चंडी (नालंदा दर्पण)। चंडी प्रखंड के तुलसीगढ़ पंचायत चुनाव के लिहाज से सबसे हॉट सीट माना जाता है। यहां चुनाव में धनबल, बाहुबल और वर्चस्व की सारी सीमाएं टूट जाती है।
इस पंचायत की दो गांव मुबारकपुर और जलालपुर पिछले 20 साल से मुखिया के लिए वर्चस्व की लड़ाई लड़ते आ रहे हैं।
दोनों गांव ही पंचायत की राजनीति निर्धारित करती है। पिछले चुनाव में जलालपुर का वर्चस्व 15 साल बाद टूट गया था। लेकिन इस बार भी जलालपुर की राह आसान नहीं दिखती है।
तुलसीगढ़ पंचायत में नये परिसीमन के बाद पहली बार हो रहे चुनाव में चुनाव काफी दिलचस्प होने वाला है। यहां दो पूर्व मुखिया निवर्तमान मुखिया को कड़ी चुनौती देंगे।
चंडी नगर पंचायत के गठन के बाद चंडी पंचायत के गुंजरचक और कोरूत को तुलसीगढ़ पंचायत में जोड़ दिया गया है। ऐसे में मुकाबला ट्वेंटी ट्वेंटी की तरह हो गया है।
वैसे भी तुलसीगढ़ पंचायत की परिसीमन ही ऐसी है कि जो नदी के आर पार मतदाताओं के बीच सीधे सेंधमारी कर दें, वही आखिर में विजयी होगा।
तुलसीगढ़ पंचायत में इस बार दो पूर्व मुखिया चुनाव मैदान में हैं। जिनमें पूर्व मुखिया भूषण प्रसाद अपनी हार का बदला लेने को बेचैन दिख रहे हैं। वहीं चंडी पंचायत के पूर्व मुखिया मिथिलेश चौधरी भी काफी दमखम के साथ दोनों को चुनौती दे रहे हैं।
जबकि गुंजरचक गांव से ही पूर्व पैक्स अध्यक्ष धनंजय कुमार उर्फ बबलू भी चुनाव मैदान में मुकाबले को चतुष्कोणीय बनाने में लगें हुए हैं। बाकी अन्य उम्मीदवार सिर्फ खानापूर्ति के लिए मैदान में हैं।
तुलसीगढ़ पंचायत में पिछले 15 साल तक जलालपुर गांव का वर्चस्व रहा है।जबकि 2016 से मुबारकपुर का।
मणिकांत मनीष यहां से निवर्तमान मुखिया हैं। अपनी सीट बचाने के लिए दूसरी बार चुनाव मैदान है। उन्हें पूरा विश्वास है कि जनता फिर से उन्हें चुनेगी।
वहीं पूर्व मुखिया भूषण प्रसाद का मानना है कि कोरुत और गुंजरचक तो उनका पहले से ही पड़ोसी गांव है। उन्हें पड़ोसी और नजदीक होने का पूरा लाभ मिलेगा।
वैसे इन्हें अपनी स्वजातीय वोटरों के अलावा पिछड़ी और अनुसूचित जाति का वोट भी हमेशा की तरह मिलने की आशा है।
देखा जाएं तो तुलसीगढ़ का पंचायत चुनाव का इतिहास काफी स्याह है। यहां हमेशा संगीनों का डर बना रहता है। चाहे वह 2001 का चुनाव हो या फिर उसके बाद का चुनाव। बिना किसी तनाव के हुआ ही नहीं।
चुनाव प्रचार के दौरान तुलसीगढ़ पंचायत के दो प्रत्याशियों के बीच जो टक्कर हुई है, उसके बाद चुनाव परिणाम बाद भी तनाव की स्थिति बन सकती है। यहां अगर शासन-प्रशासन एक्टिव नहीं रहा तो संभावनाएं कुछ भी हो सकती है।
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