औंगारी धाम (नालंदा दर्पण/मुकेश भारतीय)। कल्पना कीजिए द्वापर युग का वह क्षण, जब भगवान श्रीकृष्ण के सौम्य पौत्र शाम्ब अपनी अपार सुंदरता के कारण एक भूल का शिकार हो जाते हैं। गोपियों के बीच कृष्ण भगवान से मिलने पहुंचे शाम्ब को वे कृष्ण समझकर लीला में लीन कर लेती हैं। अचानक क्रोधित श्रीकृष्ण का श्राप कि तुम्हारी यह सौंदर्य रूपी धरोहर कुष्ठ रोग की आग में जल जाएगी!।
उसके बाद चिंतित शाम्ब नारद मुनि के पास पहुंचते हैं और अंततः पिता कृष्ण से उपाय पूछते हैं। कृष्ण का वरदान कि भारत भर में 12 सूर्य मंदिरों की स्थापना करो, उनका अनुष्ठान करो, तब लौटेगा तुम्हारा यौवन। और इसी कथा की एक कड़ी बनी नालंदा की पावन धरती पर औंगारी धाम सूर्य मंदिर।
बिहार के नालंदा जिले के हिलसा अनुमंडल के एकंगरसराय प्रखंड में बसा यह धाम सूर्योपासना का ऐसा केंद्र है जहां इतिहास, किवदंतियां और लोक मान्यताएं एक साथ नाचती-गाती प्रतीत होती हैं। यहां का मुख्य द्वार पश्चिम की ओर खुलता है। यह भारत का एकमात्र ऐसा सूर्य मंदिर है, जो सूर्य की किरणों को उलटे प्रवाह में आमंत्रित करता प्रतीत होता है।
शाम्ब की तपस्या और सूर्य का वरदान
औंगारी धाम की जड़ें महाभारत काल की उस लोक कथा में हैं, जो जनश्रुतियों और प्राचीन ग्रंथों में जीवंत है। कहते हैं कि शाम्ब (जिन्हें भगवान अंगारक के रूप में भी पूजा जाता है) ने कुष्ठ रोग की यंत्रणा से त्रस्त होकर यहां कठोर तपस्या की। सूर्य देव प्रसन्न हुए और उन्हें न केवल रोग मुक्ति मिली, बल्कि यौवन भी लौट आया।
जनश्रुति है कि शाम्ब ने स्वयं इस स्थान पर सूर्य तालाब का निर्माण कराया, जहां आज भी स्नान करने से कुष्ठ सहित अन्य रोगों से मुक्ति की आस्था बसी है। यह कथा न केवल एक लोक कथा है, बल्कि सूर्य उपासना की प्रतीकात्मकता को दर्शाती है। जैसे सूर्य की किरणें अंधेरे को भेदती हैं, वैसे ही भक्ति रोग-दुख को।
स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि यह 12 सूर्य पीठों में से एक है, जहां शाम्ब की आत्मा आज भी सूर्य के दिव्य प्रकाश में लीन रहती है। लेकिन औंगारी की किवदंतियां यहीं थमती नहीं। एक अन्य लोक कथा महाभारत के सूर्य पुत्र कर्ण से जुड़ी है।
कहते हैं कि कर्ण ने यहीं तालाब में स्नान कर सूर्य को अर्घ्य दिया, जिससे उनकी भुजाएं सोने की तरह चमक उठीं। यह कथा समृद्धि की कामना को प्रेरित करती है और छठ व्रत के दौरान व्रती यहां आकर ठेकुए चढ़ाते हैं यह मानते हुए कि कर्ण की तरह उनकी किस्मत भी चमकेगी।
इसी तरह पांडवों की माता कुंती की कथा भी लोक मान्यताओं में बसी है। खरना के दिन उन्होंने सूर्य देव से पुत्र प्राप्ति की प्रार्थना की, जो आज निसंतान दंपतियों के लिए आस्था का स्रोत है। प्राचीन काल में सूखे की विपदा में व्रती कद्दू भात और चने की दाल से सूर्य को प्रसन्न करते और पहली वर्षा की बूंदें इसी पर्व पर बरसतीं। ये कथाएं न केवल मनोरंजक हैं, बल्कि सूर्य को जीवन-दाता के रूप में स्थापित करती हैं।
ऐतिहासिक वैभव: 300 ईसा पूर्व से सूर्यनगरी का उदय
औंगारी धाम का इतिहास द्वापर युग से ही जुड़ा है, लेकिन पुरातात्विक प्रमाण बताते हैं कि यह 300 ईसा पूर्व से सूर्य उपासना का केंद्र रहा। एकंगरसराय बाजार से मात्र छह किलोमीटर पूर्व-दक्षिण में बसा यह स्थल मुगल काल की एक रोचक किवदंती से भी जुड़ा है।
औरंगजेब के सेनापति ने मंदिर तोड़ने का आदेश दिया, लेकिन चुनौती स्वीकार कर स्थानीयों ने रातोंरात मुख्य द्वार को पूर्व से पश्चिम दिशा में मोड़ दिया। मान्यता है कि सूर्य देव की कृपा से यह चमत्कार संभव हुआ और आज यह अनोखी वास्तुकला पर्यटकों और भक्तों को आकर्षित करती है।
मंदिर में सूर्य भगवान की प्रतिमा से दिव्य प्रकाश प्रस्फुटित होता प्रतीत होता है, उनके सहचर विष्णु की अद्भुत मूर्ति के साथ। यहां सूर्य-विष्णु के अनेक रूपों सहित ब्रह्मा, गणेश, शंकर, पार्वती, दुर्गा और सरस्वती समेत 18 देवी-देवताओं की प्रतिमाएं विराजमान हैं। यह एक ऐसा संगम है, जो वैदिक परंपरा की झलक देता है।
लोक परंपराएं और मान्यताएं: आस्था का अमृत तालाब
औंगारी धाम की लोक परंपराएं सूर्य षष्ठी व्रत से गहराई से जुड़ी हैं, जो छठ महापर्व का मूल रूप है। चैत्र और कार्तिक मास में भारत के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु यहां उमड़ते हैं, खासकर छठ घाट पर। नहाय-खाय से शुरू होकर 36 घंटे के निर्जला व्रत तक हर रस्म शुद्धता और भक्ति का प्रतीक है।
घाट को ‘सूर्य का दरबार’ कहा जाता है, जहां छठी मइया और सूर्य देव विराजते हैं। लोक गीत गूंजते हैं। उगते सूरज के किरण में छठ मइया के आशीष में जीवन नया हो जाता है। यह सब पीढ़ियों से चली आ रही हैं।
मान्यताएं यहां की मिट्टी में रची-बसी हैं। तालाब का पानी पीने या स्नान करने से कुष्ठ रोग सहित अन्य व्याधियां दूर होती हैं, मानो सूर्य की किरणें विषैले तत्वों को भस्म कर दें। यहां पूजा-अर्चना से कंचन काया, पुत्र सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है। निर्धन को धन, निसंतान को संतान जैसे वरदान युगों से भक्तों की सच्ची भक्ति पर निर्भर हैं।
खरना को ‘शुद्धि का दिन’ माना जाता है, जहां गुड़ की खीर, दूध, चावल का पीठा और घी लगी रोटी प्रसाद के रूप में चढ़ाई जाती है। पर्यावरण संरक्षण की परंपरा भी बसी है। प्रसाद बांटना परिवारिक एकता सिखाता है और दीप जलाना घर के अंधकार को दूर करता है।
वर्तमान में जीवंत धरोहर: विकास और सेवा का संगम
आज औंगारी धाम न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि सामाजिक विकास का प्रतीक भी। सूर्य मंदिर के निकट विशाल पुरानी धर्मशाला, औंगारी थाना, लाल सिंह त्यागी महाविद्यालय, मध्य विद्यालय, दक्षिण मध्य बिहार ग्रामीण बैंक और पंचायत भवन मौजूद हैं। औंगारीधाम ट्रस्ट के अध्यक्ष रामभूषण दयाल और उपाध्यक्ष बीएन यादव हैं। तालाब घाटों की सफाई, शुलभ शौचालय, पेयजल सुविधा और सीढ़ी मरम्मत जैसे कार्य कराया जा रहा है।
वहीं सूर्यमठ विकास सेवा समिति के अध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार पांडेय और सचिव प्रधान पुजारी गंगाधर पांडेय मंदिर प्रांगण में मंडप, ओसरा निर्माण, रोशनी और माइक व्यवस्था जैसी सुविधाएं जोड़ रहे हैं। समाजसेवी महेंद्र प्रसाद का मंडल निर्माण में सहयोग सराहनीय है। हर रविवार को होने वाली पूजा में स्थानीय 300 से अधिक लोग सेवा में लगे रहते हैं और छठ पर अपार भीड़ उमड़ने से जगह कम पड़ जाती है।
बहरहाल औंगारी धाम हमें सिखाता है कि इतिहास और आस्था का मेल ही सच्ची शक्ति है। यहां सूर्य की किरणें न केवल शरीर को, बल्कि आत्मा को भी प्रकाशित करती हैं। यदि आप सूर्यनगरी की इस दिव्यता का अनुभव करना चाहें तो एक बार अवश्य वहां जरुर पहुंचे, क्योंकि यहां द्वापर की लीला आज भी जीवंत है।
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