बिहारशरीफ (नालंदा दर्पण)। नालंदा जिले में जमीन की किल्लत और प्रशासनिक ढांचा की कमजोरी के कारण बड़ी संख्या में आंगनबाड़ी केंद्र अपने स्थायी भवन से वंचित हैं। वर्तमान में जिले के 3417 स्वीकृत आंगनबाड़ी केंद्रों में से केवल 1357 केंद्र ही अपने भवनों में संचालित हो रहे हैं। शेष 34.67 प्रतिशत केंद्र किराये के मकानों में या अन्य सरकारी भवनों में चल रहे हैं।
आंगनबाड़ी केंद्रों का उद्देश्य बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना है। लेकिन किराये के मकानों में संचालित केंद्रों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव बड़ी चुनौती बन गया है। इनमें से कई केंद्रों में न तो पर्याप्त जगह है। न ही बच्चों के बैठने की उचित व्यवस्था। पेयजल, शौचालय और खेल-कूद जैसी सुविधाएं तो अधिकांश जगहों पर नहीं हैं। इससे बच्चों और गर्भवती महिलाओं को इन केंद्रों से मिलने वाली सेवाओं का लाभ उठाने में कठिनाई होती है।
जिला प्रशासन द्वारा आंगनबाड़ी केंद्रों को किराये के मकानों में चलाने के लिए सेविकाओं को किराये की राशि उपलब्ध कराई जाती है। लेकिन यह राशि इतनी कम है कि अधिकांश सेविकाएं अपने घरों में ही केंद्र चला रही हैं। सबसे खराब स्थिति जिला मुख्यालय की है। जहां केवल दो आंगनबाड़ी केंद्र ही अपने भवनों में संचालित हो रहे हैं।
जिला ग्रामीण विकास अभिकरण (डीआरडीए) ने आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए 92 नए भवन निर्माण की परियोजना शुरू की है। इनमें से आठ भवन तैयार होकर विभाग को सौंप दिए गए हैं। इसके अलावा मनरेगा योजना के तहत 19 पुराने भवनों का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। 12 और भवन निर्माण के अंतिम चरण में हैं और जल्द ही इन्हें हैंडओवर कर दिया जाएगा।
कुछ प्रखंडों में नई जमीन चिन्हित कर भवन निर्माण की प्रक्रिया शुरू की गई है। लेकिन इस दिशा में गति धीमी है। प्रशासनिक ढांचे की कमियों और योजना कार्यान्वयन में देरी के कारण समस्या बरकरार है। जबकि जमीन की किल्लत को दूर करना और इन केंद्रों को स्थायी भवन मुहैया कराना प्रशासन की प्राथमिकता होनी चाहिए।
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