“यह मामला प्रशासनिक ढांचे की कमजोरियों और योजनाओं के सही तरीके से क्रियान्वयन की आवश्यकता पर जोर देती है। सीएम नीतीश कुमार की यात्रा के दौरान यदि इन मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह उनकी ‘प्रगति यात्रा’ के उद्देश्य को ही कमजोर करेगा…
राजगीर (नालंदा दर्पण)। बिहार के सीएम नीतीश कुमार की प्रगति यात्रा ने नालंदा जिले के सिलाव प्रखंड में प्रशासनिक लापरवाहियों का काला चिट्ठा खोल दिया है। सिलाव प्रखंड के आदर्श ग्राम नानंद स्थित महादलित क्लस्टर में करोड़ों रुपये की योजनाओं में गड़बड़ियों का खुलासा हुआ है। हालात ऐसे हैं कि सीएम के आगमन से पहले प्रशासन अनियमितताओं पर पर्दा डालने के लिए तेजी से रंग-रोगन और सौंदर्यीकरण का काम करा रहा है।
वित्तीय वर्ष 2021-22 में स्वीकृत इस परियोजना के तहत 12 महादलित परिवारों को पांच-पांच डिसमिल भूमि आवंटित की गई थी। आवास निर्माण के लिए फरवरी 2023 में पहली किस्त जारी की गई। लेकिन योजना के क्रियान्वयन में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई। लाभार्थी गुड्डू मांझी का अधूरा मकान इसका जीता-जागता प्रमाण है। स्थानीय निवासियों के अनुसार अधिकांश मकानों में छतें अधूरी हैं और खिड़की-दरवाजों का काम भी पूरा नहीं हुआ है।
आवास सहायक ने खुद स्वीकार किया कि अधिकांश मकानों में प्लास्टर और खिड़की-दरवाजों का काम अधूरा होने के बावजूद अंतिम किस्त का भुगतान कर दिया गया। ऐसे में यह सवाल उठता है कि अधिकारियों की लापरवाही और भ्रष्टाचार का खामियाजा महादलित परिवारों को क्यों भुगतना पड़ रहा है?
बीडीओ ने सफाई देते हुए कहा कि यह निर्माण उनके कार्यभार संभालने से पहले का है। हालांकि सीएम के संभावित दौरे को देखते हुए प्रशासनिक अधिकारियों ने एजेंसियों को काम पूरा करने का निर्देश दिया है। फिलहाल अधूरे मकानों की दीवारों पर समरूप रंग-रोगन और सौंदर्यीकरण के जरिए अनियमितताओं को छुपाने की कवायद की जा रही है।
सीएम के आगमन के बहाने प्रशासन अपनी छवि बचाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन अधूरे मकानों में रहने को मजबूर गरीब लाभार्थी अपने हक से वंचित हैं। यह घटना न केवल सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि महादलितों के जीवन को बेहतर बनाने के दावों पर भी सवाल खड़े करती है।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि योजनाओं में पारदर्शिता की कमी और अधिकारियों की उदासीनता ने गरीबों की समस्याओं को और बढ़ा दिया है। सीएम की यात्रा को लेकर गांव में गतिविधियां तेज हैं। लेकिन यह रंग-रोगन और दिखावा कब तक गरीबों की बदहाली को छुपा पाएगा?
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