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सफेदपोश भू-माफियाओं का बढ़ता वर्चस्व और पंगु बना नालंदा प्रशासन

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले में सफेदपोश भू-माफियाओं का आतंक बढ़ता जा रहा है। सरकारी और निजी जमीनों पर फर्जी दस्तावेजों के जरिए कब्जा जमाने का खेल जोरों पर है। रेलवे, गौरक्षिणी, वन विभाग, जवाहर नवोदय विद्यालय, पथ निर्माण, हवाई अड्डा, पीएचईडी जैसी सरकारी संपत्तियों तक पर अवैध कब्जे के मामले सामने आ रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि इन मामलों में स्थानीय प्रशासन की निष्क्रियता के चलते माफियाओं के हौसले बुलंद हैं।

भू-माफिया न केवल सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जा कर रहे हैं, बल्कि दशकों पूर्व बेची गई जमीनों पर भी वंशावली का दावा ठोक रहे हैं। न्यायालय में लंबी तारीखों का लाभ उठाकर वे मामलों को लटकाने में माहिर हैं। इसके अलावा अंचल कार्यालय की मिलीभगत से रजिष्टर-टू के पृष्ठ फाड़कर रिकॉर्ड से छेड़छाड़ की जा रही है। इस गोरखधंधे में संलिप्त कई अंचल अधिकारी और कर्मचारी पहले ही नप चुके हैं। लेकिन फिर भी यह धंधा रुकने का नाम नहीं ले रहा।

बिहार सरकार ने हाल ही में एक नई नीति लागू की है। इसके तहत 50 वर्षों से जमीन पर बसे लोगों को बिना पुराने दस्तावेज़ों के मालिकाना हक दिया जाएगा। इसमें स्व-प्रमाणित वंशावली और लगान रसीद को पर्याप्त दस्तावेज माना जाएगा। इसके अलावा सरकार ने परिमार्जन प्लस पोर्टल लॉन्च किया है। ताकि भूमि विवादों का समाधान किया जा सके। बावजूद इसके नालंदा जिले में जमीन की बढ़ती कीमतों के साथ ही फर्जीवाड़े के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं।

नए भूमि सर्वेक्षण कार्यों की शुरुआत ने भी भू-माफियाओं के लिए रास्ते खोल दिए हैं। कई जगह रेलवे, गौरक्षिणी, वन विभाग, जवाहर नवोदय विद्यालय, पथ निर्माण, हवाई अड्डा और पीएचईडी की जमीन तक के फर्जी दस्तावेज तैयार कर हक जताया जा रहा है। हालांकि कुछ विभागों ने न्यायालय से आदेश लेकर गलत म्यूटेशन को रद्द भी करवाया है। लेकिन कई मामले अब भी लंबित हैं।

पुराने सर्वेक्षण और मौजूदा विवादः पहला भू-सर्वेक्षण अंग्रेजों के जमाने में 1890 से 1920 के बीच हुआ था। इसी सर्वेक्षण को आधार मानकर नया सर्वे किया जा रहा है, लेकिन इसमें कई तकनीकी खामियां हैं। पुराने जमाने में की गई रैयती जमीन की खरीद-बिक्री के कागजात नई पीढ़ी के पास नहीं हैं। जिससे सर्वेक्षण के दौरान कई जमीनों के स्वामित्व पर सवाल उठ रहे हैं। 1903 के सर्वे में कई सरकारी जमीनें व्यक्तिगत स्वामित्व में दर्ज थीं। जिनके मूल मालिक अब वहां नहीं रहते। लेकिन उनके वंशज अब उन पर दावेदारी कर रहे हैं।

वन विभाग की जमीन पर अवैध कब्जेः नालंदा जिले में करीब 4711 हेक्टेयर वन भूमि है। लेकिन इसमें से 72 हेक्टेयर जमीन 17 व्यक्तियों द्वारा गलत ढंग से हड़प ली गई है। वन विभाग ने कानूनी लड़ाई के बाद एकंगसराय और इस्लामपुर में 5-7 डिसमिल जमीन को वापस पाया है। जबकि अन्य मामलों की सुनवाई अभी जारी है।

न्यायालय और प्रशासन की सुस्तीः नालंदा में सरकारी जमीनों के गलत म्यूटेशन को लेकर दर्जनों से अधिक मामले न्यायालय में विचाराधीन हैं।

राजगीर दांगी टोला निवासी अशोक कुमार के अनुसार उनके पूर्वजों ने 1931 में 1 एकड़ 48 डिसमिल जमीन खरीदी थी, जिसका रजिस्ट्री कागज और रसीद मौजूद है। लेकिन हाल ही में एक व्यक्ति ने ऑनलाइन रसीद कटाकर उस पर अपना हक जमा लिया।

इसी तरह बिहारशरीफ अंचल में थाना संख्या 122, खाता संख्या 309, खसरा संख्या 940 की जमीन 1906 से बिहार श्री गौरक्षिणी ट्रस्ट की है। उस पर करीब दस वर्ष पूर्व कुछ लोगों ने कब्जा कर लिया।

फर्जी जमाबंदी और जमीन घोटालेः बेन अंचल में वर्ष 1971 में मृत व्यक्ति द्वारा वर्ष 2020 में जमीन खरीदने का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। रजिस्टर-टू के पृष्ठों को फाड़ने के बावजूद 9 साल से कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है।

राजगीर के तत्कालीन अंचल अधिकारी की गिरफ्तारी भी गलत म्यूटेशन कराने के आरोप में हो चुकी है। लेकिन प्रशासन अब भी प्रभावी कार्रवाई से बचता नजर आ रहा है।

भूमि विवाद के चलते बढ़ती हिंसाः भूमि विवादों के कारण जिले में तनाव बढ़ रहा है। हाल ही में मोहन महतो नामक व्यक्ति को अपनी ही खानदानी जमीन पर अवैध कब्जे के खिलाफ शिकायत दर्ज करनी पड़ी। उनका कहना है कि वर्ष 1974 से वे 56 डिसमिल जमीन पर अंचल रसीद कटवा रहे थे। लेकिन एक अन्य व्यक्ति ने फर्जी जमाबंदी कायम करवा ली और अब जान से मारने की धमकी तक दी जा रही है।

क्या होगा समाधान? नालंदा जिले में भू-माफियाओं के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए प्रशासन को कड़े कदम उठाने होंगे। भूमि संबंधी मामलों की त्वरित सुनवाई, भू-माफियाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और डिजिटल रजिस्ट्रेशन सिस्टम में पारदर्शिता लाकर ही इस समस्या को रोका जा सकता है।

सरकार द्वारा जारी किए गए भूमि सुधार कार्यक्रमों को प्रभावी तरीके से लागू करने की आवश्यकता है। वरना आने वाले समय में नालंदा में जमीन घोटाले और अधिक बढ़ सकते हैं। जिससे आम नागरिकों का प्रशासन पर से विश्वास उठ जाएगा।

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