नालंदा दर्पण डेस्क। “प्राइवेट स्कूल अब विद्यालय नहीं मॉल हो गए है। वहाँ किताबें बिकती है, कपड़े बिकते है, जूते बिकते है, मोजे बिकते है, ट्यूशन के मास्टर बिकते हैं, कुछ स्कूलों में धर्म भी बिकता है, और सबसे अंत में शिक्षा बिकती है। और ये सारे सामान लागत मूल्य से दस गुने मूल्य पर बेचे जाते है।”
यह हकीकत है देश भर के लगभग सभी निजी स्कूलों की, लेकिन अब ग्रामीण इलाकों में खुले निजी स्कूल भी इसी राह पर जा रहें हैं। वैसे चंडी प्रखंड के लगभग निजी स्कूलों की दशा कमोवेश वहीं है जो देश की है।
चंडी प्रखंड में नये सत्र शुरू होते ही निजी स्कूल किताब की दुकानों में परिवर्तित हो चुका है। अगर कहें कि निजी स्कूल शिक्षा की जगह किताबों के डीलर बनते जा रहे हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
नये सत्र की शुरुआत के साथ ही अभिभावकों की परेशानी बढ़ गई है। एक से दो माह की फीस के साथ स्कूलों में विकास शुल्क के नाम पर ली जाने वाली मोटी रकम भरनी है तो दूसरी तरफ बच्चों के लिए ढेर सारी किताबें भी खरीदनी पड़ रही है। जिससे अभिभावकों की कमर टूट रही है। कापी-किताबों का सेट इतना मंहगा हो चला है कि उसे खरीदने में इस अप्रैल महीने में और ज्यादा पसीना निकल रहा है।
चंडी प्रखंड के निजी में क्लास एक व आठवीं तक की किताबों का सेट स्कूलों के स्टैंडर्ड के हिसाब से छह हजार से नौ हजार रुपए तक आ रहें हैं। उपर से स्कूल बैग,डायरी, ड्रेस,टाई-बेल्ट तथा अन्य समान भी खरीदना पड़ रहा है। जिसकी राशि भी अच्छी खासी पड़ रही है। उधर प्रशासन और शिक्षा विभाग इस लूट पर चुप्पी साधे हुए है।
चंडी प्रखंड के अधिकांश निजी स्कूलों के यहां किताबें खरीदने के लिए अभिभावकों की एक लंबी लाइन देखी जा रही है। स्कूलों द्वारा तय निजी प्रकाशकों की किताबें पांच गुना तक मंहगा है। जितनी शायद बीए और एमए की किताबों के दाम नहीं होंगे।
कहने को तो प्रखंड के अधिकांश निजी स्कूल अपने आप को सीबीएसई पाठ्यक्रम से शिक्षा देने का दावा करती है, लेकिन उनके यहां भी एनसीईआरटी की जगह ज्यादातर निजी प्रकाशकों की किताबें चल रही है। लगभग 80 फीसदी निजी प्रकाशकों की मंहगी किताबें पढ़ाई जाती है।जबकि सरकार ने निर्देश जारी किया है कि सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की पुस्तकें पढ़ाई जाएगी।पर शायद ही कोई निजी स्कूल इसका पालन कर रहे हैं।