नालंदा दर्पण डेस्क। नालंदा दुनिया का सबसे बड़ा केवल ज्ञान केन्द्र नहीं, बल्कि शक्ति केन्द्र भी रहा है। यहां आकर लोग रिचार्ज होते हैं। बावजूद इसका रखरखाव वैसी नहीं है, जैसी होनी चाहिए। आजादी के 76 साल बाद भी ज्ञानपीठ नालंदा वहीं का वहीं है। पुरातात्विक क्षेत्र में इसके विकास में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।
एएसआई के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक पद्मश्री डॉ. केके मुहम्मद जब नालंदा दौरे पर आये थे, तब उन्होंने कहा था कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के भग्नावशेष को विश्व धरोहर का दर्जा मिलने से इसकी प्रतिष्ठा बढ़ी है। लेकिन विश्व धरोहर का दर्जा मिलने के आठ साल बाद भी बफर जोन का निर्माण नहीं होना चिंता का विषय है।
बफरजोन नहीं बनने के कारण विश्व धरोहर के पास ही टूरिस्ट वाहनों की पार्किंग की जाती है। वैडिंग जोन के अभाव में विश्व धरोहर के मुख्य द्वार के इर्द-गिर्द ही दुकानें सजती हैं। इससे धरोहर के सौन्दर्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है। स्थानीय प्रशासन को बफर जोन के बाहर दुकानदारों को बेहतर विकल्प उपलब्ध कराना चाहिए। ताकि उनकी रोजी रोटी प्रभावित नहीं हो सके।
नालंदा में एक इंटरप्रिटेशन केन्द्र की जरूरत है। जहां पर्यटकों को प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के गौरवशाली व वैभवशाली इतिहास के बारे में संक्षिप्त, लेकिन पूर्ण जानकारी दी जा सके। जैसे इसका निर्माण कब और किनके द्वारा हुआ। यह कितने वर्ग किलोमीटर में फैला था। यहां किन-किन विषयों की पढ़ाई होती थी। यहां कितने आचार्य पढ़ाते थे। उनकी कितनी ख्याति थी।
यहीं नहीं, कितने विद्यार्थी यहां पढ़ते थे। किन-किन देशों के विद्यार्थी यहां अध्ययन के लिए आते थे। यहां की शैक्षणिक व्यवस्था क्या थी। किस कारण से दुनिया के ज्ञान पिपासु यहां ज्ञान की प्यास बुझाने के लिए आते थे। इसका उत्खनन कब और किनके द्वारा हुआ। इन जानकारियों के लिए विश्व धरोहर का एक लघु डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बननी चाहिए। जिसे इंटरप्रिटेशन केन्द्र में पर्यटकों को दिखाया जा सके।
सच पुछिए तो वर्तमान समय में नालंदा के इस विश्व धरोहर का रखरखाव ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। विश्व धरोहर का दर्जा मिलने के पहले जैसा यह धरोहर था आज भी वैसा ही है।आर्कियोलॉजी साइट नालंदा, राजगीर, जुआफर, चंडीमी, धुरगांव, वेश्मक, घोसरावां, प्रतिमाओं का नहीं हो रहा उचित रखरखाव तेतरावां आदि की तरह लगभग सभी जगहों का विकास अवरुद्ध है।
जबकि ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से भी अधिक बड़ा प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय था। 22000 किलोमीटर चलकर ह्वेनसांग चीन से नालंदा पढ़ने के लिए आये थे। वह यहाँ से जाते समय हजारों किताबें भी साथ ले गये थे। नालंदा के तीन विशाल पुस्तकालयों रत्न सागर, रत्नरंजिका और रत्नोदधि की स्मृति में नालंदा में उसी आकार प्रकार के बहुमंजिली (नौ मंजिला) पुस्तकालय भवन का निर्माण होना चाहिए।
नालंदा के विजिटर विश्व धरोहर के संपूर्ण क्षेत्र का दीदार करें। इसके लिए आर्कियोलॉजी को नया प्रवेश द्वार बनाना चहिए। उसके लिए सबसे उपयुक्त स्थान श्याम बुद्ध प्रतिमा के समीप है। वहाँ से प्रवेश करने पर बिहार संख्या 11 से लेकर एक तक का दर्शन और भ्रमण एक बार में कर सकेंगे।
उसी प्रकार सभी चैत्यों को भी पर्यटक देख सकेंगे। वर्तमान समय में पर्यटक विश्व धरोहर के कुछ भाग को ही देखकर निकल जाते हैं। महाविहार का अधिकांश भाग और चैत्य छूट जाता है। जिसके कारण पर्यटकों को प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के इतिहास के बारे में आधी अधूरी जानकारी मिल पाती है।
डॉ. मुहम्मद ने यह भी कहा था कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के समकालीन सरोवरों से छेड़छाड़ उचित नहीं है। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के भग्नावशेष की तरह उसके समकालीन आसपास के सभी 52 तालाबों को हेरिटेज का दर्जा देकर संपोषित एवं सुरक्षित करने की जरुरत है।
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