Home नालंदा KK पाठक का अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई, कांप उठा राजभवन

KK पाठक का अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई, कांप उठा राजभवन

नालंदा दर्पण डेस्क। बिहार शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने अब तक का सबसे बड़ा एक्शन लिया है। उनके इस एक्शन से बिहार राजभवन और सचिवालय भी कांप उठा है। केके पाठक ने राज्यपाल के आदेश के बाद विभागीय बैठक में शामिल नहीं होने वाले सभी यूनिवर्सिटी के वीसी और रजिस्ट्रार के वेतन पर रोक लगाते हुए दो टूक पूछा कि उनके खिलाफ क्यों न प्राथमिकी दर्ज किया जाए।

KK Pathaks biggest action so far Raj Bhavan trembled 1खबरों के अनुसार बीते दिन बिहार के राज्यपाल के आदेश के बाद विभागीय बैठक में शामिल नहीं होने वाले सभी यूनिवर्सिटी के वीसी और रजिस्ट्रार के वेतन पर रोक लगा दी है और उनसे स्पष्टीकरण मांगा है कि कि 28 फरवरी की अहम बैठक में आप लोग मौजूद नहीं थे, लिहाजा क्यों नहीं आप लोगों पर प्राथमिकी दर्ज की जाए? वहीं, सभी यूनिवर्सिटी के बैंक खातों के संचालन पर रोक लगा दी है।

बिहार सरकार शिक्षा विभाग के सचिव बैद्यनाथ यादव ने पत्रांक-14/ एम7-07/2023- 324 के जरिए राज्य के सभी विश्वविद्यालय (कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय को छोड़कर) के सभी कुलपति, कुलसचिव एवं परीक्षा नियंत्रक से स्पष्टीकरण मांगा है कि विभागीय पत्रांक- 279 दिनांक-20.02.2024 द्वारा विभाग के स्तर पर विश्वविद्यालयों की परीक्षाओं पर चर्चा हेतु बैठक रखी गई थी।

आगे लिखा है कि विभाग ने परीक्षाओं को समयबद्ध तरीके से कराने का निर्णय बहुत पहले ही ले लिया था और इस अकादमिक सत्र में कौन सी परीक्षा कब लेनी है, एतद् संबंधी गजट अधिसूचना भी कर दी गई है। जुलाई, 2023 माह में जब यह समीक्षा की गई, तो पाया गया था कि बहुत से विश्वविद्यालयों में तीन-चार साल का अकादमिक सत्र पीछे चल रहा है। इसे देखते हुए विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा-30 के तहत परीक्षाओं के संचालन हेतु विधिवत् अधिसूचना जारी की गई।

किन्तु लगातार समीक्षा के पश्चात् यह पता चला कि उक्त अधिसूचना का पालन अधिकांश विश्वविद्यालयों द्वारा नहीं किया जा रहा है। इतना ही नहीं, कुछ विश्वविद्यालयों की तो इतनी खराब स्थिति है कि जो पीछे चल रहे अकादमिक सत्र को तो अद्यतन करना दूर रहा, अद्यतन अकादमिक सत्र भी पिछड़ रहे हैं। यह एक गंभीर विषय है और इसी की समीक्षा के लिए विभाग द्वारा उक्त बैठक का आयोजन किया गया था।

आगे लिखा है कि विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा-30 के तहत विश्वविद्यालयों की परीक्षा का ससमय संचालन का पूरा जिम्मा राज्य सरकार का है और इस हेतु राज्य सरकार परीक्षा का कैलेण्डर तय करने हेतु पूर्णतया सक्षम है।

परीक्षा संचालन में लगे हुए महाविद्यालय / विश्वविद्यालय के कर्मी/पदाधिकारी भारतीय दण्ड विधान, 1860 के तहत लोक सेवक माने जाते हैं। विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा-4 की कंडिका-2 एवं धारा-30 में यह स्पष्ट है कि समय से परीक्षा कराना आपके महत्वपूर्ण दायित्वों में से एक है।

अतः यह स्पष्ट करें कि जब आप इतना महत्वपूर्ण दायित्व ससमय पूरा नहीं कर पा रहें हैं, तो क्यों नही धारा-48 के तहत आपको आगे से कोई भी बजट नहीं प्रदान किया जाए। पुनश्चः विश्वविद्यालयों में ली जा रही परीक्षा को “द बिहार कंडक्ट ऑफ इक्जामिनेशन एक्ट, 1981” के तहत लाया गया है, जिसकी कंडिका-09 में स्पष्ट किया गया है कि कोई भी व्यक्ति जिन पर परीक्षा के कार्यों का कोई भी दायित्व हो अपने कर्तव्यों से इन्कार नहीं कर सकता है। इसी अधिनियम की कंडिका- 10 द्वारा परीक्षा से संबंधित कोई कार्य करने से इंकार करने पर दण्ड का प्रावधान है।

कंडिका-11 द्वारा किसी भी तरह के परीक्षा-कार्य से इंकार करने पर दण्ड का प्रावधान किया गया है। चूंकि परीक्षा कार्यों हेतु विश्वविद्यालय के पदाधिकारी एवं कर्मी भी लोक-सेवक हैं। अतः परीक्षा कार्यों में लापरवाही बरतने या समुचित कर्तव्य निर्वहन में विफल रहने पर इंडियन पेनल कोड की धारा-166 एवं धारा-166 A के तहत कारवाई के भागी होंगे।

साथ ही विभाग द्वारा परीक्षा कार्यों की समीक्षा बैठक दिनांक-28.02.2024 में उपस्थित नहीं होने, विशेषकर लंबित परीक्षाओं के संबंध में उपस्थित होकर पूरा प्रतिवेदन नहीं देने, लंबित परीक्षाओं से संबंधित आवश्यक सूचना उपलब्ध नहीं कराने, जानबूझकर लंबित परीक्षाओं से संबंधित जानकारी देने से बचने एवं इंकार करने, आवश्यक सूचना उपलब्ध नहीं कराकर विभागीय लोक सेवकों के कार्यों को अवरूद्ध करने तथा विभागीय लोक सेवकों को परीक्षा सही समय पर संचालन कराने एवं परीक्षाफल प्रकाशित करने में सहयोग करने में विफल रहने के कारण क्यों नहीं आई०पी०सी० की धारा 174, 175, 176, 179, 186 एवं धारा 187 के तहत आपके विरूद्ध कानूनी कार्रवाई प्रारंभ की जाय?

सचिव ने दो टूक लिखा है कि इस अति महत्वपूर्ण बैठक में अनुपस्थित रहना एक गंभीर विषय है। अतः निदेशानुसार कहना है कि आप इस पत्र के निर्गत की तिथि के दो दिनों के भीतर अपना स्पष्टीकरण दें कि क्यों नहीं आपके विरूद्ध उपरोक्त नियमों एवं धाराओं के तहत विधि सम्मत कार्रवाई करते हुए सुसंगत धाराओं में प्राथमिकी दर्ज की जाए? तब तक के लिए आपका वेतन अगले आदेश तक स्थगित किया जाता है। साथ ही आपके विश्वविद्यालय के सभी खातों के संचालन पर अगले आदेश तक रोक लगाई जाती है।

सचिव ने राज्य के सभी विश्वविद्यालयों से संबंधित सभी बैंक के शाखा प्रबंधक को भी लिखा है कि अगले आदेश तक विश्वविद्यालय के किसी भी खाते से विश्वविद्यालय के किसी भी प्राधिकार द्वारा किसी भी प्रकार की राशि की निकासी पर रोक रहेगा। इसका उल्लंघन होने पर समुचित कानूनी कार्रवाई की जायगी।

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