
राजगीर (नालंदा दर्पण डेस्क / मुकेश भारतीय)। बिहार विधानसभा चुनाव-2025 के पहले चरण में नालंदा जिले का राजगीर विधानसभा क्षेत्र एक बार फिर राजनीतिक हलचल का केंद्र बन गया है। प्राचीन बौद्ध स्थलों और हॉट स्प्रिंग्स के लिए प्रसिद्ध इस अनुसूचित जाति (SC) आरक्षित सीट दशकों से कांग्रेस, जनसंघ (अब भाजपा), सीपीआई और हाल के वर्षों में जेडीयू जैसे दलों के बीच कांटे की टक्कर का गवाह रही है। 6 नवंबर को होने वाले इस चुनाव में वर्तमान विधायक कौशल किशोर (जेडीयू) अपनी सीट बचाने की कोशिश करेंगे, लेकिन इतिहास गवाह है कि यहां कभी भी कुछ भी हो सकता है। हर तिलिस्म टूट सकता है।
हम नालंदा दर्पण के लिए राजगीर के सभी विधानसभा चुनावों (1957 से 2020 तक) के आंकड़ों का गहन विश्लेषण कर रहे हैं। यह विश्लेषण विजेताओं, उपविजेताओं और प्रमुख उम्मीदवारों के वोट शेयर, मार्जिन और पार्टी ट्रेंड्स पर आधारित है। आंकड़े मुख्य रूप से चुनाव आयोग, विकिपीडिया, कई सर्वें और अन्य विश्वसनीय स्रोतों से लिए गए हैं। क्या 2025 में जेडीयू का किला बरकरार रहेगा या एक बार फिर इतिहास के पन्ने नए शक्ल लेंगे? आइए, इतिहास के उन पन्नों को पलटते हैं और समझते हैं कि क्या प्रबल संभावना झलकती है।
शुरुआती दौर: कांग्रेस का जलवा, लेकिन संक्षिप्त (1957-1962)
राजगीर सीट का सफर 1957 से शुरू होता है, जब यह बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से एक बनी। पहले चुनाव में कांग्रेस का दबदबा साफ दिखा। बालदेव प्रसाद (कांग्रेस) ने 24,724 वोटों से जीत हासिल की, जबकि उपविजेता रामफल आर्य (सीएनपीएसपीजेएसपी) को 22,219 वोट मिले। मार्जिन महज 2,505 वोट का था, जो कड़ी टक्कर की शुरुआती बानगी था।
1962 में बालदेव प्रसाद ने अपना किला बरकरार रखा। उन्होंने 18,091 वोट हासिल कर रामफल आर्य (एसडब्ल्यूए) को 10,819 वोटों से हराया। मार्जिन 7,272 वोट रहा, जो कांग्रेस की मजबूत पकड़ को दर्शाता है। इस दौर में वोटर टर्नआउट कम था, लेकिन स्थानीय मुद्दे जैसे सिंचाई और कृषि ने भूमिका निभाई। हालांकि यह कांग्रेस का आखिरी सुनहरा दौर साबित हुआ।
जनसंघ का उदय: दक्षिणपंथी लहर (1967-1969)
1960 के दशक के अंत में राजनीतिक हवाएं बदलीं। 1967 में जगदीश प्रसाद (बीजेएस) ने 14,633 वोटों से जीत दर्ज की। उपविजेता आर.पी. आर्य (कांग्रेस) को 8,870 वोट मिले। मार्जिन 5,763 वोट (कुल वैध वोटों का 14.41%) का था। यह जीत जनसंघ की उभरती ताकत का संकेत थी।
1969 में यदुनंदन प्रसाद (बीजेएस) ने और मजबूती दिखाई। 20,929 वोटों से रामफल आर्य (कांग्रेस) को 20,235 वोटों से हराया। मार्जिन सिर्फ 694 वोट (1.23%) का था। इतिहास का सबसे करीबी मुकाबला। यह दौर आर्य समाज और हिंदू राष्ट्रवाद की लहर से प्रभावित था, जहां जनसंघ ने SC वोट बैंक को ललकारा।
सीपीआई का दखल: वामपंथी चुनौती (1972-1990)
1970 के दशक में वाम लहर चली। 1972 में चंद्रदेव प्रसाद हिमांशु (सीपीआई) ने 29,423 वोटों से यदुनंदन प्रसाद (एनसीओ) को 24,539 वोटों से पछाड़ा। मार्जिन 4,884 वोट रहा। लेकिन 1977 के इमरजेंसी बाद के चुनाव में सत्यदेव नारायण आर्य (जेएनपी) ने जबरदस्त वापसी की। 48,254 वोटों से चंद्रदेव (सीपीआई) को 25,097 से हराया। मार्जिन 23,157 वोट का था, जो जेएनपी (जनता पार्टी) की राष्ट्रीय लहर को प्रतिबिंबित करता है।
1980 और 1985 में सत्यदेव आर्य (भाजपा) ने सीपीआई के चंद्रदेव को लगातार हराया। 1980 में मार्जिन 7,571 वोट और 1985 में 9,780 मार्जिन वोट रहे। 1990 में चंद्रदेव (सीपीआई) ने 50,116 वोटों से वापसी की। सत्यदेव (भाजपा) को 41,205 वोट आए। मार्जिन 8,911 वोट रहे। इस दौर में सीपीआई मजदूर-किसान वोटों पर हावी रही, जबकि भाजपा धीरे-धीरे मजबूत हो रही थी।
भाजपा का स्वर्णिम काल: सत्यदेव आर्य का दबदबा (1995-2010)
1995 से 2010 तक भाजपा का राज चला। सत्यदेव नारायण आर्य ने पांच लगातार चुनाव जीते। 1995 में 45,548 वोट लाकर 40,715 पाने वाले चंद्रदेव (सीपीआई) को हराया। मार्जिन 4,833 वोट रहे। वहीं 2000 में 60,068 वनाम 46,097 (आरजेडी के चंद्रदेव) की जंग में मार्जिन 13,971 वोट रहे। 2005 (फरवरी) में 29,324 वनाम 12,155 (एलजेएपी) की टक्कर में मार्जिन 17,169 वोट रहे। 2005 (अक्टूबर) में 36,344 वनाम 26,486 (सीपीएम) में मार्जिन 9,858 वोट रहे। 2010 में 50,648 वनाम 23,697 (एलजेएपी) में मार्जिन 26,951 वोट रहे।
सत्यदेव का रिकॉर्ड अनुकरणीय है। वह भाजपा के ‘अटल योद्धा’ जैसे बन गए। इस दौर में वोट शेयर 40-50% रहा और टर्नआउट 44-54% के बीच।
जेडीयू का आगमन: बदलते समीकरण (2015-2020)
2015 में लहर बदली। रवि ज्योति कुमार (जेडीयू) ने 62,009 वोट लाकर 56,619 वोट पाने वाले सत्यदेव आर्य (भाजपा) को सिर्फ मार्जिन 5,390 वोट (3.63%) से हराया। यह एक और करीबी जंग रही। नीतीश कुमार की लहर ने भाजपा को पटखनी दी।
वहीं 2020 में जेडीयू ने भाजपा नेता सत्यदेव आर्या के पुत्र कौशल किशोर को चुनाव मैदान में उतारा। उन्होंने जेडीयू छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए रवि ज्योति मार्जिन 16,048 वोट (10.17%) से मात दी।
कौशल किशोर (जेडीयू) को 67,191 वोट और रवि ज्योति (कांग्रेस) को 51,143 वोट आए। मार्जिन 16,048 वोट (10.17%) और टर्नआउट 53.66% रहे। जेडीयू ने SC वोटों को एकजुट किया।
| वर्ष | विजेता (पार्टी) | वोट | उपविजेता (पार्टी) | वोट | मार्जिन | प्रमुख टिप्पणी |
| 1957 | बालदेव प्रसाद (INC) | 24,724 | रामफल आर्य (CNPSPJP) | 22,219 | 2,505 | कांग्रेस का प्रारंभिक दबदबा |
| 1962 | बालदेव प्रसाद (INC) | 18,091 | रामफल आर्य (SWA) | 10,819 | 7,272 | स्थिरता का दौर |
| 1967 | जगदीश प्रसाद (BJS) | 14,633 | आर.पी. आर्य (INC) | 8,870 | 5,763 | जनसंघ का उदय |
| 1969 | यदुनंदन प्रसाद (BJS) | 20,929 | रामफल आर्य (INC) | 20,235 | 694 | सबसे करीबी मुकाबला |
| 1972 | चंद्रदेव हिमांशु (CPI) | 29,423 | यदुनंदन प्रसाद (NCO) | 24,539 | 4,884 | वाम लहर |
| 1977 | सत्यदेव आर्य (JNP) | 48,254 | चंद्रदेव (CPI) | 25,097 | 23,157 | जनता लहर |
| 1980 | सत्यदेव आर्य (BJP) | 36,142 | चंद्रदेव (CPI) | 28,571 | 7,571 | भाजपा मजबूत |
| 1985 | सत्यदेव आर्य (BJP) | 38,568 | चंद्रदेव (CPI) | 28,788 | 9,780 | लगातार जीत |
| 1990 | चंद्रदेव हिमांशु (CPI) | 50,116 | सत्यदेव आर्य (BJP) | 41,205 | 8,911 | सीपीआई की वापसी |
| 1995 | सत्यदेव आर्य (BJP) | 45,548 | चंद्रदेव (CPI) | 40,715 | 4,833 | भाजपा का स्वर्णिम दौर शुरू |
| 2000 | सत्यदेव आर्य (BJP) | 60,068 | चंद्रदेव (RJD) | 46,097 | 13,971 | मजबूत मार्जिन |
| 2005 (फेब) | सत्यदेव आर्य (BJP) | 29,324 | अनिल राय (LJP) | 12,155 | 17,169 | दोहरी जीत |
| 2005 (अक्टू) | सत्यदेव आर्य (BJP) | 36,344 | परमेश्वर प्रसाद (CPM) | 9,858 | 26,486 | – |
| 2010 | सत्यदेव आर्य (BJP) | 50,648 | धनंजय कुमार (LJP) | 23,697 | 26,951 | पांचवीं लगातार जीत |
| 2015 | रवि ज्योति कुमार (JD(U)) | 62,009 | सत्यदेव आर्य (BJP) | 56,619 | 5,390 | जेडीयू का आगमन |
| 2020 | कौशल किशोर (JD(U)) | 67,191 | रवि ज्योति (INC) | 51,143 | 16,048 | जेडीयू कायम |
अब तक के सभी प्रमुख उम्मीदवारों का विश्लेषण: सत्यदेव वनाम चंद्रदेव वनाम नितीश के सिपाही
सत्यदेव नारायण आर्य (भाजपा/जेएनपी): सबसे प्रभावशाली चेहरा। 1977 से 2010 तक 7 बार विजयी। कुल वोट शेयर औसतन 45%। उनका SC समुदाय पर गहरा प्रभाव, लेकिन 2015 में हार ने साबित किया कि गठबंधन मायने रखते हैं।
चंद्रदेव प्रसाद हिमांशु (सीपीआई): 1972, 1990 में विजयी। 4 बार उपविजेता। वाम विचारधारा के प्रतीक, लेकिन 2000 के बाद फीके पड़े।
रवि ज्योति कुमार: 2015 विजेता (जेडीयू), 2020 में कांग्रेस से उपविजेता। युवा चेहरा, लेकिन पार्टी बदलाव ने नुकसान पहुंचाया। अब राजनीतिक हाशिए पर।
कौशल किशोर (जेडीयू): 2020 के बाद स्थापित। 42% वोट शेयर। इस 2025 में वे महागठबंध के भाकपा माले और प्रशांत किशोर की जनसुराज के त्रिकोणीय मुकाबले में फंसे दिख रहे है। मुकाबला भाजपा या आरजेडी से हो सकता है।
इन ट्रेंड्स से साफ है कि मार्जिन औसतन 10,000 वोट के आसपास रहा, लेकिन 1969 और 2015 जैसे करीबी मुकाबलों ने रोमांच जोड़ा। वोट शेयर में भाजपा (पुरानी जनसंघ सहित) 40% से ऊपर रही, जबकि जेडीयू ने हाल में 41-42% हासिल किया। टर्नआउट बढ़ा है। 1957 के 40% से 2020 के 53% तक। विकास, बेरोजगारी, पर्यटन (राजगीर के हॉट स्प्रिंग्स) और SC आरक्षण जैसे मुद्दे साफ दिख रहे हैं।
2025 की संभावनाएं: जेडीयू बरकरार या होगी नए चेहरे की वापसी?
चुनाव आयोग के अनुसार राजगीर में 2.5 लाख से अधिक मतदाता हैं। एनडीए (जेडीयू-भाजपा) गठबंधन बरकरार है, लेकिन स्थानीय स्तर पर उनमें टेंशन साफ तौर पर देखा जा रहा है। शुरुआत में एनडीए की ओर से लोजपा को सीट देने से भी कौतुहलता उत्पन्न हो गई थी। भाजपा आज भी अंदरुनी तौर पर इसे अपना परंपरागत सीट मानकर चल रही है।
मुख्यमंत्री के चेहरे पर टिके जदयू प्रत्याशी कौशल किशोर का वोट शेयर अगर 45% पार कर गया तो उनकी राह आसान हो सकती है। अन्यथा परिणाम पलट सकते हैं। ऐसे भी महागठबंधन की ओर से भाकपा माले और जन सुराज ने दमदार उम्मीदवार उतारे हैं। इतिहास भी कहता है कि राजगीर में कभी पुरानी किताबें काम नहीं आतीं!
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