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जहानाबाद-गया राजमार्ग पर देखिए एनएच निर्माण एजेंसी का गजब कारनामा

नालंदा दर्पण डेस्क। जहानाबाद को गया से जोड़ने वाली राष्ट्रीय राजमार्ग 83 (लेफ्ट आउट) के चौड़ीकरण कार्य में निर्माण एजेंसी का एक हैरान करने वाला कारनामा सामने आया है। सड़क के बीचों-बीच कई बड़े पेड़ छोड़ दिए गए हैं, जो अब वाहन चालकों के लिए खतरा बन गए हैं।

गया-पटना मार्ग का हिस्सा रही यह सड़क कनौदी से इरकी तक 7.48 किलोमीटर लंबी है। इसके चौड़ीकरण के लिए 98 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया था। लेकिन वन विभाग से पेड़ काटने की अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) न मिलने के कारण निर्माण कार्य अधूरा रह गया। नतीजतन सड़क पर मौजूद पेड़ अब वाहन चालकों के लिए मुसीबत का सबब बन गए हैं।

खासकर पटना-गया रोड पर एरकी पावर ग्रिड के पास कई बड़े पेड़, जो पहले सड़क के किनारे थे, चौड़ीकरण के बाद अब सड़क के बीचों-बीच आ गए हैं। इन पेड़ों की वजह से वाहन चालकों को खासा परेशानी हो रही है। खासकर रात के समय जब दृश्यता कम होने से हादसों का खतरा बढ़ जाता है।

पथ निर्माण विभाग के सूत्रों के अनुसार इस सड़क की चौड़ाई 25 से 40 मीटर तक की जानी थी। जिसमें बीच में डिवाइडर, दोनों ओर नालियां और डक्ट का निर्माण भी शामिल था। इस परियोजना को अप्रैल 2025 तक पूरा करना था। लेकिन अब तक केवल 30 प्रतिशत कार्य ही पूरा हो सका है।

पथ निर्माण विभाग का कहना है कि सड़क निर्माण में देरी का प्रमुख कारण अतिक्रमण और वन विभाग से एनओसी न मिलना है। वन विभाग ने पेड़ों की कटाई के बदले मुआवजे के रूप में प्रशासन से 14 हेक्टेयर भूमि की मांग की थी, जो अब तक उपलब्ध नहीं कराई जा सकी। इस वजह से एनओसी की प्रक्रिया अटकी हुई है।

वहीं सड़क पर पेड़ों की मौजूदगी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद जिला प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई की। प्रशासन ने पेड़ों पर रिफ्लेक्टर लगवाए और उनके चारों ओर रेत से भरी बोरियों से घेराबंदी की।

जहानाबाद की जिलाधिकारी अलंकृता पांडेय ने बताया कि पेड़ों पर ट्री रिफ्लेक्टर लगाए गए हैं ताकि वाहन चालकों को रात में दिक्कत न हो। पेड़ों की कटाई या स्थानांतरण के लिए वन विभाग से एनओसी का इंतजार किया जा रहा है।

इस बीच वन विभाग ने यूजर एजेंसी के खिलाफ वन अधिनियम के उल्लंघन का केस दर्ज किया है। विभाग का कहना है कि बिना अनुमति सड़क निर्माण कार्य शुरू करना नियमों का उल्लंघन है।

वन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि पेड़ों की सुरक्षा के लिए सख्त नियम हैं। बिना एनओसी के कोई भी कार्य शुरू नहीं किया जाना चाहिए था।

स्थानीय निवासियों का कहना है कि सड़क का अधूरा निर्माण और बीच में पेड़ों का छोड़ दिया जाना प्रशासन और निर्माण एजेंसी की लापरवाही को दर्शाता है। प्रशासन को जल्द से जल्द इसका समाधान करना चाहिए।

हालांकि जिला प्रशासन और पथ निर्माण विभाग अब वन विभाग के साथ मिलकर इस समस्या का समाधान करने की कोशिश कर रहे हैं। प्रशासन का कहना है कि जल्द ही एनओसी मिलने की उम्मीद है, जिसके बाद पेड़ों को स्थानांतरित करने या काटने का निर्णय लिया जाएगा। तब तक रिफ्लेक्टर और बोरियों से घेराबंदी एक अस्थायी समाधान के रूप में काम कर रही है।

बहरहाल, यह मामला न केवल निर्माण एजेंसी की लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि विभागों के बीच समन्वय की कमी को भी दर्शाता है। सवाल यह है कि क्या इस सड़क का निर्माण समय पर पूरा हो पाएगा, या यह लापरवाही और देरी की कहानी आगे भी जारी रहेगी?

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