बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। बिहार में बाल विवाह और बाल मजदूरी के खिलाफ एक निर्णायक अभियान चलाया जा रहा है। जिसमें ‘आइडिया’ नामक एक गैर-सरकारी संस्था अहम भूमिका निभा रही है। बाल विकास मंत्रालय के सहयोग से इस अभियान के तहत अब तक नालंदा जिले में 331 बाल विवाह रोके गए हैं, जबकि 61 मामलों में प्राथमिकी दर्ज कराई गई है।
संस्था की निदेशक रागिनी ने बताया कि बाल विवाह रोकने के लिए विभिन्न गतिविधियाँ आयोजित की जा रही हैं। जिनमें सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रम, स्कूलों में अभियान और सरकारी योजनाओं के प्रति जानकारी देना शामिल है।
उन्होंने कहा कि जैसे ही बाल विवाह की जानकारी मिलती है। संस्था तुरंत कार्रवाई करती है और विवाह को रुकवाने के साथ-साथ संबंधित परिवारों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने का प्रयास करती है।
अभियान के तहत अब तक 200 से अधिक स्कूलों में जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा चुके हैं। जिससे हज़ारों बच्चों और उनके अभिभावकों को बाल विवाह के खतरों के बारे में जागरूक किया गया है। इसके अलावा 1430 से अधिक लोगों ने बाल विवाह के विरुद्ध शपथ पत्र भर कर इसे न होने देने की प्रतिज्ञा ली है।
इस अवसर पर अभियान के प्रमुख सहयोगी मंटू, उज्जवल कुमार, गंगोत्री कुमारी, गुड्डी कुमारी, अश्विनी कुमार और विनोद पांडेय ने भी अपना योगदान दिया। संस्था का उद्देश्य न सिर्फ बाल विवाह को रोकना है, बल्कि समाज को इस प्रथा से पूरी तरह मुक्त करना है।
बता दें कि बाल विवाह (Child Marriage) एक सामाजिक कुप्रथा है, जिसमें कानूनी रूप से निर्धारित विवाह की उम्र से पहले बच्चों का विवाह कर दिया जाता है। यह समस्या विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में अधिक देखी जाती है। बाल विवाह से बच्चों के मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
यह लड़कियों की शिक्षा और आर्थिक स्वतंत्रता को बाधित करता है और अक्सर उन्हें जल्दी माँ बनने के लिए मजबूर करता है, जिससे उनका स्वास्थ्य खतरे में पड़ जाता है। भारत में बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत 18 वर्ष से कम आयु की लड़की और 21 वर्ष से कम आयु के लड़के का विवाह अवैध माना जाता है।
वहीं, बाल मजदूरी (Child Labor) वह स्थिति है, जिसमें बच्चों से उनके आयु के अनुसार अनुपयुक्त और खतरनाक कार्य करवाए जाते हैं, जिससे उनका स्वास्थ्य, शिक्षा और सामान्य विकास बाधित होता है। यह कुप्रथा गरीब परिवारों में अधिक देखी जाती है, जहाँ माता-पिता बच्चों को काम पर भेजने के लिए मजबूर होते हैं।
बाल मजदूरी से बच्चों को शिक्षा का अवसर नहीं मिल पाता और वे अक्सर गरीबी के चक्र में फंसे रह जाते हैं। भारत में बाल श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 के तहत 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से काम करवाना गैरकानूनी है।
बाल विवाह और बाल मजदूरी का दुष्प्रभाव:
- शिक्षा से वंचित होना
- मानसिक और शारीरिक विकास में बाधा
- गरीबी का चक्र जारी रहना
- स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ
- सामाजिक असमानता का बढ़ना
ये दोनों समस्याएँ मिलकर समाज में बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन करती हैं और उनके भविष्य को अंधकारमय बनाती हैं। सरकार और विभिन्न गैर-सरकारी संगठन इन समस्याओं को रोकने के लिए लगातार प्रयासरत हैं। परन्तु इसके लिए व्यापक सामाजिक जागरूकता और कानून का सख्ती से पालन आवश्यक है।
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