नालंदा कांग्रेस का संकट: कार्यालय में हिंसक झड़प, दो धड़ों में बंटी पार्टी
नालंदा में हुए इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह सवाल उठा दिया है कि क्या कांग्रेस अपनी आंतरिक एकता को बनाए रख पाएगी या गुटबाजी उसकी राह में रोड़ा बन जाएगी?

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा कांग्रेस पार्टी की आंतरिक कलह अब खुलकर सामने आ गई है। नए जिला अध्यक्ष की नियुक्ति के बाद से पार्टी दो गुटों में बंट चुकी है, जिसका असर बिहारशरीफ के कांग्रेस कार्यालय में हुए हिंसक प्रदर्शन में साफ दिखाई दिया। राजेंद्र आश्रम धनेश्वर घाट स्थित पार्टी कार्यालय में प्रखंड अध्यक्षों द्वारा आयोजित हल्ला बोल धरना ने हिंसक रूप ले लिया, जिससे पार्टी की एकता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
नालंदा जिला कांग्रेस कमेटी के कुछ प्रखंड अध्यक्षों ने वर्तमान जिला अध्यक्ष नरेश कुमार अकेला और प्रदेश अध्यक्ष के कार्यों के खिलाफ धरना आयोजित किया था। कार्यकर्ताओं का आरोप है कि जिला अध्यक्ष की कार्यशैली से पार्टी कमजोर हो रही है। धरने के दौरान विरोधी गुट के कार्यकर्ता कार्यालय में तालाबंदी करने पहुंचे, जिसका समर्थक गुट ने कड़ा विरोध किया।
विरोध के दौरान दोनों पक्षों के बीच पहले तीखी बहस हुई, जो जल्द ही कहासुनी और फिर हाथापाई में बदल गई। कार्यालय के बाहर तनावपूर्ण माहौल बन गया और स्थानीय लोगों की भीड़ जमा हो गई। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा।
नालंदा कांग्रेस में दो प्रमुख गुट साफ तौर पर उभरकर सामने आए हैं। एक गुट वर्तमान जिला अध्यक्ष नरेश कुमार अकेला और प्रदेश नेतृत्व के समर्थन में है, जबकि दूसरा गुट पुराने जिला अध्यक्ष के पक्ष में खड़ा है। विरोधी गुट ने नरेश कुमार पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
उनका दावा है कि राहुल गांधी के एक कार्यक्रम के दौरान जिला अध्यक्ष ने आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों से मुलाकात करवाई थी। इसके अलावा उन पर दलालों से घिरे रहने और मोटी रकम लेने के भी आरोप लगाए गए हैं। इन आरोपों ने पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच असंतन और बढ़ा दिया है।
विवाद पर जिला अध्यक्ष नरेश कुमार अकेला ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि यदि किसी कार्यकर्ता को कोई शिकायत है तो उसे उसे पार्टी के मंच पर अपनी बात रखनी चाहिए। इस तरह का व्यवहार निंदनीय है और पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाता है।
उन्होंने आगे कहा कि जो लोग इस अनुशासनहीनता में शामिल हैं, उनके खिलाफ प्रदेश नेतृत्व को पत्र लिखकर कार्रवाई का अनुरोध किया जाएगा। कांग्रेस में अनुशासन सर्वोपरि है और इसे किसी भी कीमत पर तोड़ा नहीं जा सकता।
यह घटना नालंदा में कांग्रेस के लिए एक बड़े संकट का संकेत है। जिले में पहले से ही कमजोर संगठन अब गुटबाजी की चपेट में आ गया है, जिसका असर आगामी राजनीतिक गतिविधियों पर पड़ सकता है। स्थानीय कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर जल्द ही इस विवाद का समाधान नहीं हुआ तो पार्टी की एकता और विश्वसनीयता को गंभीर नुकसान हो सकता है।
कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व के सामने अब नालंदा के इस मुश्किल स्थिति को संभालने की चुनौती है। क्या दोनों गुटों के बीच सुलह हो पाएगी, या यह विवाद और गहराएगा? यह देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी नेतृत्व इस संकट से निपटने के लिए कौन से कदम उठाता है।









