सिलाव (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले का बड़गांव सूर्यपीठ (Heritage) सूर्योपासना के 12 प्रमुख केंद्रों में से एक है, जहां आस्था और चमत्कार की कहानियां आज भी जीवंत हैं। यह स्थान न केवल छठ पूजा के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक घटनाओं का भी साक्षी रहा है।
यहां पुरातन काल से देश भर से श्रद्धालु चैत और कार्तिक माह में छठ व्रत के लिए आते हैं। मान्यता है कि सूर्यदेव की कृपा से उनकी हर मनोकामना पूरी होती है। हर रविवार को भी भक्तों का तांता लगता है। खासकर अगहन और माघ माह में पड़ने वाले रविवार को जब सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा निभाई जाती है।
इस सूर्यपीठ से जुड़ी एक रोचक किवदंती महर्षि दुर्वासा और भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब की है, जिसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। कथा के अनुसार जब महर्षि दुर्वासा द्वारिका नगरी में श्रीकृष्ण से मिलने आए, तो साम्ब को किसी बात पर हंसी आ गई।
क्रोधी स्वभाव के दुर्वासा ने इसे अपना अपमान समझा और साम्ब को कुष्ठ रोग का श्राप दे दिया। श्रीकृष्ण की सलाह पर साम्ब इस रोग से मुक्ति पाने के लिए यात्रा पर निकले। रास्ते में उन्हें असहनीय प्यास लगी। यह स्थान तब घने जंगल वाला बराक क्षेत्र था, जो आज बड़गांव के नाम से जाना जाता है।
साम्ब ने अपने सेवकों को पानी लाने का आदेश दिया, लेकिन जंगल में स्वच्छ जल नहीं मिला। अंततः एक गड्ढे में गंदा पानी देखकर सेवक उसे लेकर आए। प्यास से व्याकुल साम्ब ने वह पानी पी लिया और चमत्कारिक रूप से उनके शरीर में बदलाव शुरू हो गया।
इस घटना ने उन्हें सूर्यदेव की उपासना के लिए प्रेरित किया। साम्ब ने 49 दिनों तक यहां सूर्य की कठिन तपस्या की। जिसके फलस्वरूप उन्हें कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली। इसके बाद साम्ब ने उस गड्ढे को खुदवाकर एक विशाल तालाब का निर्माण कराया।
खुदाई के दौरान तालाब से सूर्यदेव, कल्पविष्णु, आदित्य माता, सरस्वती, लक्ष्मी और नवग्रहों की प्राचीन प्रतिमाएं प्राप्त हुईं। इन प्रतिमाओं को स्थापित करने के लिए साम्ब ने तालाब के किनारे एक भव्य मंदिर बनवाया।
हालांकि, वह मंदिर 1934 के विनाशकारी भूकंप में ध्वस्त हो गया था। इसके बाद स्थानीय लोगों ने तालाब से कुछ दूरी पर एक नया मंदिर बनवाया, जो आज भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है।
बड़गांव सूर्यपीठ की यह कहानी न केवल सूर्यदेव की महिमा को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे एक श्रापित राजा की तपस्या ने इस स्थान को पवित्र तीर्थ में बदल दिया। आज भी यह सूर्यपीठ भक्तों के लिए चमत्कार और शांति का प्रतीक है।
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