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    Wednesday, January 8, 2025
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      थाईलैंड, कंबोडिया और वियतनाम के धुतंग बौद्ध भिक्षुओं ने शुरू की ऐतिहासिक पदयात्रा

      यह पहल भारत के समृद्ध बौद्ध इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को संजोने और वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करने का एक आदर्श उदाहरण है

      राजगीर (नालंदा दर्पण)। बिहार की पवित्र भूमि पर बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने एक ऐतिहासिक पहल की शुरुआत की। राजगीर के वेणुवन से गया के गुरूपदगिरि तक की 70 किमी लंबी पदयात्रा का शुभारंभ थाईलैंड, कंबोडिया, और वियतनाम के 40 धुतंग बौद्ध भिक्षुओं ने किया। यह पदयात्रा भगवान बुद्ध के प्रमुख शिष्य महाकस्सप की स्मृति में आयोजित की जा रही है, जिन्होंने गुरूपदगिरि (आधुनिक गुरपा पहाड़ी) पर तपस्या और समाधि ली थी।

      पदयात्रा से पहले थाईलैंड के बौद्ध भिक्षुओं ने महाबोधि मंदिर में पूजा-अर्चना की और बोधगया के अन्य पवित्र स्थलों पर जाकर आशीर्वाद प्राप्त किया। धुतंग भिक्षुओं की तपस्वी परंपरा और तपस्या की उच्च श्रेणी का यह उदाहरण बौद्ध धर्म के अनुयायियों और पर्यटकों के लिए प्रेरणादायक है।

      यह यात्रा न केवल धार्मिक महत्व रखती है बल्कि पर्यटन और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण की दिशा में भी एक अहम कदम है। इंटरनेशनल त्रिपिटक सुत्तपाठ कमेटी, द बुद्धधम्म फाउंडेशन इंटरनेशनल और नव नालंदा महाविहार की इस पहल का उद्देश्य है बौद्ध स्थलों को वैश्विक स्तर पर प्रचारित करना।

      यह धरोहर यात्रा के माध्यम से पर्यटन को बढ़ावा देने की यह अनूठी पहल स्थानीय संस्कृति और इतिहास से जुड़ने का एक सुनहरा अवसर प्रदान भी करती है।

      महाकस्सप, भगवान बुद्ध के 12 प्रमुख महाश्रावकों में से एक थे और बौद्ध संघ में उनका तीसरा स्थान था। वह तपस्या और धुत्तवादियों के अग्रणी माने जाते हैं। उनकी तपोभूमि गुरूपदगिरि, बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र स्थल है।

      पदयात्रा के दौरान प्रतिदिन 20-25 किमी की यात्रा तय की जाएगी। इस यात्रा का उद्देश्य न केवल महाकस्सप की स्मृति को जीवित रखना है, बल्कि विश्वभर के बौद्ध अनुयायियों को भारत की बौद्ध धरोहर से जोड़ना भी है।

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