नालंदा दर्पण डेस्क। बिहार के सीएम नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में शराबबंदी को लेकर पुलिस हाँफ रही है। सीएम की डांट के बाद पुलिस रेस तो हुई, लेकिन उसकी सारी कार्रवाई गाँव-गरीबों यानि चुलाउ शराब की छोटी मछलियों तक ही सीमित रही। चहुँओर फैली अंग्रेजी शराब की मकड़जाल पर यहाँ कोई असर नहीं हुआ। धंधा जारी है।
हालांकि पिछले पखवारा भर में काफी मात्रा में चुलाउ शराब भी पकड़ी गयी। इस मामले में दो दर्जन घरों को सील किया गया। अनेक महिलाओं समेत दर्जन भर दबोच कर जेल में डाल दिए गए।
एक लीटर, दो लीटर या पांच लीटर चुलौआ शराब पकड़कर पुलिस ने अपनी पीठ थपथपा ली। यहाँ न तो अंग्रेजी शराब की बड़ी खेप पकड़ी गयी और न ही बड़े धंधेबाज दबोचे गये।
और मंहगी हुई शराबः खबरों के मुताबिक पुलिस की सख्ती से पहले एक बोतल अंग्रेजी शराब 900 से 1000 रुपये में मिल जाती थी। सभी तरह के ब्रांड और सभी साइज की बोतलें मिल रही थीं। होम डिलीवरी भी चालू थी। इसमें कुछ कमी आयी है। पुलिस के डर से छोटे-मोटे धंधेबाजों ने कुछ दिनों के लिए यह धंधा छोड़ दिया।
सप्लाई कम रहने के कारण कीमत बढ़ गयी है। अब बोतल 1200 से 1500 रुपये में मिल रही है। वह भी काफी खोजने पर। फायदा यह हुआ कि नकली शराब मिलनी बंद हो गयी है। हालांकि, यह कमी सिर्फ शहरी इलाकों में देखी जा रही है। गांवों में चुलौआ शराब का कारोबार बदस्तूर जारी है।
धंधेबाजों का गढ़ है जिला का दक्षिणी इलाका: शराब के धंधेबाजों के लिए जिले का दक्षिणी इलाका या यह कहिये कि राजगीर अनुमंडल मुफीद है। इसमें इस्लामपुर भी जोड़ सकते हैं। राजगीर, कतरीसराय व इस्लामपुर की सीमाएं दूसरे जिलों से लगती हैं।
जिलों की सीमा पर पुलिस की आमद कम होने से शराब का धंधा चालू है। झारखंड से दूरी कम होने की वजह से भी शराब की खेप अधिक आसानी से पहुंच रही है। राजगीर के जंगली इलाकों में शराब चुलाई जा रही है।
धंधेबाजों ने बदला तरीका: पुलिस की सख्ती के बाद गांवों में धंधेबाजों ने धंधा करने का तरीका बदल दिया है। धंधेबाज अब घरों से शराब नहीं बेचते हैं। धंधेबाज थैले में या जेब में शराब लेकर घूमते रहते हैं।
पुलिस को देखते की कहीं छिप जाते हैं। कई गांवों में शराब की थैलियां पेड़ पर टंगी रहती है। पुलिस पकड़ भी लेती है तो धंधेबाज का पता नहीं चलता है।
राजगीरः यहाँ कमोबेश हर गांव में धड़ल्ले से शराब बनायी अथवा बेची जा रही है। शहर में होम डिलीवरी के धंधे में कोई कमी नहीं है।
लोगों की मानें तो पुलिस छोटे विक्रेताओं व शराबियों को पकड़कर कोरम पूरा कर रही है। बड़े धंधेबाजों को तो पुलिस छूती भी नहीं है।
पिलखी, हंसराजपुर, लेनिन नगर, गंजपर, रामहरि पिंड, साइडपर आदि गांवों में शराब की खूब बिक्री हो रही है। सबसे अधिक बदनाम है मार्क्सवादी नगर। यह शहर के नजदीक है। बावजूद पुलिस छापेमारी से पहले हजार बार सोचती है।
बेन: बेन प्रखंड के दूरदराज के गांवों में शराब खुलकर बेची जा रही है। आंट, महमदपुर, जंघारो, कृपागंज, मठपर आदि गांव के नाम अक्सर शराब के साथ जुटते रहे हैं।
इस्लामपुर: इस्लामपुर के तकियापर, खटोलना बिगहा समेत दर्जनों गांवों में शराब मिल रही है। प्रखंड के उन गांवों में पुलिस जाती भी नहीं, जिनकी सीमा दूसरे जिलों से लगती है।
शहर के बाहर महादलित टोले में भी जमकर शराब चुलाई जा रही है। शहर में अंग्रेजी शराब भी जमकर बेची जा रही है।
गिरियक: प्रखंड का पोखरपुर, पुरी, दुर्गापुर, बकरा, घोसरावां, कांयपुर, इसुआ, गिरियक, हसनपुर, रैतर समेत कई गांवों में शराब चुलाई जा रही है। सारे में भी यह धंधा चलता था। अभी कुछ दिनों से यहां बंद है।
प्रखंड में शराब के साथ बालू का अवैध धंधा भी फलफूल रहा है। इसलिए पुलिस के लिए दोहरी चुनौती है।
सिलाव: सिलाव प्रखंड में शराब बरामदगी का मामला अक्सर सामने आता रहता है। प्रखंड के माहुरी, पन्हेस्सा, सारिलचक, मुजफ्फरपुर, नेपुरा, पांकी आदि गांवों में शराबियों का जमघट लगता है।
कतरीसराय: कतरीसराय जैसे छोटे प्रखंड में भी धंधेबाजों का हौसला काफी बड़ा है। प्रखंड के कतरडीह, बहादुरगंज, सकुचीडीह, बरीठ, जवाहरचक, मिरचाईगंज, बिलारी आदि गांवों में धंधेबाजों की बल्ले-बल्ले है।
नवादा व शेखपुरा से लगती सीमाओं से शराब आसानी से प्रखंड में पहुंच जाती है। कई बार झारखंड से शराब की खेप लाने के लिए कतरीसराय का रास्ता इस्तेमाल करते हैं। (इनपुटः हिन्दुस्तान लाइव)
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