फीचर्डखोज-खबरनालंदाशिक्षासमस्या

नालंदा के स्कूलों में उपस्थिति महज 4.25% से डीबीटी पर संकट

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले के सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में छात्र उपस्थिति डेटा अपलोड करने की प्रक्रिया में भारी सुस्ती देखने को मिल रही है, जो शिक्षा विभाग के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। जिले के 2495 स्कूलों में नामांकित 4 लाख 19 हजार 680 बच्चों में से अब तक केवल 4.25 प्रतिशत बच्चों की उपस्थिति ही ई-शिक्षाकोष पोर्टल पर दर्ज की जा सकी है। यह स्थिति तब है, जब शिक्षा विभाग ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) योजनाओं का लाभ केवल उन छात्रों को मिलेगा, जिनकी उपस्थिति 75 प्रतिशत या उससे अधिक होगी।

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक जिले के केवल 106 विद्यालयों ने ही उपस्थिति दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू की है, जो कुल स्कूलों की संख्या का मात्र 4.25 प्रतिशत है। इनमें से भी केवल 22 विद्यालयों ने 75 प्रतिशत उपस्थिति वाले छात्रों का डेटा सही ढंग से अपलोड किया है।

इसका परिणाम यह है कि जिले में अब तक केवल 3005 बच्चों का डेटा पोर्टल पर दर्ज हो पाया है, जबकि 4 लाख 16 हजार से अधिक बच्चों का डेटा अभी भी पेंडिंग है। इस लापरवाही के कारण नालंदा जिला पूरे बिहार में उपस्थिति डेटा अपलोड करने के मामले में 35वें स्थान पर खिसक गया है।

शिक्षा विभाग के डीपीओ योजना लेखा मो. शाहनवाज ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि विद्यालयों को उपस्थिति डेटा अपडेट करने के लिए अवकाश के दिनों में भी स्कूल खोलने होंगे। यदि समय पर और पारदर्शिता के साथ यह कार्य नहीं किया गया तो बच्चों को मिलने वाले लाभ पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। डेटा अपलोड करने में किसी भी प्रकार की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

दरअसल वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए सरकार द्वारा संचालित विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं, जैसे मध्याह्न भोजन, छात्रवृत्ति और पोशाक योजना, का लाभ केवल उन छात्रों को मिलेगा, जिनकी उपस्थिति 75 प्रतिशत से अधिक होगी। इसके लिए ई-शिक्षाकोष पोर्टल पर प्रत्येक छात्र की उपस्थिति को ‘हां’ या ‘नहीं’ के आधार पर दर्ज करना अनिवार्य है। लेकिन जिले के 2389 विद्यालयों ने अभी तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है। इस कारण लाखों बच्चों को इन योजनाओं का लाभ मिलने में देरी हो सकती है।

शिक्षा विभाग ने बार-बार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और पत्राचार के माध्यम से स्कूलों को निर्देश दिए हैं, लेकिन प्रगति न के बराबर है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह सुस्ती न केवल सरकारी योजनाओं की मंशा को प्रभावित कर रही है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही को भी कमजोर कर रही है।

नालंदा जिले में शिक्षा के क्षेत्र में डिजिटल क्रांति लाने के लिए शुरू किया गया पायलट प्रोजेक्ट भी इस लापरवाही का शिकार हो रहा है। इस प्रोजेक्ट के तहत जिले के पांच स्कूलों में टैबलेट के माध्यम से छात्रों की उपस्थिति और शैक्षणिक प्रगति को ऑनलाइन दर्ज करने की योजना थी। लेकिन अब तक केवल कुछ स्कूलों ने ही इस दिशा में प्रगति दिखाई है।

शिक्षा विभाग का मानना है कि उपस्थिति डेटा को डिजिटल रूप से दर्ज करने की यह प्रक्रिया न केवल योजनाओं के लाभ को सही बच्चों तक पहुंचाने में मदद करेगी, बल्कि स्कूलों में नियमित उपस्थिति को भी बढ़ावा देगी। इसके अलावा यह प्रणाली शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही को मजबूत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

शिक्षा विभाग ने स्कूलों को चेतावनी दी है कि यदि वे समय पर डेटा अपलोड नहीं करते, तो उनकी जवाबदेही तय की जाएगी। साथ ही, विभाग ने यह भी निर्देश दिया है कि स्कूलों को अपने डेटा को सत्यापित करने के लिए ब्लॉक शिक्षा अधिकारियों (बीईओ) के साथ समन्वय करना होगा। लेकिन कई स्कूलों में शिक्षकों की कमी, तकनीकी जानकारी का अभाव और संसाधनों की कमी इस प्रक्रिया को और जटिल बना रही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

error: Content is protected !!