

बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। Bihar Sharif Hiranya Parvat: बिहारशरीफ नालंदा जिले का एक ऐतिहासिक शहर है। यहां हर गली-मोहल्ले में प्राचीनता की गूंज सुनाई देती है। इस शहर के ठीक बीचोबीच खड़ा है हिरण्य पर्वत )। इसे स्थानीय लोग ‘बड़ी पहाड़ी’ भी कहते हैं। यह पहाड़ी न केवल एक प्राकृतिक सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि इतिहास संस्कृति और धार्मिक आस्था का एक अनमोल संगम भी है। आइए इस रोचक फीचर समाचार के माध्यम से हिरण्य पर्वत की कहानी को करीब से जानें।
हिरण्य पर्वत बिहारशरीफ के मध्य में एक छोटी सी पहाड़ी है, जो अपने शांत और सुरम्य वातावरण के लिए जानी जाती है। पहाड़ी के एक छोर पर प्राचीन हनुमान मंदिर और हाल में निर्मित शिव मंदिर श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं तो दूसरे छोर पर मलिक इब्राहिम बया शाह का मकबरा इतिहास के पन्नों को जीवंत करता है। यह पहाड़ी अपने आप में एक अनूठा दृश्य प्रस्तुत करती है, जहां हिंदू और इस्लामिक संस्कृति का मिलन देखने को मिलता है।
यहां का प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटकों को अपनी ओर खींचता है। पहाड़ी के ऊपर से बिहारशरीफ शहर का मनोरम दृश्य दिखाई देता है, जो सूर्योदय और सूर्यास्त के समय और भी आकर्षक लगता है। हाल के वर्षों में बिहार सरकार ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की दिशा में कई कदम उठाए हैं। जिसमें पार्क और सौंदर्यीकरण का कार्य शामिल है।
हिरण्य पर्वत का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना नालंदा का प्राचीन विश्वविद्यालय। इतिहासकारों और पुरातत्वविदों का मानना है कि हिरण्य पर्वत के आसपास का क्षेत्र कभी उदंतपुरी के नाम से जाना जाता था, जो एक प्रमुख बौद्ध शिक्षा केंद्र था। प्रसिद्ध उपन्यासकार आचार्य चतुरसेन ने अपनी पुस्तक देवांगना में लिखा है कि बिहारशरीफ का यह क्षेत्र उदंतपुरी का हिस्सा था, जो विश्व प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय के निकट स्थित था।
फ्रांसीसी यात्री बुकानन और पुरातत्वविद कनिंघम ने भी बिहारशरीफ में एक विशाल टीले का उल्लेख किया है। जहां से बौद्ध देवी की कांस्य प्रतिमा प्राप्त हुई थी। इस प्रतिमा पर अंकित अभिलेख में ‘एणकठाकुट’ का नाम मिलता है, जो उदंतपुरी का निवासी था। माना जाता है कि उदंतपुरी में करीब एक हजार बौद्ध विद्वान और विद्यार्थी रहते थे। उन्होंने बाद में तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
12वीं शताब्दी में जब मुहम्मद बिन खिलजी ने इस क्षेत्र पर आक्रमण किया। उदंतपुरी और नालंदा के धार्मिक केंद्रों को भारी नुकसान पहुंचा। मंदिरों और मठों को लूटा गया और बौद्ध धर्म का प्रभाव कम हो गया। लेकिन हिरण्य पर्वत ने इस विनाश को देखते हुए भी अपनी पहचान को संजोए रखा।
हिरण्य पर्वत की एक चोटी पर मलिक इब्राहिम बया शाह का मकबरा स्थित है, जो नालंदा के पुरातात्विक स्थलों में से एक है। किवदंती के अनुसार मलिक इब्राहिम बया शाह मुगल बादशाह फिरोज शाह तुगलक के सिपहसालार थे। उन्हें ईरान से बिहार फतह करने के लिए भेजा गया था। उन्होंने इस पहाड़ी को अपना बसेरा बनाया। क्योंकि यह रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण थी और यहां से दुश्मनों पर नजर रखी जा सकती थी।
स्थानीय मान्यता है कि उस समय क्षेत्र में जादू,टोना और टोटकों का प्रचलन था। मलिक इब्राहिम ने इन प्रथाओं के खिलाफ अभियान चलाया और लोगों को इससे मुक्ति दिलाई। उनके बड़े पुत्र सैय्यद दाउद ने इस मकबरे का निर्माण करवाया, जो आज भी आस्था और इतिहास का प्रतीक है। प्रत्येक वर्ष यहां उर्स का आयोजन होता है। इसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं।
हिरण्य पर्वत का एक अनूठा पहलू इसका धार्मिक और सांस्कृतिक सामंजस्य है। हनुमान मंदिर और शिव मंदिर जहां हिंदू भक्तों के लिए आस्था का केंद्र हैं। वहीं मलिक इब्राहिम का मकबरा मुस्लिम समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा बौद्ध धर्म के अवशेष इस स्थान को त्रिवेणी संगम की तरह बनाते हैं।
पहाड़ी पर बना पार्क और हाल में किए गए सौंदर्यीकरण कार्यों ने इसे परिवारों और पर्यटकों के लिए एक आदर्श पिकनिक स्थल बना दिया है। खासकर सप्ताहांत पर यहां स्थानीय लोग और पर्यटक प्रकृति का आनंद लेने और धार्मिक स्थलों के दर्शन करने आते हैं।
हिरण्य पर्वत समय,समय पर पुरातात्विक खोजों का गवाह रहा है। 2017 में जब पहाड़ी पर सौंदर्यीकरण के लिए दीवार की खुदाई चल रही थी तो कई दुर्लभ अवशेष मिले। हालांकि इन अवशेषों को पुरातत्व विभाग को नहीं सौंपा गया। जिसके कारण यह स्पष्ट नहीं हो सका कि ये पाल, शुंग या मुगल काल के हैं। फिर भी ये खोजें इस बात की ओर इशारा करती हैं कि हिरण्य पर्वत का इतिहास अभी भी कई रहस्यों को समेटे हुए है।
हिरण्य पर्वत में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। 2019 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस स्थल का दौरा किया और इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजनाओं पर चर्चा की। इसके बाद से यहां पार्क, बैठने की व्यवस्था और सौंदर्यीकरण के कार्य शुरू हुए हैं।
पर्यटन विशेषज्ञों का मानना है कि अगर हिरण्य पर्वत को नालंदा और राजगीर जैसे प्रमुख पर्यटन स्थलों के साथ जोड़ा जाए तो यह क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों को भी आकर्षित कर सकता है। इसके लिए बेहतर सड़क संपर्क, गाइडेड टूर और स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों की आवश्यकता है।
बिहारशरीफ के स्थानीय निवासियों के लिए हिरण्य पर्वत केवल एक पर्यटन स्थल नहीं, बल्कि उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का हिस्सा है। 60 वर्षीय मोहम्मद इकबाल बताते हैं कि हम बचपन से इस पहाड़ पर आते रहे हैं। यहां का मकबरा और मंदिर दोनों ही हमारे लिए पवित्र हैं। उर्स के समय तो यहां मेला सा लगता है।
वहीं युवा पीढ़ी इसे एक रिफ्रेशिंग डेस्टिनेशन के रूप में देखती है। कॉलेज छात्रा प्रियंका कुमारी कहती हैं कि हिरण्य पर्वत पर दोस्तों के साथ समय बिताना बहुत अच्छा लगता है। यहां का नजारा और शांति मन को सुकून देती है।
हालांकि हिरण्य पर्वत को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने में कुछ चुनौतियां भी हैं। स्थानीय स्तर पर जागरूकता की कमी, पुरातात्विक अवशेषों के संरक्षण में लापरवाही और बुनियादी सुविधाओं का अभाव कुछ प्रमुख मुद्दे हैं। इसके बावजूद अगर सरकार और स्थानीय प्रशासन सही दिशा में काम करें तो यह स्थल बिहार के पर्यटन मानचित्र पर एक चमकता सितारा बन सकता है।
वेशक, हिरण्य पर्वत बिहारशरीफ का एक ऐसा रत्न है, जो इतिहास, धर्म और प्रकृति का अनूठा मेल प्रस्तुत करता है। यह न केवल स्थानीय लोगों के लिए गर्व का विषय है, बल्कि उन सभी के लिए एक खोज है, जो बिहार के समृद्ध अतीत और सांस्कृतिक विविधता को समझना चाहते हैं। अगली बार जब आप बिहारशरीफ आएं तो हिरण्य पर्वत की सैर जरूर करें। यहां की हर चट्टान, हर मंदिर और हर मकबरा आपको एक नई कहानी सुनाएगा।
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