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    Tuesday, March 25, 2025
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      संविदाकर्मियों से छीने गए स्कूल निरीक्षण का अधिकार, जानें असल वजह !

      बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। बिहार के सरकारी स्कूलों के निरीक्षण की पुरानी व्यवस्था को अचानक समाप्त कर दिया गया है। इस बदलाव का कारण संविदा कर्मियों और बाहरी स्रोतों से कार्यरत कर्मियों द्वारा प्रस्तुत किए गए निरीक्षण रिपोर्ट में पाई गई गड़बड़ियां हैं। जांच में पाया गया कि इनकी रिपोर्ट और जमीनी हकीकत में भारी अंतर था। इसके अलावा इन कर्मियों द्वारा अपने कार्यों के प्रति उदासीनता और संवेदनशीलता की कमी भी देखी गई।

      इन्हीं कारणों से शिक्षा विभाग ने स्कूल निरीक्षण की पूरी प्रक्रिया में आमूलचूल परिवर्तन किया है। अब यह कार्य केवल शिक्षा विभाग और बिहार शिक्षा परियोजना परिषद (बीईपी) के स्थायी अधिकारियों को सौंपा गया है।

      अब कैसे होगी स्कूलों की जांच? शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. एस. सिद्धार्थ द्वारा इस नई व्यवस्था को लागू किया गया है। फरवरी के तीसरे सप्ताह में उन्होंने सभी जिला शिक्षा पदाधिकारियों को इस संबंध में स्पष्ट निर्देश जारी किए थे। अब स्कूलों का निरीक्षण जिला शिक्षा पदाधिकारी (DEO), जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (DPO), कार्यक्रम पदाधिकारी, प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी (BEO), अपर जिला कार्यक्रम समन्वयक (BEP), सहायक कार्यक्रम पदाधिकारी द्वारा किया जाएगा।

      गोपनीयता और सख्ती से लागू होगी नई प्रणालीः अब निरीक्षण के लिए स्कूलों का चयन खुद अपर मुख्य सचिव द्वारा किया जाता है। प्रत्येक निरीक्षण के लिए स्कूलों की सूची संबंधित अधिकारियों को एक रात पहले रात 9 बजे मोबाइल संदेश के जरिए भेजी जाती है। इस गोपनीय प्रक्रिया का उद्देश्य निष्पक्षता बनाए रखना है।

      निरीक्षण के बाद रिपोर्ट को ई-शिक्षाकोष पोर्टल पर अपलोड करना अनिवार्य होगा। साथ ही प्रत्येक अधिकारी को हर महीने कम-से-कम 25 स्कूलों का निरीक्षण करने की बाध्यता होगी।

      क्यों उठाए गए ये कड़े कदम? संविदा कर्मचारियों और बाहरी एजेंसियों द्वारा स्कूल निरीक्षण में लापरवाही और फर्जी रिपोर्टिंग की शिकायतें लगातार मिल रही थीं। कई बार निरीक्षण रिपोर्ट में मौजूद आंकड़े और विद्यालयों की वास्तविक स्थिति में बड़ा अंतर पाया गया। इस लापरवाही को खत्म करने के लिए ही सरकार ने यह कड़ा फैसला लिया है।

      अब देखना यह होगा कि नई निरीक्षण प्रणाली से सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में कितना सुधार आता है। लेकिन इतना तय है कि इस कदम से शिक्षा व्यवस्था में जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ेगी।

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