नालंदा दर्पण डेस्क। अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन धर्म नगरी राजगीर से मकर संक्रांति का ऐतिहासिक और गहरा लगाव है। यहां मकर मेले का आयोजन कब से और किनके द्वारा शुरू किया गया है। यह किसी को सही सही पता नहीं है।
लेकिन लोग कहते हैं कि आदि अनादि काल से राजगीर में मकर मेला का आयोजन होता आ रहा है। इस मेले में मगध के जिलों के लोगों का बड़ी संख्या में समागम होता है। सुप्रसिद्ध गर्म जल के झरनों और कुंडों में हर उम्र के लोग मकर स्नान करते हैं। श्रद्धालु यहां के लक्ष्मी नारायण मंदिरों में पूजा-अर्चना करने के बाद दान-पुण्य का लाभ लेते हैं।
आजादी के बाद सूबे के पहले मुख्यमंत्री डॉ श्रीकृष्ण सिंह द्वारा मकर मेला का सरकारी आयोजन आरंभ किया गया था। कालांतर में यह मेला सरकारी उपेक्षा का शिकार हो गया। प्रशासन द्वारा मेला का आयोजन करना बंद कर दिया गया। बावजूद स्थानीय लोगों ने मकर मेला की परंपरा को जीवित रखने का हर संभव प्रयास किया।
मकर संक्रांति के दिन भूतपूर्व शिक्षा मंत्री सुरेंद्र प्रसाद तरुण कुछ सहयोगियों के साथ युवा छात्रावास में वैदिक संस्कृति से पूजा अर्चना करते और घंटों मकर संक्रांति के महत्व की चर्चा करते तथा कराते थे।
बाद में स्थानीय लोगों की मांग पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसके आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व को आंकते हुए राजगीर के सुषुप्त मकर मेले को केवल पुनर्जीवित ही नहीं किया, बल्कि राजकीय मकर मेला का दर्जा भी दिया।
अब 2018 से राजगीर में फिर से मकर मेले का सरकारी आयोजन किया जा रहा है। 14 जनवरी से शुरू होने वाले आठ दिवसीय इस मेला की तैयारी जिला प्रशासन द्वारा किया जा रहा है। जिसकी मॉनीटरिंग खुद डीएम शशांक शुभंकर द्वारा किया जा रहा है। यहां के युवा छात्रावास (मेला थाना) परिसर में मुख्य सांस्कृतिक पंडाल का निर्माण किया जा रहा है। यहां पहली बार जर्मन हैंगर पंडाल का निर्माण हो रहा है।
बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि मकर संक्रांति मेला कब से लगता है। यह सही पता नहीं है। लेकिन भीड़ पहले भी बहुत आती थी। मकर स्नान के लिए लोग पैदल और बैलगाड़ी की सहायता से घर और समाज के लोगों की टोली राजगीर आती थी।
ग्रामीणों की उन टोलियों में पुरुषों के अलावे महिलाएं, बच्चे की संख्या भी अच्छी खासी होती थी। वस्त्र, भोजन आदि सामग्री के साथ लोग हथियार भी रखते थे। उसमें भाला, बरछी, गड़ासा, तलवार, गुप्ती आदि होते थे। बैलगाड़ी में केरोसिन, लालटेन, पेट्रोमैक्स भी रखते थे। यह सब जुगाड़ था बदमाशों और चोर चिलहार से बचाव के लिए।
राजगीर-तपोवन तीर्थ रक्षार्थ पंडा समिति के प्रवक्ता सुधीर कुमार उपाध्याय बताते हैं कि मकर संक्रांति मेले में मगध क्षेत्र के साधु-संतों के साथ किसान-मजदूर युवक-युवतियां, छात्र-छात्राएं भी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं।
पहले संन्यासी संक्रांति काल में पंच पहाडियों की गुफाओं में कल्पवास करते थे। यहां के कुंडों में स्नान करते थे। मकर संक्रांति के मौके पर राजगीर के आध्यात्मिक माहौल चरम पर रहता है। इस दौरान सनातन संस्कृति का अनूठा संगम की झलक इस मौके पर देखने को मिलती है।
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