“तुम गये क्या
शहर सूना कर गये
दर्द का आकार दूना कर गये”
सच है, लेकिन दिल इसे कुबूल करने को तैयार नहीं है। और सच कई बार बहुत तल्ख ,निर्मम और शोकपूर्ण होता है…
नालंदा दर्पण डेस्क। चंडी प्रखंड के जाने-माने बिजनेस मैन और खेल जगत का एक स्तंभ विजय कृष्ण उर्फ नवीन भैया नहीं रहे। पटना के एक अस्पताल में उन्होंने आखिरी साँस ली।वे बच्चों, युवाओं सबके नवीन भैया थे। जिसने भी उनकी मौत की खबर सुनी सब शोकाकुल हैं। उनके आंख से आंसू छलक रहें हैं।
कुछ आंसू बाहर छलकते है ,कुछ आंसू भीतर दिल के दालान पर भी गिरते है। हम जैसे लोगो के लिए बड़ा सदमा है। यकीन नहीं हो रहा है कि नवीन भैया आप हमे ऐसे छोड़ जाएंगे।
कुछ दिन पहले ही वे अस्पताल से चंगा होकर आएं थे। पर एकाएक तबियत बिगड़ गई। फिर वो हम सबको ग़मज़दा कर उस जहां में चले गये जहां से कोई लौट कर नहीं आता।
मृत्यु एक सत्य है। मगर उसका भी वक्त मुकर्रर है। कोई असमय चला जाये तो बहुत दुःख होता है।
पिछले कुछ दिनों में कुछ परिचित ,कुछ दोस्त ,कुछ करीबी लोगो को जाते हुए देखा है। कुछ से मुलाकत उस तरह नहीं थी। मगर जानते जरूर थे। उनको बे वक्त जाते देख कर मन विचलित है।
लेकिन नवीन भैया से बहुत पुराना नाता रहा है। वैसे तो मैं उन्हें तीन दशक ज्यादा समय से जानता था। लेकिन जान पहचान 27साल पुरानी थी।
नवीन भैया चंडी के कोहिनूर ही नहीं बल्कि खेल जगत का वह सितारा थें जिनसे चंडी की खेल पीढ़ियां जगमगाती रही। चंडी में उन्होंने क्रिकेट को एक अलग पहचान दी।चंडी क्रिकेट क्लब को उन्होंने एक पहचान दी। वे उसके सिरमौर बने हुए थे।
यहां तक डॉ रामराज सिंह क्रिकेट टूर्नामेंट के वह एक पिलर हुआ करते थे।वे हमेशा बिहारशरीफ, राजगीर,फतुहा अपने खर्च पर टीम को ले जाया करते थे।
यहां तक कि वह एक बेहतरीन फुटबॉल खिलाड़ी भी थे। साथ ही बैंडमिंटन के अच्छे रैकेटबाज। उनके खेल का अंदाज का हर कोई कायल था।उनके लेग में शाट का कोई सानी नहीं था। जरा सा लेग गेंद मिला नहीं कि उसका बांउड्री पार जाना निश्चित होता था।
वे एक अच्छे स्पिनर गेंदबाज भी थे। बैडमिंटन के लिए उनकी एक महफ़िल हुआ करती थी। जिसमें शहर के युवाओं की टोली से लेकर पुलिस पदाधिकारी ,बीडीओ-सीओ तमाम पदाधिकारी हुआ करतें थे।
वैसे तो उनकी पहला परिचय विजय कृष्ण सर्विस स्टेशन से था।लोग उन्हें पेट्रोल पंप मालिक से ज्यादा जानते थें। लेकिन खेल जगत में आने के बाद से वह अच्छे खासे पहचान बना ली थी।
वह 2001 में जिला परिषद का चुनाव भी लड़ा था, लेकिन सफलता नहीं मिली। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी एक बहुमूल्य योगदान दिया। उन्होंने यूनिक गाइडलाइन कोचिंग संस्थान की भी नींव रखी।
यहां तक कि उनकी देख-रेख में कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी होता रहा है। वह लगभग हर कार्यक्रम में शामिल होते उनका आयोजन करते।
नवीन भैया एक शख्स नहीं बल्कि शख्सियत थें।हरेक के पास उनकी सदाशयता,मदद और इंसानियत के किस्से हैं। वे सब आज शोकाकुल है। वे एक ऐसे इंसान थें जो किसी का दुःख तकलीफ देखकर खुद ब खुद मदद का हाथ बढ़ा देते थे।
लेकिन कौन जानता था।वे हमें ऐसे बीच रास्ते छोड़ जाएंगे। वे अपने सभी दोस्तों-परिचितों के लिए अभिभावक और संरक्षक की भूमिका में होते थें।
उनसे हमारी पिछली मुलाकात बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान हुई थी। जो अंतिम मुलाकात बनकर रह गई। पिछले लाकडाउन के दौरान उन्होंने एक समाजसेवी के रूप में अपना योगदान भी दिया था। जरूरत मंदो के बीच अनाज बांटकर लेकिन उसकी वाह वाही नहीं ली। उनसे क्षेत्र का रौनक बनी हुई रहती थी।
युवाओं में वे काफी लोकप्रिय थें।कभी कभी लोग अपनी उम्र सीमा भूलकर हास्य परिहास भी कर लिया करतें थें।जिसका वे कभी बुरा नहीं मानते थे।
गौरतलब रहे कि चंडी प्रखंड पिछले कुछ सालों से बौद्धिक चेतना मामले में शून्य रहा है।ऐसे में नवीन भैया ही एक मात्र स्तंभ थें जो बुर्जुआ वर्ग को समझते थें।अब वह मेरा ही बिखर गया है।यह कल्पना करके ही गहरा दुःख होता है कि उनके एक मात्र पुत्र सुमित रंजन के लिए खुद को संभालना कितना कठिन होगा।
नवीन भैया ,आप हम सब के लिए एक बहुत बड़ा शून्य छोड़कर गये हैं।एक ऐसा दर्दभरा खालीपन जिसे भरा नहीं जा सकेगा। साहिर कहते है –
“संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है
एक धुँध से आना है, एक धुँध में जाना है,
एक पल की पलक पर है, ठहरी हुई ये दुनिया
एक पल के झपकने तक हर खेल सुहाना है “
नवीन भैया आप जहां भी हो आंख के पानी की कलम से लिखे इन शब्दों से सलाम!
“दिया मंदिर का हो मजार का हो
बेवक्त बुझता अच्छा नहीं लगता
अभी लम्बा सफर तय करना था
यूँ किसी का बीच चले जाना अच्छा नहीं लगता है”