
नालंदा दर्पण डेस्क / मुकेश भारतीय। नालंदा जिले का इस्लामपुर विधानसभा क्षेत्र बिहार की राजनीति में हमेशा से एक गर्मागर्म रणभूमि रहा है। अब 2025 के विधानसभा चुनावों की दहलीज पर खड़ा है। यहां की मिट्टी में नालंदा विश्वविद्यालय की प्राचीन धरोहर के साथ-साथ आधुनिक राजनीतिक उथल-पुथल का मिश्रण है।
बीते बिहार विधानसभा-2020 चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के राकेश कुमार रौशन ने जनता दल (यूनाइटेड) (JD(U)) के चंद्रसेन प्रसाद को करीबी मुकाबले में हराकर क्षेत्र को पहली बार महागठबंधन के खेमे में ला खड़ा किया था। लेकिन क्या 2025 में RJD यह गढ़ बरकरार रख पाएगी या नीतीश कुमार की JD(U) पुरानी विरासत को पुनर्जीवित कर लेगी?
ऐतिहासिक आंकड़ों का गहन विश्लेषण बताता है कि यह सीट हमेशा से पार्टियों के बीच त्रिकोणीय संघर्ष का केंद्र रही है। कभी कांग्रेस का वर्चस्व, कभी कम्युनिस्टों की लाल झंडा तो कभी नीतीश-लालू जमात की सीधी जंग। आइए पिछले 50 वर्षों के चुनावी डेटा को खंगालते हुए देखें कि इस्लामपुर की राजनीति कैसे विकसित हुई है।
ऐतिहासिक चुनाव परिणाम: विजेता, उपविजेता और प्रमुख दावेदारों की कहानी
इस्लामपुर विधानसभा क्षेत्र की यात्रा 1952 से शुरू होती है, जब यह कांग्रेस का गढ़ था। लेकिन 1970 के दशक से यहां कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI) ने दबदबा बनाया, जो 1990 तक चला। 2000 के बाद JDU का उदय हुआ, जो 2015 तक लगातार जीतता रहा। लेकिन 2020 में RJD ने सेंध लगाई।
| वर्ष | विजेता (नाम, दल, मत) | उपविजेता (नाम, दल, मत, मार्जिन) | अन्य प्रमुख उम्मीदवार (मत, दल, वोट शेयर %) | कुल वैध मत | मतदान प्रतिशत |
| 2020 | राकेश कुमार रौशन (RJD, 68,088) | चंद्रसेन प्रसाद (JD(U), 64,390, 3,698) | नरेश प्रसाद सिंह (LJP, 8,597, 5.26%), महेंद्र सिंह यादव (निर्दलीय, 3,750, 2.29%), भारत प्रसाद सिंह (RLSP, 3,719, 2.27%) | 1,63,478 | 55.77% |
| 2015 | चंद्रसेन प्रसाद (JD(U), 66,587) | बिरेंद्र गोपे (BJP, 43,985, 22,602) | धर्मेंद्र कुमार (SP, 4,898, 3.41%), चंदेश्वर प्रसाद वर्मा (निर्दलीय, 4,781, 3.33%), उमेश कुमार (CPI(ML)L, 3,014, 2.1%) | 1,43,500 | 53.04% |
| 2010 | राजीव रंजन (JD(U), 56,332) | वीरेंद्र गोप (RJD, 32,524, 23,808) | राकेश कुमार रौशन (CPI, 8,369, 7.32%), अलीवेंद्र कुमार (BSP, 6,021, 5.26%), विवेक सिन्हा (INC, 4,581, 4%) | 1,14,408 | 48.15% |
| 2005 (अक्टूबर) | रामस्वरूप (JD(U), 46,510) | राकेश कुमार (CPI, 27,412, 19,098) | कौशलेन्द्र कुमार (NCP, 5,517), सुनील कुमार (CPI(ML)L, 5,197), ओम प्रकाश (निर्दलीय, 3,192) | 90,704 | उपलब्ध नहीं |
| 2005 (फरवरी) | रामस्वरूप (JD(U), 40,749) | राकेश कुमार (CPI, 20,689, 20,060) | नरेश कुमार (निर्दलीय, 8,779), बिरेंद्र प्रसाद (CPI(ML)L, 7,736), दिलीप चौधरी (LJP, 6,600) | 96,339 | उपलब्ध नहीं |
| 2000 | रामस्वरूप प्रसाद (SAP, 76,015) | नरेश यादव (RJD, 27,705, 48,310) | कृष्ण बल्लभ प्रसाद (CPI, 25,244, 15.8%), खुरशीद आलम (CPI(ML)L, 25,188, 15.77%) | 1,59,751 | 78.45% |
| 1995 | कृष्ण बल्लभ प्रसाद (CPI, 46,796) | राजीव रंजन (SAP, 36,552, 10,244) | सुरेंद्र राम (CPI(ML)L, 14,242, 11.42%), रण विजय सिंह (BPP, 7,937, 6.36%), कपिलदेव सिंह (BJP, 6,145, 4.93%) | 1,24,738 | 66.63% |
| 1990 | कृष्ण बल्लभ प्रसाद (CPI, 68,040) | पंकज कुमार सिन्हा (INC, 61,523, 6,517) | मित्रानंद सिंह (IPF, 14,969, 10.09%), बच्चू सिंह (BJP, 1,639, 1.1%) | 1,48,347 | 79.45% |
| 1985 | राम स्वरूप प्रसाद (INC, 54,858) | कृष्ण बल्लभ प्रसाद सिंह (CPI, 54,429, 429) | राजेंद्र प्रसाद (निर्दलीय, 3,308, 2.88%), सीता राम प्रसाद (BJP, 1,314, 1.14%) | 1,14,766 | 75.59% |
| 1980 | पंकज कुमार सिन्हा (INC(I), 52,923) | कृष्ण वल्लभ प्रसाद सिंह (CPI, 51,310, 1,613) | नंद लाल सिंह (JNP(JP), 797, 0.75%), दुर्गा प्रसाद (BJP, 732, 0.69%) | 1,06,562 | 78.24% |
| 1977 | कृष्ण वल्लभ प्रसाद सिंह (CPI, 36,406) | विजय लक्ष्मी चौर (JNP, 22,371, 14,035) | राम स्वरूप प्रसाद (निर्दलीय, 19,390, 20.01%), राम शरण प्रसाद सिंह (INC, 16,631, 17.17%) | 96,878 | 76.18% |
| 1972 | रामशरण प्रसाद सिंह (निर्दलीय, 33,644) | रामचंद्र सिंह (NCO, 32,108, 1,536) | मुंड्रिका सिंह (निर्दलीय, 15,167, 17.74%), गंगा रविदास (निर्दलीय, 1,814, 2.12%) | 85,477 | 69.72% |
हालांकि 1952-1969 के चुनावों में विस्तृत आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन विजेता क्रमशः चौधरी मोहम्मद अफाक (कांग्रेस, 1952), श्याम सुंदर प्रसाद (स्वतंत्र पार्टी, 1962), कांग्रेस (1967) और रामसरण प्रसाद सिंह (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, 1969) थे। 2007 में उपचुनाव जीतने वाली प्रतिमा सिन्हा का डेटा सीमित है।
विश्लेषण: अब तक के बदलते रुझान और प्रमुख प्रभावशाली चेहरे
इस्लामपुर की राजनीति को समझने के लिए आंकड़ों पर नजर डालें तो साफ दिखता है कि यह सीट कभी स्थिर नहीं रही। 1977-1990 के बीच CPI का दबदबा (कृष्ण बल्लभ प्रसाद सिंह ने दो बार जीत हासिल की। पहली बार 6,517 मार्जिन वोट से तो दूसरी बार 14,035 मार्जिन वोट से। यह कम्युनिस्ट विचारधारा की मजबूत पकड़ को दर्शाता है, खासकर ग्रामीण और मजदूर वोट बैंक के कारण। लेकिन 1980-85 में कांग्रेस (INC) ने वापसी की। जब राम स्वरूप प्रसाद ने 1985 में मात्र 429 वोटों से जीत दर्ज की। यहां यह अब तक का सबसे करीबी मुकाबला है!
वर्ष 2000 के बाद समता पार्टी (SAP) और JDU का उदय हुआ। रामस्वरूप प्रसाद बाद में JDU में शामिल हो गए और उसी वर्ष हुए चुनाव में 48,310 वोटों की भारी मार्जिन से RJD को धूल चटाई, जो क्षेत्र में नीतीश कुमार के विकास मॉडल की लोकप्रियता का प्रमाण था।
वहीं 2005 के दो चुनावों (फरवरी और अक्टूबर) में JDU ने लगातार जीत हासिल की, लेकिन मार्जिन घटकर 19,000-20,000 पर सिमट गया, जो CPI के राकेश कुमार जैसे वामपंथी दिग्गज की कड़ी चुनौती को दिखाता है।
वर्ष 2010-2015 में JDU-BJP गठबंधन ने RJD को पीछे धकेला और चंद्रसेन प्रसाद ने 46.4% वोट शेयर के साथ 22,602 की मार्जिन से जीत ली। लेकिन 2020 में पलड़ा उलट गया। RJD के राकेश कुमार रौशन ने 41.65% वोटों से JDU के चंद्रसेन को सिर्फ 2.26% अंतर से हराया। यहां LJP जैसे छोटे दलों ने 5.26% वोट खींच डाले।
प्रभावशाली उम्मीदवारों की बात करें तो रामस्वरूप प्रसाद (JDU/SAP) सबसे सफल रहे। उन्होंने 2000 और 2005 (दोनों चुनाव) में जीत हासिल की। CPI के कृष्ण बल्लभ प्रसाद सिंह (1977, 1990, 1995) ने वामपंथी वोटों को एकजुट किया। वहीं राकेश कुमार रौशन (CPI/RJD) 2005 से 2020 तक लगातार चुनौती देते रहे।
निर्दलीय उम्मीदवारों का वोट शेयर 2020 में 2-3% के आलावे हमेशा 5-10% रहे। जोकि इस क्षेत्र की जातिगत जटिलताओं (यादव, पासवान, मुस्लिम वोट बैंक) को उजागर करता है। मतदान प्रतिशत में भी उतार-चढ़ाव दिखता है। 2000 में 78.45% से घटकर 2010 में 48.15% हो गया,। लेकिन 2020 में 55.77% पर स्थिर हुआ, जो कोविड के बावजूद जागरूकता का संकेत है।
बिहार विधानसभा चुनाव-2025: कौन मारेगा बाजी?
2025 के चुनाव में RJD के राकेश कुमार रौशन (वर्तमान विधायक) और JDU का नया चेहरा पूर्व विधायक स्व. राजीव रंजन के पुत्र रुहेल रंजन के बीच सीधा मुकाबला दिख रहा है, लेकिन जनसुराज के प्रत्याशी जिप अध्यक्ष तनुजा कुमारी भी उभरती ताकत के रूप में नजर आ रही हैं। ऐतिहासिक डेटा बताता है कि जब मार्जिन 5,000 से कम रहता है (जैसे 1985, 2020) तो गठबंधन निर्णायक साबित होते हैं। NDA यानि JDU-BJP अगर एकजुट रही तो 2015 एक चुनौती बन सकती है, वरना RJD का 2020 वाला जादू दोहरा सकती है। यहां सिंचाई, शिक्षा, स्वास्थ्य, कुशासन, बेरोजगारी, घुसखोरी. पलायन, योजनाओं में भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे भी निर्णय बदल सकते हैं।
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