नगरनौसा (नालंदा दर्पण)। खेती-किसानी के कार्यों में मशीन के उपयोग से किसानों का जीवन तो आसान हुआ है, लेकिन अनेक नई समस्याएं भी सामने आए हैं। मशीन से कटाई कराने के बाद खेत में डंठल रह जाता है। अमूमन किसान इसे जला देते हैं। इससे खेत के साथ ही पर्यावरण को काफी नुकसान होता है।
नगरनौसा प्रखंड क्षेत्र में भी किसान खेतों में तैयार गेहूं फसल की कटाई के बाद खेत के सफाई के बहाने डंठल में आग लगा रहे हैं। जिससे मनुष्य और मवेशी, मिट्टी और पर्यावरण सभी पर खराब असर पड़ रहा है। गेहूं के डंठल और धान की पराली जलाने वाले किसानों पर सरकार सख्ती भी कर रही है। साथ ही इस समस्या के सामाधान को लेकर काम भी चल रहा है। सरकार किसानों से फसल के अवशेष को अन्य कार्यों में उपयोग में लाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
फसल अवशेष जलाने का असरः फसल अवशेष को जलाने से मनुष्य और मवेशी, मिट्टी और पर्यावरण सभी पर खराब असर पड़ता है। कई अध्ययनों में यह बात सामने आई है कि कई तरह के जीवों के जीवन को नुकसान पहुंच रहा है।इसमें कई ऐसे जीव हैं, जो खेती के लिए लाभकारी होते हैं।
फसल अवशेष जलाने से ग्रीन हाउस गैस निकलती है। इनसे धरती का तापमान बढ़ता है। इसके प्रभाव से आने वाले समय में खेती ही नहीं, मनुष्य के जीवन पर भी विपरीत प्रभाव पड़ने की आशंका है। इसके साथ ही आसपास खड़े मनुष्य को सांस लेने में समस्या, आंखों में जलन, नाक एवं गले में समस्या आती है।
किसानों को माननी चाहिए सलाहः खेतों की डंठल में आग लगाने का सिलसिला साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। सैकड़ों हादसे होने के बाद भी किसान सबक लेने को तैयार नहीं हैं,जबकि इससे जमीन की गुणवत्ता में गिरावट के साथ जीव जंतुओं को भी नुकसान हो रहा है। सरकार ने खेत में आग लगाने पर प्रतिबंध तक लगा दिया है, लेकिन डंठल में आग लगाने में कमी नहीं आई।
इसलिए लगाते हैं आगः गेहूं के बाद अन्य फसल के बोआई करने की होड़ में किसान पर्यावरण और जीव जंतुओं से साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। किसान खेतों का कचरा नष्ट करने के लिए आग लगाना सरल उपाय समझता है। जिससे किसानों की खेतों में खड़ी फसल जल रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में रोज कहीं न कहीं आग लग रही है।
खेतों की घट रही उर्वरक झमताः डंठल की आग से जहां खेतों में फैलती आग आसपास बने घरों तक पहुंच जाती है। खेत भी खेती की दृष्टि से बेअसर होते जा रहे हैं। कृषि वैज्ञानिकों की सलाह को किसान नहीं मान रहे हैं। जिसके कारण अधिकांश खेत गेहूं की फसल के बाद काले ही नजर आते हैं।
खर्च और समय की बचत कर रहे किसानः फसल काटने के लिए दो प्रकार का सहारा लिया जाता है। एक फसल काटने के लिए मजदूर आते हैं और दूसरा हार्वेस्टर का सहारा लिया जाता है। मजदूर फसल काटते हैं, उसमें कचरा कम हो पाता है। लेकिन हार्वेस्टर की कटाई से खेतों में फसल के डंठल खड़े रहते हैं। जिसे नरवाई कहा जाता है।
इस नरवाई को हटाने के लिए किसानों को अधिक धन राशि खर्च करना पड़ती है। जबकि आग लगाने में उन्हें सिर्फ एक तीली का सहारा लेना पड़ता हैं। किसान के लिए आग लगाना सबसे सरल उपाय लगता है। प्रतिबंध के बाद भी इसमें कमी नहीं आई है ।
फसल अवशेष का कैसे करें प्रबंधनः फसल अवशेष जलाने से मिट्टी की सेहत पर बुरा असर पड़ता है।जहां फसल अवशेष जलाए जाते है, वहां की मिट्टी काली पड़ जाती है और उसमें मौजूद पोषक तत्वों पर अधिक तापमान का असर देखने को मिलता है। इससे अगली फसल के लिए जरूरी पोषक तत्वों की मात्रा मिट्टी में काफी कम हो जाती है, जिससे कुल उत्पादकता में कमी आ जाती है।
देश का वैज्ञानिक समाज भी इन समस्याओं के समाधान के लिए जुटा है। फसल अवशेष जलाने की घटनाओं के बारे में पता लगाने के लिए सेटेलाइट की मदद ली जा रही है।किसानों को फसल अवशेष से खाद बनाने, आदि दूसरी चीजें बनाने लिए इसके उपयोग की सलाह भी दी जा रही है।
हार्वेस्टर के उपयोग से ज्यादा लगाते हैं आगः फसल काटने को लेकर हार्वेस्टर का उपयोग बढ़ा है। इससे खेतों में लम्बी डंठल की नरवाई रह जाने से किसान खेतों में आग लगा रहे हैं। जहां हाथों से फसल कटाई हो रही है, वहां नरवाई की समस्या नहीं है।
क्या कहते है अधिकारीः नगरनौसा बीएओ महेश चौधरी ने बताया कि हार्वेस्टिंग के बाद खेतों में लगी गेहूं की डंठल को जलाने वाले ऐसे किसानों को चिन्हित करने की कवायद शुरू कर दी गई है।बार-बार अनुरोध करने के बावजूद कुछ हठधर्मी किसान फसल अवशेष जलाने से बाज नहीं आ रहे है।
जागरूकता के बाद भी हार्वेस्टिंग के तुरंत बाद अधिकतर किसानों द्वारा बेवजह खेतों में पड़े डंठलों को जलाने की शिकायत लगातार प्राप्त हो रही है। जांच रिपोर्ट प्राप्त होते ही ऐसे किसानों के विरुद्ध विधिसम्मत कार्रवाई करते हुए उन्हें सरकार की ओर से मिलने वाली सारी सुविधाओं से वंचित कर दिया जाएगा।
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