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नहीं मान रहे किसान, यूं पराली जला खुद खेत, परिंदा-पर्यावरण को पहुंचा रहे नुकसान

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चंडी (नालंदा दर्पण)। चंडी प्रखंड में गेहूं की कटाई लगभग हर जगह ख़त्म हो गई है और फसल भी खेत से जा चुके हैँ और खेतों में बच गई है तो सिर्फ जगह-जगह पराली। जिसे प्रखंड के विभिन्न गांवों-कस्बों के किसान काफी तेजी से फसल के उस बचे अवशेष को जला रहे हैं।

जबकि प्रशासन ने इस पर लगाम लगाने के लिए आदेश निकाला हुआ है। वैसे किसान जो खेतों में पराली जलाते हैं, उनको फसल मुआवजा सहित अन्य लाभ से वंचित कर देने का प्रावधान है। बाबजूद इसके किसानों के कान पर जूं तक नहीं रेक रहा है।

बता दें कि ज़ब से आधुनिक मशीन से खेतो मे फसलों की कटाई शुरू हुई है तब से बचे हुए पराली को हटाने का कोई बेहतर समाधान नहीं निकल कर सामने आई है, नतीजतन किसानो को खेतो मे बची हुई पराली को जलाना पड़ता है ताकि अगली फसल उसमे लगा सके।

पर पराली जलाने से पहले किसान ये भूल जाते हैँ कि अनजाने मे ही उन्होंने पर पर्यावरण को भारी प्रदूषित करते हैँ और साथ ही साथ परिंदे को भी नुकसान झेलना पड़ता है। अक्सर परिंदे खेतो मे बिखरे पराली मे अपने अंडे देती हैं।

लेकिन उन मासूम परिंदो को क्या पता की अगले कुछ दिनों मे ही उनके प्यारे प्यारे बच्चे दुनिया मे आने से पहले ही अंदर ही दम तोड़ देते हैँ।

सरकार की और से सिर्फ फरमान जारी होता है की पराली जलाने वालो को बक्शा नहीं जायगा, पर सिर्फ करवाई करना उचित होगा?

जिस तरह दिल्ली और हरियाणा की सरकारों ने पराली मुक्ति के लिए उनके इलाके के खेतो मे  एक तरह का रसायन का छिड़काव कराकर पराली को खेतो मे ही खाद बनाने के लिए हर संभव प्रयास करती है तो क्या हमारी बिहार सरकर को उनसे कुछ सीख नहीं लेनी चाहिए?

सवाल तो उठेंगे ही कि पराली से प्रदूषण के असली जिम्मेदार कौन? किसान या सरकार? यह पैमाना तो तय होना ही चाहिए। वरना किसानों की इस अनदेखी का सामना हमारे समाज और देश के लोगों को भुगतना पड़ सकता है।

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