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डिजिटल भूमि प्रबंधन योजना: ई-मापी में समय सीमा का पालन प्रक्रिया सुस्त

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। बिहार सरकार की महत्वाकांक्षी डिजिटल भूमि प्रबंधन योजना ई-मापी को पारदर्शी और समयबद्ध बनाने की मंशा के बावजूद नालंदा जिले में यह प्रक्रिया सुस्त गति से चल रही है। प्रशासनिक उदासीनता, कमजोर निगरानी और जन-जागरूकता की कमी के कारण हजारों आवेदकों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इस योजना का उद्देश्य भूमि मापी को डिजिटल, पारदर्शी और भ्रष्टाचारमुक्त बनाना था। लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट नजर आ रही है।

जिले में अब तक 5697 लोगों ने ई-मापी के लिए आवेदन किया है। जिनमें से 1146 आवेदन (लगभग 20 प्रतिशत) रिजेक्ट कर दिए गए हैं। विभाग ने 4239 आवेदकों को शुल्क भुगतान का संदेश भेजा। लेकिन केवल 3134 लोगों ने ही भुगतान किया। इनमें से भी अब तक सिर्फ 2426 मामलों में मापी प्रक्रिया पूरी हो सकी है। यानी कुल आवेदनों का मात्र 42.5 प्रतिशत ही निष्पादित हुआ है।

सरकारी नियमों के अनुसार प्रत्येक ई-मापी आवेदन को 60 दिनों के भीतर निष्पादित करना अनिवार्य है। लेकिन अधिकांश मामलों में न तो समय पर मापी हो रही है और न ही देरी के कारणों का कोई रिकॉर्ड रखा जा रहा है। जिला स्तरीय समीक्षा रिपोर्ट में लंबित मामलों की तारीखें तक दर्ज नहीं की जा रही हैं, जिससे जवाबदेही तय करना मुश्किल हो गया है।

ई-मापी प्रक्रिया में राजस्व अमीन, अंचल निरीक्षक, सीओ, डीसीएलआर और डीएम की भूमिका स्पष्ट रूप से निर्धारित है। यदि 60 दिनों के भीतर मापी पूरी न हो, तो संबंधित अधिकारी को देरी के कारण दर्ज करने होते हैं। लेकिन इस नियम का पालन शायद ही हो रहा है। निगरानी के नाम पर केवल कागजी खानापूर्ति की जा रही है और जवाबदेही तय करने का कोई ठोस सिस्टम नहीं दिखता।

बता दें कि वर्ष 2022 में पूरे बिहार में लागू की गई ई-मापी प्रणाली का लक्ष्य था पारंपरिक मापी प्रक्रिया में सुधार करना, भ्रष्टाचार और बिचौलियों की भूमिका को खत्म करना, और भूमि विवादों को कम करना। ड्रोन, जीपीएस और सैटेलाइट आधारित सटीक मापी के जरिए डिजिटल लैंड बैंक तैयार करना इस योजना का मुख्य उद्देश्य था।

 इसके तहत आवेदन पोर्टल पर जमा किए जाते हैं, दस्तावेजों की जांच होती है, डिजिटल मापी की जाती है, आपत्तियों का निवारण किया जाता है और अंत में खतियान और भूमि रजिस्टर को अपडेट किया जाता है।

लेकिन नालंदा जिले में अधिकारियों की लापरवाही और प्रक्रिया की सुस्ती के कारण यह योजना अपने उद्देश्यों से भटकती नजर आ रही है। जन-जागरूकता की कमी भी एक बड़ी समस्या है। लोग इस योजना के लाभों और अपनी शिकायत दर्ज करने के तरीकों से अनजान हैं।

ई-मापी से जुड़ी शिकायतें लोक शिकायत निवारण अधिनियम के तहत हल की जा सकती हैं। लेकिन अधिकांश लोगों को इसकी जानकारी नहीं है। जन-जागरूकता की कमी के कारण कई लोग वर्षों से लंबित मापी कार्य का इंतजार कर रहे हैं। जबकि वे शिकायत दर्ज कर समाधान पा सकते हैं।

ई-मापी योजना को प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए-

मजबूत निगरानी तंत्र: लंबित मामलों की नियमित समीक्षा और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक पारदर्शी सिस्टम स्थापित किया जाए।

जन-जागरूकता अभियान: लोगों को ई-मापी प्रक्रिया, इसके लाभ और शिकायत निवारण के तरीकों के बारे में जागरूक करने के लिए व्यापक अभियान चलाया जाए।

तकनीकी संसाधनों का उपयोग: ड्रोन और जीपीएस आधारित मापी को और तेजी से लागू करने के लिए तकनीकी संसाधनों का उपयोग बढ़ाया जाए।

अधिकारियों की जवाबदेही: समय सीमा का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान लागू किया जाए।

बहरहाल, बिहार सरकार की ई-मापी योजना में पारदर्शिता और दक्षता लाने की अपार संभावनाएं हैं। लेकिन नालंदा जिले में इसकी सुस्त प्रगति चिंता का विषय है। यदि प्रशासनिक लापरवाही और जन-जागरूकता की कमी को दूर किया जाए तो यह योजना न केवल भूमि प्रबंधन को डिजिटल और भ्रष्टाचारमुक्त बना सकती है, बल्कि भूमि विवादों को कम करने में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। इसके लिए तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने की जरूरत है। ताकि योजना का लाभ आम लोगों तक पहुंच सके।

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