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    Sunday, October 6, 2024
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      बिहार भूमि विशेष सर्वेक्षणः कैथी भाषा में लिखे दस्तावेज बनी बड़ी समस्या

      नालंदा दर्पण डेस्क / मुकेश भारतीय। बिहार भूमि विशेष सर्वेक्षण का महत्व न केवल ऐतिहासिक दृष्टिकोण से है, बल्कि यह वर्तमान समय में ग्रामीण रैयतों के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। यह सर्वेक्षण बिहार के भूमि प्रशासन में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसका उद्देश्य भूमि के सही और सटीक रिकॉर्ड की व्यवस्था करना है। इसके तहत जो गतिविधियाँ चल रही हैं, वे न केवल स्थल पर भूमि के स्वामित्व की स्थिति को स्पष्ट करती हैं, बल्कि प्राचीन कैथी भाषा में लिखे हुए खतियान दस्तावेजों की भी शोध करती हैं, जो कि कई सैकड़ों वर्षों से अनदेखी रहे हैं।

      इस सर्वेक्षण का एक प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण रैयतों को भूमि अधिकारों के विषय में जागरूक करना है। यह सर्वेक्षण रैयतों को यह बताने में मदद करेगा कि उनके पास भूमि पर कौन से अधिकार हैं और कैसे उन्हें सही तरीके से सुरक्षित किया जा सकता है। इस प्रक्रिया से रैयतों को यह सुनिश्चित करने का अवसर मिलेगा कि उनकी संपत्ति कानून के दायरे में सुरक्षित है। इसके अलावा प्राचीन खतियान को समझने से रैयतों को स्थानीय भूमि परंपराओं और ऐतिहासिक संदर्भों के बारे में जानकारी प्राप्त होगी, जिससे वे अपने अधिकारों की रक्षा में सक्षम बनेंगे।

      सर्वेक्षण की प्रक्रिया में शामिल सर्वेक्षणकर्मियों के लिए यह चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि उन्हें प्राचीन दस्तावेजों की भाषा और उनके संदर्भों को समझना आवश्यक है। यह न केवल तकनीकी कौशल की मांग करता है, बल्कि स्थानीय सांस्कृतिक ज्ञान को भी शामिल करता है। इस प्रकार यह सर्वेक्षण रैयतों और सर्वेक्षणकर्मियों के बीच एक संवाद स्थापित करने में मददगार सिद्ध होगा और एक साथ मिलकर वे भूमि के स्थायी सम्मान और संरक्षण को सुनिश्चित कर सकेंगे। फिलहाल बहुत सारे खतियान कैथी भाषा में लिखा हुआ है, जिसे पढ़ने-समझने वालों लोग नहीं मिल रहे हैं और यह रैयतों के साथ सर्वेक्षणकर्मियों के लिए भी एक बड़ी समस्या के रुप में उभरकर सामने आई है।

      प्राचीन कैथी भाषा और खतियान का इतिहासः कैथी भाषा, जिसे प्रमुख रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में बोला जाता है, एक प्राचीन भारतीय भाषा है। यह भाषा मुख्यतः औपनिवेशिक और स्थानीय प्रशासन के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम रही है, विशेषकर 16वीं से 19वीं शताब्दी के बीच। इस भाषा का विकास उस समय के सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक परिवेश से जुड़ा हुआ है, जिसमें विभिन्न समुदायों का योगदान शामिल है। कैथी का माध्यमिक उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों में शास्त्रीय लेखन और अभिलेखों के लिए किया गया था।

      खतियान, जिसका अर्थ है भूमि अभिलेख। यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जो ज़मींदारी व्यवस्थाओं के अंतर्गत भूमि के स्वामित्व को प्रमाणित करता है। यह दस्तावेज़ कैथी भाषा में लिखे जाते थे, जिसमें भूमि की स्थिति, प्रयोग और स्वामित्व का विस्तृत विवरण होता था। खतियान को एक ऐतिहासिक संदर्भ के रूप में समझा जाना आवश्यक है, क्योंकि यह स्थानीय प्रशासन के नियमों और रोज़मर्रा के जीवन की आर्थिक गतिविधियों का प्रतिबिंब है।

      कैथी भाषा की लिखने की पद्धति भी अद्वितीय है। इस भाषा में लिखावट की अनेक शैलियाँ हैं, जो इसे अन्य भाषाओं से अलग बनाती हैं। हालांकि, कैथी भाषा में खतियान को समझने में कठिनाइयाँ सामने आती हैं, जैसे कि वैकल्पिक शिल्प, स्थानीय बोलचाल की शब्दावली और अभिलेखों की विकृति। विशेष रूप से प्राचीन अभिलेखों के संदर्भ में उनके पाठ को पढ़ना और सही ढंग से व्याख्या करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य हो गया है। ये बाधाएँ साक्षात्कारकों और शोधकर्ताओं को इतिहास के इस समृद्ध हिस्से को समझने में कठिनाईयों का सामना कराती हैं।

      सर्वेक्षणकर्मियों की चुनौतियाँ और अनुभवः बिहार भूमि विशेष सर्वेक्षण के दौरान सर्वेक्षणकर्मियों को अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सबसे प्रमुख चुनौती प्राचीन कैथी भाषा में लिखे खतियान को समझने की थी। यह भाषा जो कि इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आई है, अनेक लोगों के लिए अब अपरिचित हो चुकी है। सर्वेक्षणकर्मियों ने अनुभव किया कि कई रैयत जो कि इस भाषा के मूल जानकार हैं, उनकी मदद नहीं कर पा रहे थे। इससे न केवल सर्वेक्षण की प्रक्रिया में देरी हो रही है, बल्कि अधूरा डेटा संग्रह भी हो रहा है।

      इसके अतिरिक्त संवाद करने में रैयतों के साथ अवरोध उत्पन्न होते रहे। भाषा की बुनियाद कठिनाई के साथ-साथ कई रैयत ऐसे थे, जो अपनी जमीन के कागजात को लेकर अनिश्चित थे। उन्हें यह नहीं पता था कि उनके पास क्या अधिकार हैं या किस प्रकार के दस्तावेज़ होना आवश्यक हैं। इस स्थिति ने सर्वेक्षण के दौरान अस्पष्टता को जन्म दिया है, जिससे सर्वेक्षणकर्मियों को सचेत रहना पड़ रहा है।

      बता दें कि वर्ष 1912-1913 कलेक्ट्रल सर्वे पूरा हुआ था। कलेस्ट्रल सर्वे पूरा कराकर खतियान तैयार कराने में अंग्रेजी सरकार को करीब 100 साल हो गये हैं। उस समय बिहार और उत्तर प्रदेश में कैथी हिंदी भाषा की प्रचलन थी। उसके के पढ़े-लिखने वाला हर कोई कैथी हिंदी भाषा पढ़ना-लिखना जानता था।

      अब जमीन बिक्री का कैबाला, बंदोबस्त भूमि का रिटर्न से लेकर जमींदारी दस्तावेज कैथी भाषा के जानकार बहुत ही कम लोग रहे गये हैं, जो कैथी हिंदी को बड़ी सहजता से पढ़कर देवनागरी भाषा में तैयार कर देते हैं। हालांकि इसके लिए वे अपने मन-मुताबिक रुपये की मांग करते हैं।

      भविष्य की संभावनाएँ और सुझावः बिहार भूमि विशेष सर्वेक्षण का भविष्य स्थानीय भाषा, खासकर कैथी भाषा के संरक्षण और उसके सही अर्थ को समझने में निर्भर करता है। सरकारी प्रयासों के माध्यम से इस सर्वेक्षण की सेवाओं का विस्तार किया जा सकता है। राज्य सरकार को चाहिए कि वह इस प्रक्रिया के दौरान सर्वेक्षणकर्मियों के लिए कैथी भाषा की विशेष ट्रेनिंग उपलब्ध कराए, ताकि वे संबंधित दस्तावेजों को सही तरीके से पढ़ और समझ सकें। यह न केवल सर्वेक्षण की गुणवत्ता को बढ़ाएगा बल्कि स्थानीय रैयतों के साथ अच्छे संबंध बनाने में भी सहायक होगा।

      स्थानीय समुदाय का सहयोग भी इस सर्वेक्षण की सफलता में महत्वपूर्ण है। गांव के लोगों को इस प्रक्रिया में शामिल करने से रैयतों का विश्वास और सक्रियता बढ़ सकती है। गांव वासियों को इस सर्वेक्षण के महत्व और इसके संभावित लाभों के बारे में जागरूक करना आवश्यक है। साथ ही उन्हें कैथी भाषा की प्रासंगिकता समझाने के लिए विभिन्न कार्यशालाओं और संगोष्ठियों का आयोजन किया जा सकता है।

      कैथी भाषा के संरक्षण के लिए शिक्षा प्रणाली में सुधार करने की आवश्यकता है। स्कूलों और महाविद्यालयों में कैथी भाषा को एक विषय के रूप में शामिल करना बेहद महत्वपूर्ण है। इससे नई पीढ़ी में इस भाषा के प्रति रुझान बढ़ेगा और भौगोलिक क्षेत्र में इसे बोलने वालों की संख्या में वृद्धि होगी। इसके अलावा कैथी भाषा में साहित्य तथा सांस्कृतिक सामग्री का निर्माण भी आवश्यक है, जिससे लोग इसे अध्ययन करने और समझने के लिए प्रोत्साहित हों।

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