
राजगीर (नालंदा दर्पण)। नगर विकास एवं आवास विभाग में स्थानांतरण और पदस्थापन की प्रक्रिया अब मजाक बन चुकी है। इसका जीता-जागता उदाहरण राजगीर नगर परिषद में देखने को मिल रहा है। यहां कार्यपालक पदाधिकारी के पद पर बार-बार बदलाव ने असमंजस और गुटबाजी की राजनीति को उजागर कर दिया है। इस अस्थिरता का सीधा असर नगर के प्रशासनिक और विकास कार्यों पर पड़ रहा है।
पहले कार्यपालक पदाधिकारी सुनील कुमार का अल्प अवधि में स्थानांतरण कर दिया गया। उनकी जगह 17 मार्च 2025 को अजीत कुमार को नियुक्त किया गया। लेकिन मात्र साढ़े तीन महीने बाद एक प्रभावशाली गुट की पैरवी और दबाव के चलते अजीत कुमार का तबादला कर दिया गया।
वहीं बीते 30 जून को जारी अधिसूचना में सुनील कुमार को पुनः राजगीर नगर परिषद का कार्यपालक पदाधिकारी नियुक्त किया गया। साथ ही उन्हें अस्थावां नगर पंचायत की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी सौंपी गई।
इस बदलाव के बाद राजगीर में दो गुटों के बीच शक्ति प्रदर्शन शुरू हो गया। एक गुट ने इसे अपनी जीत मानकर जश्न मनाया। जबकि दूसरा गुट निराश दिखा। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई।
प्रेशर पॉलिटिक्स ने नगर विकास विभाग को फिर से फैसला बदलने पर मजबूर कर दिया। विभाग ने अधिसूचना में शुद्धिपत्र जारी कर अजीत कुमार का स्थानांतरण रद्द कर दिया और उन्हें पुनः राजगीर में कार्यपालक पदाधिकारी के पद पर बहाल कर दिया।
इस घटनाक्रम ने स्थानीय राजनीति में उबाल ला दिया। कल तक जश्न मना रहा गुट आज मायूस है और निराश गुट अब खुशी मना रहा है। यह सिलसिला प्रशासनिक कार्यप्रणाली की गंभीरता पर सवाल उठाता है।
वहीं ताजा उत्पन्न हालाता यह भी दर्शाता है कि गुटबाजी और राजनीतिक दबाव किस तरह प्रशासनिक निर्णयों को प्रभावित कर रहे हैं। नतीजतन राजगीर नगर परिषद की स्थिरता और कार्यक्षमता बुरी तरह प्रभावित हो रही है।