
राजगीर (नालंदा दर्पण)। पद्मश्री से सम्मानित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक केके मुहम्मद एक दिवसीय दौरे पर राजगीर पहुंचे। इस अवसर पर अधीक्षण पुरातत्वविद सुजीत नयन ने उनका स्वागत किया। केके मुहम्मद ने पुरातत्व विभाग के अधिकारियों के साथ अजातशत्रु किला मैदान में चल रहे उत्खनन कार्य का निरीक्षण किया। मौके पर सुजीत नयन ने उन्हें उत्खनन से संबंधित विस्तृत जानकारी दी। केके मुहम्मद ने कई महत्वपूर्ण विषयों पर सवाल पूछकर उत्खनन की प्रगति और निष्कर्षों का जायजा लिया।
इस अवसर पर केके मुहम्मद ने कहा कि प्राचीन धरोहरों और उनसे जुड़े अवशेषों का संरक्षण पुरातत्व विभाग, राज्य सरकार और केंद्र सरकार की साझा जिम्मेदारी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि इन धरोहरों को पूर्ण संरक्षण प्रदान करना आवश्यक है ताकि आने वाली पीढ़ियां इनके ऐतिहासिक महत्व से परिचित हो सकें। उन्होंने अजातशत्रु किला मैदान में चल रही खुदाई की सराहना करते हुए कहा कि यह एक महत्वपूर्ण पहल है। इस उत्खनन से न केवल प्राचीन इतिहास के कई अनछुए पहलू सामने आएंगे, बल्कि जमीन के नीचे दबी नई जानकारियां भी लोगों तक पहुंचेंगी।
केके मुहम्मद ने रत्नगिरि पर्वत पर स्थित अशोक स्तूप और सूर्य कुंड के पास बौद्ध कालीन राजा देवदत्त के स्तूप के खत्म हो रहे अस्तित्व पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि इन प्राचीन धरोहरों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। यदि इन्हें संरक्षित नहीं किया गया तो आने वाले वर्षों में ये केवल कागजों तक सीमित रह जाएंगी। उन्होंने पुरातत्व विभाग और सरकार से इन धरोहरों को बचाने और संरक्षित करने के लिए ठोस कदम उठाने की अपील की।
केके मुहम्मद ने नालंदा की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत के शिक्षा और संस्कृति का प्रतीक है। यह विश्वविद्यालय न केवल भारत, बल्कि विश्व भर के विद्वानों के लिए एक प्रमुख शैक्षिक केंद्र था। उन्होंने सुझाव दिया कि नालंदा विश्वविद्यालय के आसपास के क्षेत्रों में भी उत्खनन कार्य किया जाना चाहिए। ताकि इससे जुड़े और ऐतिहासिक तथ्य सामने आ सकें।
नालंदा विश्वविद्यालय, जिसे नालंदा महाविहार भी कहा जाता है, उच्च शिक्षा का एक विश्व प्रसिद्ध केंद्र था। केके मुहम्मद ने प्रसिद्ध चीनी बौद्ध भिक्षु और यात्री ह्वेनसांग के नालंदा से गहरे संबंध का उल्लेख किया। ह्वेनसांग ने नालंदा में अध्ययन किया और अपनी यात्रा वृत्तांत में विश्वविद्यालय की भव्यता और शिक्षा प्रणाली का विस्तृत वर्णन किया।
केके मुहम्मद ने मगध के ऐतिहासिक महत्व पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत के 16 जनपदों में मगध सबसे शक्तिशाली और मजबूत था। मगध की मजबूत अर्थव्यवस्था, शक्तिशाली शासक और अनुकूल भौगोलिक स्थिति ने इसे अन्य जनपदों पर हावी होने में मदद की। उन्होंने राजगीर में स्थित साइक्लोपीयन वाल की प्राचीनता की प्रशंसा की और सुझाव दिया कि इसे भी यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। उन्होंने बताया कि विश्व धरोहर की मान्यता प्राप्त करने के लिए कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है, जो एक जटिल लेकिन महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।
केके मुहम्मद ने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया जा चुका है। लेकिन इसके विकास के लिए जितने प्रयास होने चाहिए, उतने नहीं हो पाए हैं। उन्होंने नालंदा, राजगीर, वैशाली और बोधगया जैसे स्थानों की धरोहरों के महत्व को रेखांकित करते हुए इनके संरक्षण और प्रचार-प्रसार की आवश्यकता पर बल दिया।
बहरहाल, अजातशत्रु किला मैदान की खुदाई और नालंदा की प्राचीन धरोहरों के संरक्षण के लिए केके मुहम्मद की यह यात्रा और उनके सुझाव पुरातत्व और इतिहास के क्षेत्र में एक नई प्रेरणा प्रदान करते हैं। उनकी यह अपील कि प्राचीन धरोहरों को संरक्षित कर भावी पीढ़ियों तक पहुंचाया जाए, न केवल सरकार और पुरातत्व विभाग के लिए, बल्कि समाज के हर वर्ग के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है।
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