नालंदा दर्पण डेस्क। नूरसराय प्रखंड अंतर्गत मुजफ्फरपुर पंचायत के परासी गांव में गढ़पर स्थित 800 साल पुराने भगवान चतुर्भुजनाथ (श्री विष्णु) की काले रंग की पांच फीट ऊंची प्रतिमा अपने आप में कई गौरवशाली इतिहास समेटे हुए है। स्थापना काल से ही लोग इसकी पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं।
ऐसी मान्यता है कि इनके कृपा से ही अब तक इस गांव में कभी भी खून खराबा नहीं हुआ है। वैसे तो नालंदा का कण-कण प्राचीन ऐतिहासिक धरोहरों व गौरवशाली अतीत की गाथा सुना रहे हैं। लेकिन, आज तक परासी गांव स्थित भगवान चतुर्भुज नाथ की मूर्ति और मंदिर को सहेजने व संवारने की ओर किसी का ध्यान नहीं गया है। इस मंदिर की बहुत ही गौरवशाली परंपरा रही है। इसे सहेजने की आवश्यकता है।
1308 ईस्वी से विराजमान भगवान विष्णु की प्रतिमा: ग्रामीणों की मानें तो यह प्रतिमा यहां 1308 ई. से ही मौजूद है। इसके चबूतरा का निर्माण 1934 में गांव के ही स्व. बाब महावीर सिंह ने करवाया था। मौजूदा समय में इस मंदिर का चबूतरा 25 फीट ऊंचा है। निचली सतह से 10 फीट ऊंची है।
25 फीट ऊंची दीवार के ऊपर से मंदिर निर्माण करने की कई बार कोशिश की गयी। लेकिन, वह कुछ दिन में ही अपने आप ध्वस्त हो जाता है। जबकि, मंदिर और मूर्ति का अन्य भाग परी तरह सुरक्षित और पुरातन स्थिति में आज भी मौजूद है।
बाबा चतुर्भुजनाथ के बाएं हाथ में शंख तो दाहिने बगल में गदा और चक्र मौजूद है। यहां भगवान विष्णु की प्रतिमा कमल के फूल पर विराजमान है। जो इसकी ऐतिहासिकता का प्रमाण है। इसके प्रति लोगों को असीम श्रद्धा और भक्ति है।
ब्राह्मण छोड़ अन्य नहीं करते हैं प्रवेशः मंदिर की खासियत है कि इसमें ब्राह्मणों को छोड़ अन्य कोई प्रवेश नहीं करते हैं। अन्य लोग मंदिर के मुख्य दरवाजे से ही पूजा पाठ करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में सच्चे दिल से मांगी हर मुराद पूरी होती है। यहां का मुख्य प्रसाद पेड़ा है। ऐसी धारणा है कि गांव में इस मंदिर के होने से आज तक सुख शांति व आपसी भाईचारा बनी हुई है।
ब्राह्मण जलाते हैं रोजाना घी के दिएः ग्रामीणों को अनुसार भगवान चतुर्भुजनाथ की महिमा अपरंपार है। इस मंदिर में प्रतिदिन ब्राह्मण घी का दीया जलाते हैं। इसके लिए ग्रामीण आपस में चंदा जमा कर घी का प्रबंध कर ब्राह्मणों को देते हैं। इस गांव में पांच घर ही ब्राह्मण हैं। बारी-बारी से हर घर के ब्राह्मणों को पूजा करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है। यहां के लोग किसी भी शुभ काम शुरू करने से पहले भगवान चतुर्भुजनाथ की पूजा अवश्य करते हैं।
आषाढ़ पूर्णिमा को ब्राह्मणों को कराया जाता है भोजः बाबा चतुर्भुजनाथ के नाम से इस गांव में 15 कट्ठा जमीन है। इसकी आमदनी से इलाके के सैकड़ों ब्राह्मणों को आषाढ़ पूर्णिमा के दिन हर वर्ष भोज कराया जाता है। इस दिन बाबा की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। हालांकि शनिवार व रविवार को छोड़ अन्य जगहों से भी यहां काफी भक्त पहुंचते हैं।
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