राजगीर (नालंदा दर्पण)। अंतर्राष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय का परिसर विश्व का सबसे बड़ा (World record) नेट जीरो परिसर है। यह 8.3 किलोमीटर लंबी दीवार से घिरा है। कुल 455 एकड़ के पर्यावरण-अनुकूल हरित, कार्बन तटस्थ, टिकाऊ परिसर का निर्माण अंतरराष्ट्रीय मानकों के को अलग से संरक्षित करते हुए हजारों पौधे लगाये गये अनुरूप कराया गया है। बागवानी के लिए ऊपरी मिट्टी हैं।
परिसर में 100 एकड़ का जल निकाय बनाने के लिए दो दर्जन से अधिक बड़े-छोटे तालाबों की खुदाई की गई है। आहर पाइन नेटवर्क की स्वदेशी जल प्रबंधन प्रणाली के माध्यम से वर्षाजल का संचयन किया जाता है। उसी जल का उपयोग यहां के परिसर में सालों भर होता है। ताकि, भू-गर्भ जल का दोहन करने की जरूरत न पड़े।
यह परिसर भारत में अपनी तरह का पहला परिसर है, जिसमें नेट जीरो ऊर्जा, पानी, उत्सर्जन और अपशिष्ट शामिल हैं। सौर ऊर्जा न केवल परिसर की जरूरतों को पूरा करता है, बल्कि उससे भी अधिक बिजली बनाती है।
झील सा दिखता है परिसरः यूनिवर्सिटी ऐतिहासिक बस्तियों की तरह एक झील परिसर जैसी दिखती है।’ कमल सागर’ चार चतुर्भुजों वाली मानव निर्मित झील का निर्माण स्थानीय स्थलों व बाढ़ पैटर्न के के गहन अध्ययन के बाद किया गया है।
कमल सागर नालंदा विश्वविद्यालय के नेट जीरो परिसर में गौरवपूर्ण स्थान रखता है। दो हजार दर्शकों की क्षमता वाला भव्य रंगभूमि कमल सागर के बीच में स्थित है। मंच के चारों विशालकाय जलाशय दर्शकों को एक असाधारण सुरम्य दृश्य प्रदान करता है।
नेट जीरो कैम्पसः वर्ष 2019 में इंग्लैंड की सरकार नेट जीरो उत्सर्जन का कानून पारित करने वाली पहली प्रमुख अर्थव्यवस्था बनी थी। इसके साथ ही एक लक्ष्य तय किया गया कि यूके को वर्ष 2050 तक सभी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को शुद्ध शून्य (नेट जीरो) पर लाया जाएगा।
इसी तरह भारत ने भी वर्ष 2070 तक देश के सभी बड़े प्रतिष्ठानों को नेट जीरो परिसर के रूप में बदलने का लक्ष्य रखा है। नेट जीरो का मतलब यह कि जो भी कार्बन उत्सर्जन होता है, उसे उतनी ही मात्रा में वायुमंडल से बाहर निकालकर संतुलित किया जाता है।
इसके लिए यहां 100 के एकड़ में पौधे लगाये गये हैं। ये पौधे उत्सर्जित कार्बन का शोषण कर लेते हैं। यहां के पौधों के कारण आस-पास के 10 गांवों से अधिक का क्षेत्र भी शून्य कार्बन उत्सर्जन वाला बना हुआ है।
भाप ऊर्जा से चलती है एसीः नालंदा यूनिवर्सिटी तमाम वर्गकक्ष अथवा प्रशासनिक भवन वातानुकूलित हैं। लेकिन, इन भवनों में एसी एयरकंडिशन) चलाने के लिए बिजली के बदले भाप ऊर्जा का उपयोग किया जा रहा है। वहीं परिसर से निकलने वाला अवशिष्ट से भी बिजली बनायी जा रही है।
इस तरह, परिसर के अंदर परिसर से बार उत्पादित बिजली का उपयोग शून्य करने के लिए कई तरह के नवाचार किये जा रहे हैं।
सोलर ऊर्जा से बनती है 6.5 मेगावाट बिजलीः शून्य कार्बन का अर्थ है कि किसी उत्पाद या सेवा से कोई कार्बन उत्सर्जन नहीं हो रहा है। पवन ऊर्जा व सोलर ऊर्जा स्रोतों का जब बिजली उत्पादन के लिए उपयोग करते हैं तो कार्बन उत्सर्जन नहीं होता है। यही कारण है कि नालंदा विश्वविद्यालय परिसर में 6.5 मेगा वाट बिजली निर्माण के लिए आवश्यक सोलर प्लेट लगाये गये हैं।
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