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    Wednesday, October 16, 2024
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      जरूरी है प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के समकालीन तालाबों की उड़ाही और संरक्षण

      नालंदा दर्पण डेस्क। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के समकालीन सभी तालाबों की खोज कर उसकी खुदाई और उड़ाही कराने से नालंदा को एक नया आयाम मिलेगा। हजारों साल से जमीनदोज तालाबों का इतिहास दुनिया के सामने आयेगा। उन तालाबों के अस्तित्व में आने के बाद विश्व धरोहर के आसपास के इलाके का प्राकृतिक स्वरूप निखरेगा।

      इससे पर्यावरण, पर्यटन और किसान सभी लाभान्वित हो सकेंगे। उन तालाबों के पुनर्जीवित होने से नालंदा फिर से तालाबों और सरोवरों के नगर के रूप में स्थापित हो सकेगा। तब दो हजार साल पुरानी इतिहास को नालंदा में दोहराया जा सकेगा।

      प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से प्रकृति और पानी पंचायत द्वारा पायलट प्रोजेक्ट बनाकर प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के समकालीन तालाबों की खोज और उसकी खुदाई व उड़ाही कराने की मांग की गयी है।

      बताया जाता है कि प्रकृति द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय के समकालीन 52 तालाबों में से 37 तालाबों की खोज की गई है। प्रकृति द्वारा सीएम को भेजे गए ज्ञापन में उन तालाबों की सूची उपलब्ध कराई गई है।

      कहा गया है कि जब हजारों साल बाद नालंदा की पुरानी इतिहास पुनर्जीवित होगी तब दुनिया से यहां आने वाले सैलानी प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के समकालीन तालाबों से साक्षात्कार कर सकेंगे। उससे किसान एक तरफ खेतों की सिंचाई करेंगे तो दूसरी तरफ वह तालाब देशी-विदेशी पक्षियों का अभ्यारण बन सकेगा। वह तैराकी प्रशिक्षण के लिए उपयुक्त होने के अलावे मछली पालन के बड़े केंद्र के रूप में विकसित हो सकता है।

      इको टूरिज्म और विलेज टूरिज्म केंद्र के रूप में विकसित कर एवं नौका विहार की व्यवस्था कर पर्यटकों के लिए तालाबों को आकर्षण का केंद्र बनाया जा सकता है। पहले प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के आचार्य और छात्र उन तालाबों का उपयोग करते थे। वही किसान सिंचाई के साधन के रूप में भी इस्तेमाल करते थे।

      सारे तालाब वर्षा ऋतु के जल संरक्षण का मुख्य केंद्र होता था। इसके अलावा वह गांवों का भूगर्भीय जल स्तर को नियंत्रित करता था। वह भूमिगत जल को रिचार्ज भी करता था। वर्तमान में करीब आधे दर्जन को छोड़कर शेष तालाबों के वजूद लगभग समाप्त हो गए हैं। कुछ तालाब गाद से भर गए हैं, तो कुछ अतिक्रमण के शिकार हो गए हैं।

      नालंदा विश्वविद्यालय के आसपास के समकालीन तालाबों की चर्चा कनिंघम की पुस्तक आरकेलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, ज्योग्रफी ऑफ इंडिया, एस वीयल की पुस्तक बुद्धिस्ट रिकॉर्ड वेस्टर्न वर्ल्ड, डॉ. डी. वाई. पाटिल की पुस्तक एंटीक्वैरियन रीमेंस ऑफ बिहार में मिलती है।

      ज्ञानपीठ नालंदा पहले तालाबों का नगर हुआ करता था। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के आसपास 52 तालाब और सरोवर थे। जरुरत है कि उन सभी तालाब और सरोवरों की पहचान कर फिर से पुनर्जीवित कर उसे धरोहर का दर्जा देने की. ताकि नालंदा फिर से सरोवरों का नगर बन सके। इससे यहां का प्राकृतिक सौंदर्य पहले की तरह निखरेगा और देशी विदेशी पक्षियों का अभयारण्य पुनः खिल उठेगा।

      संभावित प्राचीन तालाबों की पहचान: इंदरा पोखर (मुजफ्फरपुर), करगिद्या तालाब (मुजफ्फरपुर), दूधौरा (सूरजपुर), चानन (सूरजपुर), लोकनाथ तालाब (सूरजपुर), गोदहन तालाब (सूरजपुर), धीखरी (सूरजपुर), पथलौटी (सारिलचक), तारसिंग (सारिलचक), चनेनक (जुआफर), बनैल (बड़गांव), सुरहा (बड़गांव), चमरगड्डी (बड़गांव), चौधासन (बड़गांव), बैजनाथ (बड़गांव), डगरा (मोहनपुर), सूद (मोहनपुर), सूर्य पोखर (बड़गांव), लोहंग (बड़गांव), गदा गुलरिया तालाब (बड़गांव), देहर (बड़गांव), पक्की तालाब (जुआफर बाजार), इसी प्रकार भुनैय दीमा (मुस्तफापुर), संगरखा (बेगमपुर), दिघी तालाब (बेगमपुर), जिलाऊं तालाब, डूकेवा तालाब, बहेला तालाब, सतौती तालाब, कुनबा पोखर, पुनवा तालाब, नाग पोखर, पंसोखर तालाब, धनखरी तालाब, (मुजफ्फरपुर), पद्म पुष्कर्णी (मुस्तफापुर), निगेसरा (मुस्तफापुर)।

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