
नालंदा दर्पण डेस्क। देश-दुनिया को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाले बिहार के ऐतिहासिक वैशाली में बुद्ध सम्यक दर्शन संग्रहालय-सह-स्मृति स्तूप का निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है। इस महीने के अंत में इसका भव्य उद्घाटन होने जा रहा है। यह संरचना न केवल बौद्ध धर्मालंबियों के लिए एक प्रमुख आस्था का केंद्र बनेगी, बल्कि पर्यटकों के लिए भी एक आकर्षण का नया स्थल होगी। इस परियोजना से स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसरों में वृद्धि होने की भी उम्मीद है।

नये स्तूप परिसर को वैशाली के ऐतिहासिक मड स्तूप से जोड़ने की योजना है, जिसके लिए आवश्यक कार्य प्रगति पर है। यह कदम न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि बिहार के पर्यटन विकास के क्षेत्र में भी एक मील का पत्थर साबित होगा। इस परियोजना से वैशाली का वैश्विक पर्यटन मानचित्र पर और अधिक महत्व बढ़ेगा।
भवन निर्माण विभाग के सचिव कुमार रवि के अनुसार यह संरचना पूरी तरह से बलुआ पत्थरों से निर्मित है। निर्माण कार्य के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, विशेष रूप से 12 टन तक के भारी पत्थरों को क्रेन की सहायता से ऊंचाई पर स्थापित करना और उन्हें एक-एक करके सटीक रूप से फिट करना।
इस प्रक्रिया में टंग एवं ग्रूव तकनीक का उपयोग किया गया, जिसमें सीमेंट, चिपकाने वाले पदार्थ या अन्य सामग्रियों का प्रयोग नहीं हुआ। कुल 42,373 बलुआ पत्थरों का उपयोग इस संरचना को आकार देने में किया गया है।

कुमार रवि ने बताया कि आधुनिक भारत के इतिहास में यह पहली बार है जब केवल पत्थरों से इतने बड़े पैमाने पर एक स्मृति स्तूप का निर्माण किया गया है। इसकी कुल ऊंचाई 33.10 मीटर, आंतरिक व्यास 37.80 मीटर और बाहरी व्यास 49.80 मीटर है। इसके निर्माण के लिए राजस्थान के बंसी पहाड़पुर से सैंडस्टोन का चयन किया गया, जिसका उपयोग ऐतिहासिक मंदिरों और स्मारकों, जैसे कि अयोध्या में निर्मित भव्य राम मंदिर, में भी किया गया है।
इस स्मृति स्तूप को भूकंपरोधी बनाने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग किया गया है। भूकंप रोधक क्षमता को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन तैयार किया गया है, ताकि यह संरचना प्राकृतिक आपदाओं के प्रति सुरक्षित रहे। यह तकनीकी नवाचार इस परियोजना को और भी विशिष्ट बनाता है।
यह स्मृति स्तूप न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि वैशाली को पर्यटन के क्षेत्र में एक नया आयाम प्रदान करेगा। बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए यह एक पवित्र तीर्थस्थल के रूप में उभरेगा। जबकि पर्यटकों के लिए यह ऐतिहासिक और वास्तुशिल्पीय दृष्टि से एक अनूठा अनुभव प्रदान करेगा।