“नालंदा जिले में फर्जी शिक्षकों के मामलों को लेकर सख्त जांच और त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता है। शिक्षा विभाग को इस मामले में पारदर्शिता दिखानी होगी और दोषियों को कड़ी सजा देनी होगी…
बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। बिहार के मुख्यमंत्री (CM) नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में शिक्षा के क्षेत्र में फर्जीवाड़े का गंभीर मामला उजागर हो रहा है। फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर बहाल किए गए शिक्षकों के वेतन पर रोक लगाने में शिक्षा विभाग की विफलता सवालों के घेरे में है। तमाम सख्त निर्देशों और जांच के बावजूद ऐसे शिक्षकों को लगातार भुगतान किया जा रहा है, जो शिक्षा माफियाओं की साजिश के तहत सरकारी नौकरी में आए हैं।
पंचायत स्तर पर बहाली से गड़बड़ियों की शुरुआतः उदाहरण के तौर पर बेन प्रखंड के प्राथमिक और मध्य विद्यालयों में 2012 से 2016 के बीच हुई पंचायत और प्रखंड शिक्षकों की बहाली में सबसे अधिक गड़बड़ियां सामने आई हैं। पंचायत स्तर पर शिक्षकों की नियुक्ति में फर्जी प्रमाण पत्र और टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) के नकली अंक पत्र का उपयोग किया गया। एकसारा, नोहसा, मैंजरा, खैरा, बेन, बारा, अरावां ऑट, अकौना जैसे पंचायतों में ऐसे मामलों की पुष्टि आरटीआई से प्राप्त जानकारी के आधार पर हुई।
2018 में गड़बड़ी के प्रमाण मिलने के बाद कई शिक्षकों पर प्राथमिकी दर्ज की गई, लेकिन अभी भी जांच पूरी तरह से नहीं हो पाई है। अगर सही तरीके से जांच की जाए तो दो दर्जन से अधिक शिक्षकों की नौकरी पर खतरा मंडरा सकता है।
फर्जी शिक्षकों को बचाने में प्रशासन का खेलः हालांकि फर्जी शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश था। लेकिन प्रखंड स्तरीय अधिकारियों और शिक्षा विभाग की धीमी प्रक्रिया ने इन्हें बचाने का काम किया। स्थानीय लोगों का मानना है कि इन शिक्षकों को बचाने के पीछे लेन-देन की राजनीति हो सकती है।
फर्जी टीईटी प्रमाणपत्र और नाम में हेराफेरी कर बड़े पैमाने पर नियुक्तियां की गईं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि 2022-23 में कई शिक्षकों को बैक डेट में बहाल दिखाया गया। यह सवाल खड़ा करता है कि यदि 2022-23 में उनकी बहाली हुई, तो वे पहले कहां काम कर रहे थे और अचानक इस अवधि में वे कैसे नियुक्त हो गए।
क्या कहता है कानून और विभाग? शिक्षा विभाग के नियमों के अनुसार फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी पाने वाले शिक्षकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि विभाग के अधिकारी जांच प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में उदासीन हैं।
इसके अलावा फर्जी शिक्षकों को बचाने की कोशिश में कई जिम्मेदार अधिकारी खुद सवालों के घेरे में आ गए हैं। इस मामले में भ्रष्टाचार की जड़ें काफी गहरी हैं और यही कारण है कि गड़बड़ियां उजागर होने के बावजूद दोषियों पर कार्रवाई नहीं हो पा रही है।
समाज और शिक्षा पर पड़ रहा बुरा असरः फर्जी शिक्षकों की बहाली न केवल बच्चों की शिक्षा के स्तर को गिरा रही है, बल्कि यह योग्य उम्मीदवारों के हक को भी छीन रही है। यह समस्या शिक्षा प्रणाली पर गहरा आघात है। जहां योग्य और मेहनती उम्मीदवारों को पीछे छोड़कर फर्जी तरीके से शिक्षक बनाए जा रहे हैं।
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