
राजगीर (नालंदा दर्पण)। बिहार के प्रमुख पर्यटक शहर राजगीर में प्रस्तावित इंटरनेशनल एयरपोर्ट परियोजना पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं। इस महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत राजगीर प्रखंड के मेयार, बढ़ौना और अन्य गांवों की जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया प्रारंभ की गई थी। इसके लिए जिला प्रशासन ने इन क्षेत्रों में जमीन की रजिस्ट्री पर रोक लगा दी थी। ताकि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को गति मिल सके।
राजस्व विभाग ने भी एयरपोर्ट के लिए प्रस्तावित जमीन का नजरिया नक्शा तैयार कर लिया था। हालांकि हाल ही में बिना किसी लिखित आदेश के (केवल मौखिक निर्देश के आधार) पर यह रोक हटा दी गई है। अब इन गांवों में जमीन की रजिस्ट्री पुनः शुरू हो गई है। जिससे परियोजना की प्रगति पर सवाल उठने लगे हैं।
बता दें कि राजगीर अपनी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत के लिए विश्वविख्यात है। यहां इंटरनेशनल एयरपोर्ट का निर्माण क्षेत्र के लिए कायाकल्प साबित हो सकता है। इस परियोजना से न केवल पर्यटन, शिक्षा और खेल के क्षेत्र में नई संभावनाएं खुलेगी, बल्कि स्थानीय स्तर पर आर्थिक, सामाजिक और बुनियादी ढांचे का विकास भी होता।
विशेषज्ञों और स्थानीय लोगों का मानना है कि एयरपोर्ट के निर्माण से हजारों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार के अवसर प्राप्त होते। इसके अलावा राजगीर का अंतर्राष्ट्रीय महत्व और अधिक बढ़ता, जिससे वैश्विक पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होने की संभावना थी।
अब जमीन की रजिस्ट्री पर से रोक हटने से जहां एक ओर उन किसानों में खुशी की लहर है, जिनकी जमीन इस परियोजना के लिए अधिग्रहित की जा रही थी। वे अब अपनी जमीन की स्वतंत्र बिक्री और मुआवजे की प्रक्रिया से संतुष्ट दिख रहे हैं।
वहीं दूसरी ओर स्थानीय नेताओं और एक खास वर्ग में इस निर्णय से गहरी निराशा है। उनका कहना है कि यह परियोजना न केवल राजगीर, बल्कि पूरे नालंदा जिले के लिए विकास का सुनहरा अवसर थी। एयरपोर्ट का निर्माण क्षेत्र की आर्थिक समृद्धि के लिए मील का पत्थर साबित होता। इस तरह के फैसले से विकास की गति रुक सकती है।
निबंधन विभाग के सूत्रों के अनुसार जिला प्रशासन ने पहले मौखिक आदेश के आधार पर ही जमीन की रजिस्ट्री पर रोक लगाई थी। अब उसी तरह बिना किसी आधिकारिक अधिसूचना के यह रोक हटा दी गई है। इस तरह के अपारदर्शी निर्णयों ने परियोजना की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी महत्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए स्पष्ट और लिखित दिशा-निर्देश आवश्यक हैं। ताकि अनिश्चितता और भ्रम की स्थिति से बचा जा सके।
फिलहाल, यह परियोजना अनिश्चितता के भंवर में फंसती नजर आ रही है। स्थानीय लोग और हितधारक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि क्या यह परियोजना निर्धारित समय पर पूरी हो पाएगी। प्रशासन से अपेक्षा है कि वह इस मामले में स्पष्टता लाए और परियोजना को गति देने के लिए ठोस कदम उठाए।









