नालंदा दर्पण डेस्क। बिहार के सरकारी स्कूलों खासकर बाढ़ प्रभावित जिलों के विद्यालयों में स्वीमिंग पूल बनाये जाएंगे। इसकी मदद से छात्र-छात्राओं को तैराकी में भी दक्ष बनाया जाएगा। ताकि, बाढ़ के समय वे खुद का बचाव के साथ ही अपने गांव अथवा आस-पास के क्षेत्रों में डूबने वाले लोगों को हरसंभव मदद पहुंचा सकें।
भवन निर्माण विभाग के अभियंता प्रमुख सह अपर आयुक्त सह विशेष सचिव सुधांशु शेखर राय के हवाले से खबर है कि आपदा प्रबंधन विभाग के आदेश पर भवन निर्माण विभाग ने स्वीमिंग पूल का प्रारूप व उसकी अनुमानित लागत तय की है। स्वीमिंग पूल निर्माण की पूरी विवरणी आपदा विभाग के सचिव को भेज दी है। 25 मीटर लंबा और 12 मीटर चौड़ा स्वीमिंग पूल के साथ ही दो चेंजिंग रूम बनाने पर चार करोड़ 46 लाख 52 हजार रुपये की लागत आएगी।
उनका मानना है कि अब तक इसकी प्रशासनिक स्वीकृति नहीं मिल कसकी है। स्वीकृति मिलने के बाद ही इसे धरातल पर उतारने की रणनीति तय की जा सकेगी। वर्ष 2016 में बाढ़ के दौरान राज्यभर में 254 लोगों की होने वाली मौत में 251 की मृत्यु डूबने से हुई थी। इसी वर्ष छठ महापर्व के दौरान 47 लोगों की मौत डूबने से जान गयी थी। इनमें 39 बच्चे अथवा किशोर थे। इसी को ध्यान में रखते हुए स्कूलों में तरणताल निर्माण समेत कई अन्य कदम उठाये जाने हैं।
बाढ़ की क्षति को कम करने की कवायदः बाढ़ से होने वाली क्षति को कम करने के लिए आपदा जोखिम न्यूनीकरण रोडमैप 2015-30 बनाया गया है। इसके तहत कई लक्ष्य रखे गये हैं। इन लक्ष्यों की पूर्ति के लिए कई तरह की गतिविधियों पर काम शुरू किया जा चुका है। स्कूलों में स्वीमिंग पूल का निर्माण उन गतिविधियों में से एक है।
वर्ष 2030 तक प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली मौतों में 75 फीसदी और आपदा प्रभावितों की संख्या में 50 प्रतिशत की कमी लाने का लक्ष्य रखा गया है। इसी के तहत सुरक्षित तैराकी (सेफ स्वीम) कार्यक्रम शुरू किया गया है। बांग्लादेश की तर्ज पर नदियों-जलाशयों के किनारे बसे गांवों के छह से 18 आयु वर्ग के बच्चों को डूबने से बचाने के लिए सुरक्षित तैराकी योजना शुरू की गयी है।
बकौल भवन निर्माण विभाग के अभियंता प्रमुख सह अपर आयुक्त सह विशेष सचिव, 38 जिलों में 15 जिले अति बाढ़ प्रभावित माने जाते हैं। यानी यहां बाढ़ से अधिक क्षति होती है। जबकि, 13 जिलों को बाढ़ प्राभावित माना गया है। इन जिलों में प्राथमिकता के आधार पर स्वीमिंग पूल बनाये जाएंगे। हालांकि, यह योजना अभी काफी प्रारंभिक अवस्था में है। विभाग की सोच है कि बच्चे तैराकी में दक्ष बनेंगे और आपदा से होने वाली मौत को कम किया जा सकेगा।
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