
बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा कभी विश्व की प्राचीनतम शिक्षा नगरी के रूप में विख्यात थी, वह आज अपने ऐतिहासिक संग्रहालय (Nalanda Museum) के बंद होने के कारण पर्यटकों की नाराजगी का केंद्र बन गया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संचालित यह संग्रहालय सौ साल से भी अधिक समय से नालंदा की समृद्ध विरासत को प्रदर्शित करता रहा है। लेकिन पिछले 14 महीनों से आधुनिकीकरण के नाम पर बंद पड़ा है। 8 मार्च 2024 से पर्यटकों के लिए पूर्ण रूप से बंद इस संग्रहालय को चार महीनों में तैयार कर जुलाई 2024 में खोलने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन सवा साल बाद भी कार्य अधूरा है।
नालंदा संग्रहालय में आधुनिकीकरण के तहत नई तकनीकों का उपयोग कर पर्यटकों, खासकर बच्चों को भारत की प्राचीन विरासत से जोड़ने की योजना थी। डिजिटल डिस्प्ले, इंटरैक्टिव प्रदर्शनियां और आधुनिक संग्रहालय प्रबंधन प्रणाली लागू करने का वादा किया गया था।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक यदुवीर सिंह रावत ने जब पिछले साल कार्य का जायजा लिया था तो अधिकारियों ने उन्हें भरोसा दिलाया था कि चार महीनों में संग्रहालय को पूरी तरह सुसज्जित कर पर्यटकों के लिए खोल दिया जाएगा। लेकिन आज भी संग्रहालय के मुख्य द्वार पर ताले लटके हुए हैं और अधिकारियों के पास यह बताने के लिए कोई स्पष्ट जवाब नहीं है कि इसे कब तक खोला जाएगा।
नालंदा यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। यह हर साल देश-विदेश से हजारों पर्यटकों को आकर्षित करता है। पर्यटक यहां नालंदा के प्राचीन विश्वविद्यालय के अवशेषों के साथ-साथ संग्रहालय में रखीं करीब 4000 से अधिक पुरातात्विक वस्तुओं को देखने के लिए उत्साहित होकर आते हैं। लेकिन संग्रहालय के बंद होने के कारण उन्हें मायूस होकर लौटना पड़ रहा है।
जापान से आए एक पर्यटक समूह ने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि नालंदा जैसे वैश्विक महत्व के स्थल पर संग्रहालय का बंद रहना निराशाजनक है। पर्यटकों का कहना है कि संग्रहालय के बिना नालंदा का दौरा अधूरा सा लगता है। क्योंकि यहाँ प्रदर्शित वस्तुएँ और जानकारी नालंदा के गौरवशाली इतिहास को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
संग्रहालय के बंद रहने से न केवल पर्यटक निराश हो रहे हैं, बल्कि नालंदा की वैश्विक छवि पर भी असर पड़ रहा है। यह संग्रहालय नालंदा के प्राचीन विश्वविद्यालय की कहानी को जीवंत करता था। जिसमें बौद्ध धर्म, शिक्षा और संस्कृति के अनमोल अवशेष संरक्षित हैं। इसके बंद रहने से पर्यटक नालंदा के समृद्ध इतिहास और संस्कृति को पूरी तरह समझने से वंचित हो रहे हैं।
इसके अलावा संग्रहालय के बंद होने से पुरातत्व विभाग को भी राजस्व का नुकसान हो रहा है। टिकटों और अन्य सेवाओं से होने वाली आय पूरी तरह ठप है। लेकिन अधिकारियों की उदासीनता इस समस्या को और गहरा रही है। स्थानीय निवासियों का कहना है कि संग्रहालय के बंद रहने से नालंदा में पर्यटन से जुड़े व्यवसाय, जैसे- गाइड, स्थानीय दुकानें और परिवहन सेवाएँ भी प्रभावित हो रही हैं।
नालंदा संग्रहालय में 4000 से अधिक पुरातात्विक वस्तुएँ संरक्षित हैं। जिनमें बौद्ध मूर्तियाँ, प्राचीन सिक्के, मिट्टी के बर्तन और नालंदा विश्वविद्यालय से प्राप्त अन्य अवशेष शामिल हैं। ये वस्तुएँ नालंदा के गौरवशाली अतीत को दर्शाती हैं और इतिहासकारों, शोधकर्ताओं और पर्यटकों के लिए अमूल्य हैं। आधुनिकीकरण के बाद यहाँ डिजिटल तकनीकों के माध्यम से इन वस्तुओं को और आकर्षक ढंग से प्रदर्शित करने की योजना थी। लेकिन यह योजना अभी तक साकार नहीं हुई है।
अब नालंदा संग्रहालय के आधुनिकीकरण कार्य को जल्द से जल्द पूरा करने की मांग अब जोर पकड़ रही है। पर्यटकों, स्थानीय निवासियों और इतिहास प्रेमियों का कहना है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को इस दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए। संग्रहालय को समयबद्ध तरीके से खोलने के लिए एक स्पष्ट योजना और जवाबदेही तय की जानी चाहिए।
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