नहीं है, अपितु इसमें छिपी हैं वे लोक कथाएं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं और सूर्य देव को जीवनदाता मानते हुए उनकी कृपा की कामना करती हैं।
नहाय-खाय से खरना तक महाव्रत की कठोर साधना
पर्व की शुरुआत बीते शनिवार को ‘नहाय-खाय’ से हुई। सुबह-सुबह घरों की साफ-सफाई के बाद व्रतियों ने पवित्र स्नान किया और विधि-विधान से भगवान भास्कर की पूजा अर्चना की। प्रसाद के रूप में कद्दू भात और चने की दाल तैयार की गई, जिसे सबसे पहले सूर्य देव को अर्पित किया गया। इसके बाद व्रती ने स्वयं ग्रहण किया और फिर परिवारजन तथा पड़ोसी इसे प्रसाद रूप में खाकर आशीर्वाद लिया।
लोक मान्यता है कि इस प्रसाद को खाने से घर में सुख-समृद्धि आती है और सूर्य देव की किरणें रोगों से रक्षा करती हैं। हिलसा के बुजुर्ग बताते हैं कि प्राचीन काल में जब सूखा पड़ता था तो व्रती इसी प्रसाद से सूर्य देव को मनाते थे और बारिश की पहली बूंदें इसी पर्व पर आती थीं। यह किवदंती आज भी जीवित है।
अब व्रतियों की नजर आज रविवार को होने वाले ‘खरना’ पर टिकी है। आज व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखेंगी और शाम को गुड़ की खीर, दूध, चावल का पीठा और घी लगी रोटी बनाएंगी। छठी मइया को यह प्रसाद चढ़ाने के बाद व्रती इसे तोड़ेंगी और स्वजनों तथा आसपास के लोगों में बांटेंगी।
खरना के साथ ही शुरू होता है 36 घंटे का कठोर निर्जला उपवास, जो सोमवार शाम डूबते सूर्य को पहले अर्घ्य और मंगलवार सुबह उगते सूर्य को दूसरे अर्घ्य के साथ संपन्न होगा। व्रत का पारण उगते सूर्य के अर्घ्य के बाद होगा। लोक परंपरा में खरना को ‘शुद्धि का दिन’ माना जाता है, जहां व्रती अपनी आत्मा को सूर्य की तरह निर्मल बनाती हैं।
एक प्राचीन किवदंती के अनुसार द्वापर युग में पांडवों की माता कुंती ने इसी खरना से सूर्य देव से पुत्र प्राप्ति की कामना की थी और यही परंपरा हिलसा के सूर्य मंदिर से जुड़ी मानी जाती है।
हिलसा सूर्य मंदिर से जुड़े द्वापर युग की किवदंती और ऐतिहासिक महत्व
हिलसा का सूर्य मंदिर छठ घाट कोई साधारण स्थल नहीं है। यह द्वापर युग से जुड़ा ऐतिहासिक स्थल है, जहां सूर्य उपासना की जड़ें गहरी हैं। लोक कथाओं में कहा जाता है कि महाभारत काल में सूर्य पुत्र कर्ण इसी क्षेत्र में सूर्य देव की तपस्या करते थे।
एक किवदंती के मुताबिक कर्ण ने हिलसा के इस तालाब में स्नान कर सूर्य को अर्घ्य दिया था, जिससे उनकी भुजाएं सोने की तरह चमकने लगीं। इसी मान्यता से आज भी व्रती यहां अर्घ्य देने आते हैं। मान्यता है कि सूर्य देव संतान, स्वास्थ्य और समृद्धि का वरदान देते हैं।
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि छठ पूजा यहां की मिट्टी में रची-बसी है। प्राचीन ग्रंथों में वर्णित ‘सूर्य षष्ठी व्रत’ की परंपरा यहीं से फैली मानी जाती है। लोक आस्था के इस चार दिवसीय महापर्व में हिलसा का ऐतिहासिक सूर्य मंदिर तालाब श्रद्धा, भक्ति और सौंदर्य का अनुपम केंद्र बन गया है।
घाट पर भव्य सजावट, सुरक्षा और लोक उत्सव का मेला
इस बार सूर्य मंदिर छठ घाट को रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया गया है। घाट के चारों ओर पेड़, बिजली के खंभे और मंदिर रोशनी से जगमगा उठे हैं। शाम ढलते ही घाट का नजारा मनमोहक हो जाता है और लोग इसे निहारने अभी से पहुंचने लगे हैं। शहर के साथ ग्रामीण इलाकों के तालाबों और पोखरों पर बने घाटों को भी साफ-सफाई कर भव्य रूप दिया गया है।
लोक परंपरा में घाट को ‘सूर्य का दरबार’ माना जाता है, जहां छठी मइया और सूर्य देव विराजमान होते हैं। एक पुरानी मान्यता है कि घाट पर दीप जलाने से घर के अंधकार दूर होते हैं और यही कारण है कि रोशनी की यह सजावट सदियों से चली आ रही है।
सुरक्षा और सुविधा के लिए इस बार विशेष इंतजाम किए गए हैं। घाट पर दो दर्जन से अधिक सीसीटीवी कैमरे लगाए जा रहे हैं, जिनकी निगरानी कंट्रोल रूम से होगी। दो जगहों पर बड़े स्क्रीन वाले एलईडी टीवी भी होंगे। इसके अलावा चार वॉच टावर, आठ चेंजिंग रूम, दो चलित शौचालय, शुद्ध पानी के दो टैंकर, मेडिकल कैंप, खोया-पाया केंद्र और चिकित्सा शिविर की व्यवस्था है।
हिलसा कार्यपालक पदाधिकारी रविशंकर कुमार के अनुसार नगर परिषद ने व्रतियों की हर सुविधा का ध्यान रखा है। घाट को स्वच्छ और आकर्षक बनाने में नगरवासियों का योगदान सराहनीय है। लोक मान्यता के अनुसार छठ घाट पर सुरक्षा का यह प्रबंध सूर्य देव की कृपा से ही संभव होता है, क्योंकि पर्व के दौरान कोई अनहोनी नहीं होती।
छठ का संदेश है लोक उत्साह और भविष्य की कामना
हिलसा शहर में छठ महापर्व को लेकर धार्मिक उत्साह चरम पर है। घर-घर में ठेकुआ, लड्डू और फलों की तैयारियां जोरों पर हैं। बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक, सभी इस पर्व में डूबे हैं। एक लोक गीत में गाया जाता है- “उगते सूरज के किरण में, छठ मइया के आशीष में, जीवन नया हो जाता है।”
यह पर्व न सिर्फ सूर्य उपासना सिखाता है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण, शुद्धता और परिवारिक एकता की परंपरा भी जीवंत रखता है। किवदंतियों के अनुसार जो व्रती सच्चे मन से अर्घ्य देते हैं, उनके घर में कभी अंधेरा नहीं आता।
बहरहाल सूर्य मंदिर छठ घाट अब व्रतियों का स्वागत करने को पूरी तरह तैयार है। आने वाले दिनों में डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने का दृश्य अविस्मरणीय होगा। नालंदा की इस धरती पर छठ महापर्व प्राचीन मान्यताओं को आधुनिक उत्साह के साथ जोड़कर एक नया संदेश दे रहा है- सूर्य की तरह जीवन भी उज्ज्वल और शुद्ध हो।
