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नालंदा में पीएमईजीपी योजना: बेरोजगार युवाओं के सपनों पर बैंकों का ब्रेक

हिलसा (नालंदा दर्पण)। केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) योजना नालंदा जिले के बेरोजगार युवाओं के लिए एक सुनहरा अवसर साबित हो सकती है, जहां वे सरकारी नौकरी की राह छोड़कर खुद का उद्यम स्थापित कर आत्मनिर्भर बन सकते हैं। इस योजना के तहत ऋण और अनुदान की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है, लेकिन जिले के अधिकांश बैंकों की उदासीनता और असहयोगात्मक रवैया इस पहल को पलीता लगा रहा है।

चालू वित्तीय वर्ष 2024-25 में लक्ष्य हासिल करने में विभाग पिछड़ रहा है, और युवाओं के सपने अधर में लटके हुए हैं। जिला उद्योग केंद्र की रिपोर्ट से खुलासा होता है कि इस वर्ष विभिन्न बैंकों को कुल 397 आवेदन भेजे गए थे, लेकिन मात्र 30 आवेदनों को ही ऋण स्वीकृति मिली है। यह आंकड़ा योजना की धीमी गति को साफ-साफ दर्शाता है। बैंकों की ओर से 51 आवेदनों को अस्वीकार कर दिया गया, जबकि शेष 316 आवेदन अभी भी लंबित पड़े हैं। इस असहयोग का असर युवाओं पर पड़ रहा है, जो उद्यम शुरू करने के लिए उत्सुक हैं लेकिन बैंक की टालमटोल नीति के कारण निराश हो रहे हैं।

बैंकों के प्रदर्शन पर नजर डालें तो स्थिति और स्पष्ट हो जाती है। दक्षिण बिहार ग्रामीण बैंक ने केवल दो आवेदनों को स्वीकृति दी, बैंक ऑफ बड़ौदा ने तीन, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया ने एक, इंडियन ओवरसीज बैंक ने दो, इंडियन बैंक ने एक, पंजाब नेशनल बैंक ने चार, भारतीय स्टेट बैंक ने सबसे अधिक 13, और केनरा बैंक ने एक आवेदन को मंजूरी दी।

ये आंकड़े बताते हैं कि कुछ बैंक सक्रिय हैं, लेकिन अधिकांश की सुस्ती पूरे लक्ष्य को प्रभावित कर रही है। जिला उद्योग केंद्र के महाप्रबंधक सचिन कुमार स्वीकार करते हैं कि सरकार द्वारा चलाई जा रही लाभकारी योजनाओं का जिले के बेरोजगारों को लाभ दिलाने के लिए उद्योग विभाग सतत प्रयत्नशील है। जिले के कुछ बैंकों को छोड़कर अधिकांश बैंकों की टालमटोल नीति के कारण इस प्रकार की लाभकारी योजना का लाभ नहीं मिल पाता है।

यह योजना विशेष रूप से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के युवाओं के लिए डिजाइन की गई है, जहां वे विभिन्न प्रकार के छोटे-मोटे उद्योग स्थापित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए पशु आहार, मुर्गी दाना, तेल मिल, दाल मिल, मसाला उत्पादन, बेकरी उत्पाद, पोहा उत्पादन, फलों का जूस, कार्न फ्लेक्स, जैम-जेली, सॉस उत्पादन और मधु प्रसंस्करण जैसे उद्योगों को शुरू किया जा सकता है। ये सभी क्षेत्र स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन कर सकते हैं और जिले की अर्थव्यवस्था को मजबूत बना सकते हैं।

योजना की आकर्षक विशेषताएं इसे और भी रोचक बनाती हैं। सामान्य पुरुष वर्ग के लाभार्थियों को परियोजना लागत का केवल 10 प्रतिशत अपना अंशदान देना होता है, जबकि महिलाओं, अनुसूचित जाति/जनजाति, विकलांगों और अन्य विशेष वर्गों के लिए यह मात्र 5 प्रतिशत है। इसके अलावा अनुदान की व्यवस्था भी है।

शहरी क्षेत्रों में 15 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 25 प्रतिशत तक की सब्सिडी मिलती है। यह प्रावधान युवाओं को उद्यम शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करता है, लेकिन बैंकों की ढिलाई इसे बाधित कर रही है। नालंदा जैसे जिले में जहां बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है। पीएमईजीपी जैसी योजनाएं बदलाव ला सकती हैं। लेकिन जब बैंक ही सहयोग नहीं करते, तो युवाओं का उत्साह ठंडा पड़ जाता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि बैंक अपनी प्रक्रियाओं को तेज करें और आवेदनों पर समयबद्ध निर्णय लें, तो जिले में सैकड़ों नए उद्यम खुल सकते हैं, जो हजारों रोजगार पैदा करेंगे। आखिरकार आत्मनिर्भर भारत का निर्माण तभी संभव है जब सरकारी योजनाएं जमीनी स्तर पर सफल हों।

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