चंडी (नालंदा दर्पण)। कभी इसी बिहार में गुरूजी खैनी खाकर बच्चों का भविष्य थूक रहे थे, प्रोडोकल साइंस को खाना बनाने का विज्ञान (पढ़ाई) समझने वाले बच्चे टॉप कर रहे थे और आईआईटी कम्प्लीट करने वाले बच्चे फेल हो रहे थे। तब बिहार के सीएम नीतीश कुमार साइकिल चलाती हुई लड़कियां दिखाकर ‘सुशासन बाबू’ कहलाते रहें। साइकिल का पहिया शिक्षा के विकास पर कितना घूमा यह तो बाद की बात है। लेकिन उन्हीं ‘सुशासन बाबू’ के गृह विधानसभा हरनौत की तस्वीर फुल एचडी तो नहीं लगती है। आएं दिन हरनौत के सरकारी स्कूलों के हालात दिख रहे हैं। चमकीली सड़कों और बिजली के चमकते बल्बों के पीछे अंधेरों की एक बड़ी दुनिया है, खासकर ग्रामीण इलाकों में सरकारी स्कूलों की अभी भी बदहाल स्थिति।
नालंदा जिले के चंडी प्रखंड के हरनौत को जोड़ने वाली सड़क के किनारे एक गांव है भासिन बिगहा। जहां मध्य विद्यालय के छात्र-छात्राएं दस दिन के अंदर स्कूल नहीं बल्कि सड़क पर उतर रहें हैं। कीचड़ में लथपथ पैर और आंखों में संविधान का सपना। शायद सोच रहे होंगे, कागज पर शिक्षा का अधिकार है, बस रास्ता सरकार भूल गई है।
चंडी प्रखंड के मध्य विद्यालय भासिन बिगहा के बच्चे स्कूल के रास्ते पर कमर भर पानी और घुटने भर कीचड़ में देश को पीठ पर लादे चले आ रहें सड़क पर। कंधे पर बस्ता नहीं, कीचड़ का बोझ है। बच्चे हैं, पर गुहार में बड़े हो गए हैं।
स्कूल के छात्र आशुतोष कुमार, संजना कुमारी, शिवानी, शवनम, अंजली, आदित्य, गोलू, कोमल, व्यूटी, रानी, प्रिंस , रुली, पल्लवी, दीपा आदि के सपनों के पांव अब धंसते नहीं है,भिड़ते है। कोई डर नहीं, बस एक सवाल कि कब तक पढ़ाई कीचड़ में गिरेगी साहब?
मध्य विद्यालय भासिन बिगहा के नौनिहाल दस दिन में दूसरी बार चिलचिलाती धूप में सड़क पर अपनी परेशानी को लेकर उतरे थे। पिछली बार आश्वासन मिला था सब ठीक कर दिया जाएगा। उनकी शिकायत है कि उन्हें स्कूल आने जाने में कमर भर पानी और घुटने भर कीचड़ लगता है।
स्कूल जाने के लिए बरसात में कोई और रास्ता नहीं है। यहां तक कि स्कूल के शिक्षक भी बच्चों की तरह ही स्कूल आते हैं। जब बच्चों का धैर्य जबाब दे दिया, तब वह गुहार के लिए सड़क पर आएं। कीचड़ में सने पांव लेकर सड़क पर नारे लगा रही थी, इस विश्वास के साथ कि उनकी चीखें शायद कोई सुन लें। यह सिर्फ एक विरोध नहीं बल्कि अगली पीढ़ी की चुप चीख है।
कीचड़ में सनी ये नन्हें पांव दरअसल देश के भविष्य की नींव हैं। यह गुहार नहीं बल्कि इंकलाब की दस्तक है। सता पर बैठे जिम्मेदारों तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए आम जनता से ज्यादा हिम्मत वाले तो यह बच्चे निकले। उन बच्चों में पढ़ने का हौंसला है, कुछ करने की तमन्ना हैं, उनकी पढ़ाई की जीवटता बहुत कुछ कहती हैं।
यूं तो सरकार की दर्जनों योजनाएं उस गांव में चली होगी, पारित हुई होगी। लेकिन सरकार की एक योजना भी स्कूल के रास्ते रुख नहीं कर सकी। गांव के स्कूल के रास्ते का कीचड़ ग्रामीणों को याद दिलाता है कि यहां विकास नहीं हुआ, बल्कि भरोसे की हत्या हुई है। वो भी सरकारी मंजूरी के साथ। यह उन वोटरों के साथ भी विश्वास घात है, जिसे पिछले पच्चीस साल से लगातार एक ही नेता के धोखे का शिकार हैं। ग्रामीण स्कूल का रास्ता निर्माण की गुहार लगाते हैं तो जबाब मिलता है, मुखिया से बात करिए।
चंडी प्रखंड के भासिन बिगहा गांव की यह तस्वीर अकेले नहीं है बल्कि इसी प्रखंड के रूखाई और ब्रहम स्थान के बच्चों के साथ कमोवेश यही तस्वीर है। बच्चे कीचड़ में गिरते स्कूल जा रहें हैं, आंखों में एक सपना लिए। लेकिन उनके सपनों की पंख को काटा जा रहा है।
चंडी प्रखंड के दस्तूर पर निवासी आरटीआई कार्यकर्ता उपेंद्र प्रसाद सिंह ने प्रखंड की उन स्कूलों की सूची तैयार की जहां स्कूल जाने के लिए सड़क नहीं है, रास्ता नहीं है। उन्होंने संबंधित शिक्षा विभाग से लेकर पथ निर्माण विभाग तक एक अदद रास्ते निर्माण के लिए याचिका डाल रखी है।
प्रखंड के स्कूलों के रास्ते की तस्वीर उस क्षेत्र की वास्तविकता को बयान करता है जहां सुविधाओं का घोर अभाव बच्चों के भविष्य पर सवाल खड़ा करता है। ऐसे बच्चों की मेहनत और हौंसले को सलाम करनी चाहिए जो विपरीत परिस्थितियों में भी शिक्षा से मुंह नहीं मोड़ रहें।
बहरहाल, ये बच्चे हैं साहब! कोई नेता नहीं जो हेलिकॉप्टर से जाएं, ये बच्चे कीचड़ में भी शिक्षा ही नहीं देश ढो रहे हैं। ये कीचड़मय तस्वीरें सोचने पर मजबूर करती है कि ये तस्वीरें सुशासन और शिक्षा के कर्णधार बनें मुख्यमंत्री के खुद के क्षेत्र के हैं। क्या यह तस्वीर नीति निर्माताओं के लिए सबक होगी?









