“यह अभियान न केवल नालंदा के गौरव को लौटाने का प्रयास है, बल्कि यह पूरी दुनिया को भारतीय शिक्षा और संस्कृति की अमूल्य धरोहर से जोड़ने की एक महत्वपूर्ण कड़ी है…
बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। तिलाधक विश्वविद्यालय संरक्षण एवं पुनर्निर्माण समिति ने ऐतिहासिक तिलाधक महाविहार परिसर में एक अहम बैठक का आयोजन किया। इस बैठक की अध्यक्षता समिति के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. मनीष कुमार भारद्वाज ने की। जबकि संचालन सचिव डॉ. अनीश कुमार ने किया। बैठक में विश्वविद्यालय को पुनः स्थापित करने और इसके संरक्षण के लिए व्यापक जनसहभागिता जुटाने पर जोर दिया गया।
इसके लिए समिति ने 8 दिसंबर 2024 से एक हस्ताक्षर अभियान शुरू किया है, जिसका उद्देश्य एक महीने में 1 लाख लोगों के हस्ताक्षर जुटाना है। इस अभियान के तहत तिलाधक महाविहार परिसर से शुरुआत करते हुए इसे नालंदा जिले के विभिन्न क्षेत्रों में संचालित किया जाएगा।
सचिव डॉ. अनीश कुमार ने जानकारी दी कि हिलसा में मुकेश मानस, एकंगर सराय और इस्लामपुर में डॉ. अनीश कुमार, बिहारशरीफ में डॉ. मनीष कुमार भारद्वाज और तेलहड़ा में अध्यक्ष डॉ. अवधेश गुप्ता के नेतृत्व में यह अभियान जोर-शोर से चलेगा।
समिति ने यह भी निर्णय लिया कि एकत्र किए गए हस्ताक्षरों के साथ मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री से मुलाकात कर तिलाधक विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण हेतु विधेयक पास करने का अनुरोध किया जाएगा।
डॉ. मनीष कुमार भारद्वाज ने कहा, “तिलाधक विश्वविद्यालय भारत का पहला विश्वविद्यालय था, जो अपनी प्राचीनता और शैक्षणिक उत्कृष्टता के लिए जाना जाता था। इस ऐतिहासिक धरोहर को पुनर्जीवित करना केवल नालंदा का नहीं, बल्कि पूरे देश का सपना है।”
समिति ने बताया कि तेलहड़ा क्षेत्र में बिहार सरकार की 700 एकड़ से अधिक जमीन उपलब्ध है, जहां विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण के लिए सभी आवश्यक सुविधाएं मौजूद हैं। जैसे- बिजली, पानी और सड़क। समिति के सदस्य इस बात पर सहमत हुए कि यह स्थान विश्वविद्यालय के लिए सबसे उपयुक्त है।
अभियान की शुरुआत में डॉ. मनीष कुमार भारद्वाज, अध्यक्ष अवधेश गुप्ता, सचिव डॉ. अनीश कुमार, मुकेश मानस, दीपिका मिश्रा और अन्य स्थानीय लोग उपस्थित रहे। समिति के सदस्यों ने जनता से इस अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने का आह्वान किया।
हस्ताक्षर अभियान के बाद समिति तिलाधक विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया को तेज करने के लिए लगातार सरकार और प्रशासन के संपर्क में रहेगी। जनसहभागिता और ऐतिहासिक महत्व के बल पर यह पहल राज्य और देश को एक नई पहचान देने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है।
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