“धम्म यात्रा न केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए, बल्कि इतिहास और संस्कृति के प्रति जिज्ञासु व्यक्तियों के लिए भी एक अमूल्य अनुभव है। इससे अतीत की जड़ों से जुड़ने और वर्तमान में शांति का संदेश फैलाने की प्रेरणा मिलती है…
राजगीर (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले के ऐतिहासिक पथ पर बौद्ध धर्म के अनुयायियों की 15 किलोमीटर लंबी ‘धम्म यात्रा’ के रुप में आध्यात्म का अदभुद संगम देखने को मिला। नव नालंदा महाविहार की ओर से आयोजित इस यात्रा ने जेठियन (प्राचीन नाम यष्ठिवन) से शुरू होकर राजगीर के वेणुवन तक का मार्ग तय किया। इस आयोजन में देश-विदेश से लगभग 1500 श्रद्धालुओं और भिक्षुओं ने भाग लिया।
बता दें भगवान बुद्ध द्वारा चलाए गए चारिका पथ पर आधारित इस यात्रा का ऐतिहासिक महत्व है। भगवान बुद्ध जब सम्यक सम्बोधि प्राप्ति के बाद मगधराज बिम्बिसार से मिलने राजगृह (वर्तमान राजगीर) जा रहे थे तो उन्होंने इसी मार्ग का उपयोग किया था। यह वही स्थान है, जहां मगधराज ने भगवान बुद्ध का स्वागत किया और वेणुवन उद्यान भिक्षु संघ को समर्पित किया।
इस वर्ष की 11वीं धम्म यात्रा में श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश, वियतनाम, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया, अमेरिका, जापान, चीन और लाओस जैसे देशों से श्रद्धालु शामिल हुए। नव नालंदा महाविहार के शिक्षकों, छात्रों और भिक्षु-भिक्षुणियों ने भी पूरे उत्साह के साथ भाग लिया।
इस आयोजन का नेतृत्व नव नालंदा महाविहार के कुलपति प्रोफेसर सिद्धार्थ सिंह ने किया। यात्रा को सफल बनाने में बिहार सरकार के पर्यटन विभाग, बोधगया मंदिर प्रबंधन समिति, अंतर्राष्ट्रीय बुद्धिस्ट कॉन्फिडेरेशन और स्थानीय ग्रामवासियों का विशेष योगदान रहा।
प्रोफेसर सिद्धार्थ सिंह ने इस अवसर पर कहा कि यह मार्ग बौद्ध धर्म के इतिहास का प्रतीक है और बुद्धचारिका के अनगिनत स्मरणों का साक्षी है। उन्होंने इसे ‘बुद्धचारिका दिवस’ घोषित करने का प्रस्ताव रखा। ताकि इस पथ की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता का सम्मान किया जा सके।
इस यात्रा में शामिल श्रद्धालुओं ने इसे आध्यात्मिक शांति और प्रेरणा का स्रोत बताया। वियतनाम से आए एक भिक्षु ने कहा कि यह यात्रा बुद्ध के जीवन को फिर से महसूस करने और उनकी शिक्षाओं के करीब आने का अवसर देती है।
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