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    Tuesday, April 30, 2024
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      इसलामपुर की धड़कन में बसे हैं महान स्वतंत्रता सेनानी डॉ. चाँद बाबू

      नालंदा दर्पण डेस्क। प्राचीन धरोहरों से सजी इसलामपुर नगर धरती पर डॉ. लक्ष्मीचंद वर्मा एक ऐसे महान व्यक्तित्व हुए, जिनके सदगुणों को लेकर आज भी काफी सम्मानपूर्वक याद करते हैं।

      The great freedom fighter Dr. Chand Babu has settled in the heart of Islampur 1
      डॉ. लक्ष्मीचंद वर्मा उर्फ चांद बाबू का घर

      डॉ. लक्ष्मीचंद वर्मा उर्फ चांद बाबू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के अग्रिम पंक्ति में शुमार थे। वे क्षेत्र के प्रथम एमबीबीएस डाक्टर भी थे।

      उन्होंने वर्ष 1942 में गांधी जी के शंखनाद के बाद अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन से प्रभावित होकर इसलामपुर थाना से अंग्रेजी झंडा को हटाकर तिरंगा फहराया था।

      उस समय तत्कालीन थाना प्रभारी नरसिंह सिंह ने चांद बाबू पर अपनी रायफल तान दी थी। मगर वे भयभीत नहीं हुए और अपने जज्बे पर डटे रहे। तब थानेदार को नरम होना पड़ा और तबसे इसलामपुर थाना भवन से विदेशी झंडा हमेशा के लिए उतर गए।

      डा. लक्ष्मीचंद वर्मा का जन्म वर्ष 1902 में इस्लामपुर के एक जमींदार परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय खानकाह हाई स्कूल में हुई। उसके बाद वे बनारस चले गए और वर्ष 1926 में उन्होंने पटना मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया।

      फिर पढ़ाई पूरी करने के बाद वे लोगों की चिकित्सीय सेवा में जुट गए। वे ईलाज की एवज में कोई पारिश्रमिक नहीं लेते थे और रोगियों को दवा भी मुफ्त देते थे। वे स्वदेश प्रेम, करुणा, अहिंसा परमोधर्मः के बड़े अनुयायी थे।The great freedom fighter Dr. Chand Babu has settled in the heart of Islampur

      इसके बाद महात्मा गाँधी के आह्वाहन वे अंग्रेजों से भारत की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। वे स्वतंत्रता सेनानियों की तन-मन-धन से ममद करने लगे। उनका घर आजादी के क्रांतिकारियों का एक बड़ा अड्डा बन गया।

      वे वर्ष 194O से 1947 तक अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी इस्लामपुर कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे। जब गांधी जी ने देश की आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी का अस्तित्व समाप्त करने की घोषणा की तो चांद बाबू ने सबसे पहले अपना इस्तीफा गांधीजी को भेज दिया।

      उनके घर पर श्री बाबू अनुग्रह बाबू, वीर सावरकर, आचार्य कृपालानी, डा.लालसिंह त्यागी, विनोबा भावे समेत अनेक ऐतिहासिक पुरुष हमेशा आते रहते थे।

      स्थानीय लोगों के आलावे राजनीतिक दलों ने उनसे कई बार विधायक का चुनाव लड़ने के लिए अनुरोध किया लेकिन उन्होंने सदैव दो टूक कहते रहे कि वे जनसेवा के कार्य नेता के बजाय एक चिकित्सक के रुप में अधिक कर सकते हैं।

      उन्हें राजनीतिक नेताओं के तामझाम बिल्कुल पंसद नहीं थे। एक बार वे तात्कालीन उत्पाद मंत्री जगलाल चौधरी एक सभा कार से खुदागंज पहुंचे। उस सभा में मौजूद चांद बाबू मंत्री पर बिगड़ उठे कि एक तरफ गांधी के आदर्श पर चलने की बात करते हो और दूसरी तरफ कार से चलते हो। वे गाँधीजी के आदर्शों को जीवन में उतारने पर अधिक बल देते थे।

      उन्होने वर्ष 1957 में बिहारशरीफ के पास दीपनगर मे अनुसूचित जाति के बच्चों को पढ़ने के लिए जमीन दान किया। कहते है कि जिस समय एमबीबीएस की डीग्री लेकर चांद बाबू इस्लामपुर आए, उस समय गरीब जनता नीम हकीमों की गिरफ्त में छटपटा रही थी और उस समय इस क्षेत्र में कोसों दूर तक उनके सरीखे डाक्टर नहीं थे।

      स्वतंत्रता संग्राम के इस योद्धा एंव इसलामपुर के चमकते चांद को 21 अगस्त 1974 को सदा सदा के लिए ग्रहण लग गया। वे अमरत्व को प्राप्त हो गए। आज भले हीं वे लोगों के बीच न रहे हों, उनकी स्मृति हर जुबान और आँखो मे बसी है।

      चांद बाबू के पुत्री प्रीती सिंहा बताती हैं कि उनकी मां रामप्यारी देवी का भी स्वर्गवास हो गया है। वे लोग पाँच बहन एवं दो भाई हैं। जिसमें जीवन कपुर जमशेदपुर में रहती हैं। अमर कंडन  बंगलौर में, सरोज महरोत्रा पटना में और सीता तलवार दिल्ली में रहते हैं।

      बकौल प्रीती सिंहा, उनके एक भाई डा. जवाहर लाल सरीन लंदन, वहीं दूसरे भाई अमरनाथ सरीन पटना में निवास करते हैं। दोनों भाई के साथ परिवार के अन्य लोग समय समय पर अपने पैतृक घर पर आते जाते रहते हैं।

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