चंडी (नालंदा दर्पण)। चंडी प्रखंड का अपना ऐतिहासिक, धार्मिक और राजनीतिक महता रही है। चंडी जहां अपनी धार्मिक समृद्धता के लिए जानी जाती है,साथ ही अपनी शालीनता, संख्या भाव,आतिथ्य संवेदनाओं से भी संवेदित है।
नेहरू मंत्रिमंडल में केंद्रीय उप मंत्री रही तारकेश्वरी सिन्हा और सिने स्टार ‘बिहारी बाबू’ शत्रुघ्न सिन्हा के पूर्वज भी इसी प्रखंड से आते हैं। वहीं नालंदा से पहली बार डीएम और बंगाल उच्च न्यायालय में न्यायाधीश बनने का गौरव इसी प्रखंड को हासिल है।
कहा जाता है कि माता चंडिका के नाम पर इस स्थल का नाम ‘चंडी’ पड़ा। यहां मां देवी दुर्गा के नौवें रूप सिद्धिदात्री विराजमान हैं। हालांकि चंडी का लिखित इतिहास का संकेत कहीं नहीं मिलता। लोक स्मृति की व्यापकता ही प्रमाण मानी जाती है।
चंडी को लेकर एक और ऐतिहासिक कहानी है कि महापद्मनंद के शासन में उनके आतंक से कुछ लोग पलायन कर गए थे। बाद में अम्बष्ठ कायस्थों को बसाया गया था। अम्बष्ठ कायस्थों के 126 खास घरों में एक ‘चंडगवे’ भी रहा जो बाद में अपभ्रंश होकर चंडी हो गया।
चंडी में माता चंडी का भव्य मंदिर है। जो भक्तों के लिए आस्था एवं विश्वास का केंद्र बना हुआ है। लोगों का मानना है कि जो भी सच्चे मन से मां चंडी के दरबार में आता है उसकी मनोकामना मां चंडी जरूर पूरी करती है।
चंडी मगध के नौ सिद्ध स्थलों में से एक माना जाता है। इस मंदिर के आसपास एक विशाल तालाब था। इसी तालाब में सवा सौ साल पहले मां चंडिका की मूर्ति कुछ लोगों को मिली थी,वे उसे लेकर रूखाई के पास ब्रह्म स्थान में ले जाकर रख दिया, लेकिन अगले दिन मूर्ति वहां से गायब मिली।
लोगों ने चंडी के उस तालाब से कई बार मूर्ति लाकर रखने का प्रयास किया, लेकिन मूर्ति अगले ही दिन गायब मिलती। बाद में एक बंगाली तांत्रिक द्वारा उस मूर्ति को चंडी में ही स्थापित कर दिया गया। जहां आज चंडी मंदिर बना हुआ है। यूं तो यहां सालों भर श्रद्धालु माता के दर्शन को आते हैं। लेकिन नवरात्रि में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ जाती है।
ऐसी मान्यता है कि जो भी माता के दरबार में अपनी इच्छा जाहिर करते हैं,माता उनकी झोली अवश्य भरती है। नवरात्र में माता के दर्शन को लेकर भक्तों का दर्शन शुरू हो जाता है। यहां दूर-दूर से लोग मां के दर्शन को आते हैं। जो भी अपनी मुराद लेकर आते हैं, मां उनकी झोली भरती है।
एक समय यहां स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्यों ने आकर साधना की थी। 1927 में चंडी थाना के सब इंस्पेक्टर हनुमान प्रसाद ने इस मंदिर के प्रांगण में एक शिवालय का निर्माण करवाया था। वहीं 1974 में बेगूसराय के महेशपुर निवासी और तबके चंडी थाना प्रभारी रहें भुवनेश्वर प्रसाद वर्मा ने मंदिर का जीर्णोद्धार और मंडप का निर्माण करवाया था।
1988 में चंडी के सीओ और बाद में बिहार लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष रहे बैधनाथ दफ्तुआर ने मंदिर का नये सिरे से जीर्णोद्धार में अपना उल्लेखनीय योगदान दिया था। उनके बाद भी कई थानेदार और पदाधिकारी का मंदिर का सौंदर्यता में उल्लेखनीय योगदान और श्रद्धा रहा है।
हालांकि आज भी कुछ बचे हुए पुराने पदाधिकारी कभी भी इस रास्ते से गुजरते हैं तो एक बार मंदिर का दर्शन करना नहीं भूलते हैं। नालंदा के एसपी गुप्तेश्वर पांडेय और निशांत तिवारी भी मंदिर का दर्शन कर चुके हैं। चंडी माता मंदिर राजनीतिक दल के नेताओं का भी केंद्र रहा है।
सीएम नीतीश कुमार भी अपने राजनीतिक जीवन के आरंभिक दौर में चंडी मंदिर का दर्शन कर चुके हैं। चंडी माता मंदिर के बाहर पिछले चार दशकों से ज्यादा समय से भारत माता की प्रतिमा बैठाई जा रही है।
फाइव स्टार मिजिया क्लब की ओर से दुर्गापूजा के मौके पर सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन होता रहा है। हालांकि समय के साथ कार्यक्रम में बदलाव आया है। नये वर्ग के लोग अपने हिसाब से विरासत संभाले हुए परंपरा का निर्वहन करते आ रहे हैं।
चंडी माता मंदिर के प्रधान पुजारी कैलू पांडेय और उनके पुत्र संजीत पांडेय मां की सेवा में लगे हुए हैं।
उनका कहना है मंदिर की ऐतिहासिकता काफी पुरानी है यहां 1897 में मां भगवती प्रकट हुई थी जो मां देवी के नौवें रूप मानी जाती है। नवरात्रि शुरू होने के बाद से भक्तों का तांता पूजा के लिए लगी हुई है। वैसे अष्टमी से यहां श्रद्धालुओं की भीड़ ज्यादा देखने को मिलती है। चंडी मां का मंदिर अपनी प्राचीनता, भव्यता और भक्तों के मन्नत पूरी करने के लिए जाना जाता है।
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